शंका...सवाल और षड़यंत्र...संकट भरोसे का | Blog:

शंका…सवाल और षड़यंत्र…संकट भरोसे का

शंका...सवाल और षड़यंत्र...संकट भरोसे का

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 10:42 AM IST, Published Date : April 24, 2018/4:26 am IST

शंका…सवाल और षड़यंत्र…संकट भरोसे का

 

मौजूदा सियासी दौर में सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म बन चुका है जिसे ‘तिल का ताड़’,’राई का पहाड़’ और ‘चिंगारी को शोला’ बनाने के लिए इतने शातिराना तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है कि आप और हम दोनों चाहे-अनचाहे इसका शिकार बनते हैं। सोशल प्लेटफार्म पर प्रोजेक्टेड एजेंडा के व्यूह से देशवासी अंजाने में और हम यानि मीडिया जानकर भी निकल नहीं पाते। हो भी क्यों ना, अब इसके लिए एक्सपर्ट प्रोफेशनल्स की फौज जो मैदान मे सक्रिय है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सबके पास इस काम में महारत रखने वाले प्रोफेशनल्स की फौज है। वो जानते हैं कब अपने आकाओं की लाइन को बढ़ाकर या कब विरोधियों की लाइन को मिटाने के लिए माहौल बनाना है। खैर,चिंता इस बात की नहीं कि आईटी एक्सपर्ट्स और पीआर मैनेजमेंट एक्सपर्ट्स किन तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं…चिंता इस बात की है इसका इम्पैक्ट,इसका असर क्या है ? इसका सबसे घातक और चिंताजनक पहलू है देश के मन में बढ़ती आशंका और अविश्वास का ज़हर। 

 ताजा उदाहरण हैं देश के सामने…जिसने ग्लोबली देश की छवि तक को धक्का पहुंचाने की कोशिश की है। पहला है कठुआ में बच्ची से गैंगरेप कांड और दूसरा जस्टिस लोया की मौत,उस पर सुप्रीम फैसला,फिर फैसले पर सवाल उठाना और फिर महाभियोग जो कि अब गिर चुका है…। 

किसी भी महिला के साथ रेप संवेदनशील विषय है..उस पर भी किसी 8 साल की बच्ची के साथ गैंग रेप। रेपिस्ट का कुकृत्य कई दिनों तक रिपीट करना,उसकी हत्या कर देना…इससे जघन्य क्या होगा…लेकिन अफसोस ऐसे मुद्दे में भी पहले सियासी षडयंत्र और ऊपर से सोशल साइट्स पर एक के बाद एक सत्य का पोस्टमार्टम करने वाले स्वयंभू रिपोर्ट्स और शोधकर्ताओं की बेसलैस थ्यौरीज…। अक्सर ये इल्जाम मीडिया पर लगता है कि वो सत्य को तोड़-मरोड़कर पेश करता है चीजों को अतिरेक स्तर तक ले जाता है…कुछ हद तक सही भी है लेकिन फिर भी साहब कम से कम इस ‘कुठआ केस’ में सोशल साइट्स पर एक के बाद एक सुपर डिटेक्टिव स्वयंभू सत्य का अनुसंधान करने वालों की फौज में कोई भी रेग्युलर और जिम्मेदार रिपोर्टर नहीं था…। ऐसे लोग और ऐसे-ऐसे चेहरे खुफिया हाव-भाव से सच बता रहे थे जिनकी खुद की सत्यता का कोई प्रमाण नहीं था और ऐसी-ऐसी थ्योरीज दे रहे थे ‘कठुआ रेप कांड’ की जिसके पीछे कोई प्रमाण,कोई इनवेस्टीगेशन नहीं। वैसे हर हाथ में स्मार्ट फोन ने कुछ को स्मार्ट तो कुछ को ‘अति स्मार्ट’ बना दिया है…चंद लोगों ने उसे सियासी चश्मे से देखा और मासूमियत से फिर जानबूझकर उसका राजनैतिक विश्लेषण शुरू कर दिया…और बाद की कहानी तो और भी गंभीर है जब इसे धर्म,जाति और संप्रदाय विशेष से जोड़कर नफरत की लकीरें खींचने का काम भी शुरू कर दिया…। वैसे,इस मामले में अक्सर कोसा जाने वाला मीडिया स्पेशली इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ही अपनी वास्तविक जम्मेदारी को समझ कर वास्तव में सत्य के अनुसंधान के लिए घटनास्थल तक पहुंचा और जो जैसा पाया उसे वैसा ही दिखाया…लेकिन अफसोस तब तक देशभर में शंका,वैमनस्यता और क्रोध का जहर ऐसा फैला कि हमारे ज्ञात शत्रुओं को ग्लोबली हमें बदनाम करने का मौका भी दे गया । इस पूरे मामले में सबसे गंभीर बात ये कि हर निष्पक्ष भारतीय (ना भक्त…ना कट्टर विरोधी लोग) के मन में इस पूरे घटनाक्रम ने एक प्रश्नचिन्ह…एक शंका…एक सवाल छोड़ा क्या वाकई ऐसा हुआ…क्या वाकई ये क्रूर क्राइम धर्म विशेष से जुड़ा है…फिर बाद में सवाल उठा क्या ये कोरी साजिश है…क्या वाकई ये धर्म विशेष,जाति विशेष,पार्टी विशेष के खिलाफ सोची समझी रणनीति की परिणिती है..? आप माने या ना माने परंतु हर मन में पीड़ा और उथल-पुथल रही है कि आखिर सच क्या है..। एक सब्जी वाला भाई जो मुझे और मेरे पेशे का जानता है जब उसने मुझसे पूछा ‘भैया क्या वाकई बच्ची के साथ रेप हुआ और उसी जगह यानि मंदिर में ? उन्हीं लोगों ने किया जैसा वाट्सएप पर आए एक वीडियो में एक साहब ने बताया ? ‘यकीन मानिए मुझे तब उस चुनौती का जबरदस्त ऐहसास हुआ की देश के आमजन के मासूम मन में अगर शंका का ज़हर फैलता है तो उसे कैसे और किन शब्दों से काटा जा सकता है ? मैं तब उसे चाहकर भी सिर्फ ‘हां’ या ‘नहीं’ में जवाब नहीं दे पाया.. और जो मैं उसे बता सका,समझा सका वो शायद ही समझ पाया हो..। कुछ को लग सकता है कि ये तो अच्छा है कि सवाल उठें,कुछ को ये सामान्य लग सकता है पर साहब शंका और अविश्वास के जहर की कोई काट नहीं है…क्योंकि इस प्रकरण ने सच क्या है,घटना हुई भी या ये फिर सारा कुछ षड़यंत्र था इस शंका को जन के मन में बैठा दिया..। 

एक और ताजा घटनाक्रम जो हम सब देख चुके हैं और अब भी देख रहे हैं वो है जस्टिस लोया की मौत पर उठाए गए सवाल,उसके पीछे षड़यंत्र की आशंका और उसके लिए चल रहा तथाकथित संघर्ष । इस पूरे घटनाक्रम ने अच्छे अच्छों के मन में ये सवाल उठाए कि क्या वाकई एक जज की मौत सही थी या फिर एक षड़यंत्र …जज लोया की मौत पर उनका बेटा सही बोल रहा था या उनकी बहन की शंका सही थी…उस हाई प्रोफाइल शख्सियत की मौत की जांच रिपोर्ट सही थी या वो लोग जो इसमें षड़यंत्र की बू सूंघ कर कूद पड़े,पूरे न्याय सिस्टम में सुधार की क्रांति लाने के लिए। सवाल ही सवाल हैं लेकिन इन सवालों का सबसे गंभीर नजीता ये हुआ कि भारतीय संविधान के एक सबसे भरोसेमंद स्तंभ न्यायपालिका की बुनियाद तक पर चोट पहुंचाई । प्रकरण में अब तक नए-नए चैप्टर जुड़ते गए…पहले जस्टिस लोया की मौत को षड़यंत्र बताना,फिर उस पर याचिका,सुप्रीम जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस,सुप्रीम कोर्ट का याचिकाओं को खारिज करना,फिर स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार CJI के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव जो अब खारिज हो चुका है। सौ फीसदी अगर एक जज की मौत में कोई भी शंका है,षड़यंत्र है तो सच सामने आना ही चाहिए परंतु अगर ये महज़ सियासी पैंतरा है तो इससे शर्मनाक और गंभीर क्या होगा क्योंकि ये सब जानते हैं…सियासी दलों की सरकार हर पांच साल में बदलती रहती हैं..इन दलों पर कितना भरोसा और उनके प्रति कितना सम्मान है ये भी किसी से छिपा नहीं है लेकिन अब तक देश की न्याय व्यवस्था पर लोगों को अटूट भरोसा है और इस पूरे प्रकरण में बार-बार उठाए गए सवालों ने इस भरोसे पर चोट की चेष्ठा की है..जिसकी भरपाई बड़ी महंगी पड़ सकती है। खैर,मेरे जैसे तमाम भारतीय नागरिकों का न्याय व्यवस्था पर भरोसा अब भी कायम है पर ये भी सत्य है कि इस भरोसे पर चोट पहुंचाने के लिए पुरजोर प्रहार किए गए हैं,कुछ सवाल,शंकाएं और षड़यंत्र के दाग छोड़े हैं जो ताज़ा हैं और बेहद संजीदा भी।

 

पुनीत पाठक, असिस्टेंट एडिटर, IBC24

 

 

 
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