विरोध भी सहूलियत देखता है। मंदसौर में 7 साल की मासूम से दो दरिंदों द्वारा की गई हैवानियत के खिलाफ भी अपनी-अपनी सहूलियत के मुताबिक ही विरोध की रस्म अदायगी की जा रही है।
बच्ची से दरिंदगी की इंतिहा पार करने वाले हैवान चूंकि मुसलमान हैं तो धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदारों की ज़ुबान सिली है। गुनहगारों के मुस्लिम होने से सेक्युलर ट्वीटरवीरों ने खामोश रहने की सहूलियत ले रखी है। ‘जस्टिस फॉर असफा’ की तख्तियां लेकर फोटो खिंचवाने वाली बॉलीवुड की बालाएं भी लापता है। तब तो इन्हें खुद के हिंदू होने पर शर्म महसूस हो रही थी, लेकिन अब इन्होंने मुंह छिपाने की सहूलियत ले ली है।
घटना मंदसौर जैसे कस्बे में हुई है तो नेशनल मीडिया भी चार दिन से सहूलियत की खामोशी ओढ़े बैठे रहा। स्थानीय लोगों के साथ सोशल और क्षेत्रीय मीडिया ने आवाज बुलंद की तब जाकर नेशनल मीडिया भी अपनी सहूलियत तलाशने को मजबूर हुआ। चलिए, देर से ही सही, पैनल तो सजा।
दुष्कर्मी मुस्लिम हैं तो हिंदूवादी संगठनों का गुस्सा उबाल मार रहा है लेकिन शासन भाजपा का है लिहाजा विरोध की सीमा तय करने की सहूलियत लेने की भी मजबूरी है। मामला सरस्वती शिशु मंदिर से जुड़ा है इसलिए इस स्कूल की लापरवाही पर भी अपनी-अपनी सहूलियत के मुताबिक सवाल उठाए जा रहे हैं।
इधर, सियासत भी सहूलियत के लिहाज से जारी है। बयान नपे-तुले हैं और हरकत बेशर्मों सी। भाजपा विधायक सुदर्शन गुप्ता की बेशर्मी देखिए कि वो पीड़िता के मां-बाप को सांसद सुधीर गुप्ता के प्रति ये अहसान जताने के लिए कह रहे हैं कि वे उनकी बिटिया का हाल जानने के लिए आए हैं।
सियासतदान इस जघन्य वारदात में अपनी सहूलियत तलाश सकते हैं लेकिन हम-आप नहीं। जनाकांक्षा बस यही है- दरिंदों को खौफ़नाक मौत नसीब हो और बिटिया को जिंदगी।
सौरभ तिवारी
असिस्टेंट एडिटर, IBC24
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