जनता मांगे हिसाब: IBC24 की चौपाल से नवागढ़ की जनता ने मांगा हिसाब | IBC24 Special:

जनता मांगे हिसाब: IBC24 की चौपाल से नवागढ़ की जनता ने मांगा हिसाब

जनता मांगे हिसाब: IBC24 की चौपाल से नवागढ़ की जनता ने मांगा हिसाब

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:09 PM IST, Published Date : May 8, 2018/11:25 am IST

सफर की शुरूआत करते हैं…छत्तीसगढ़ की नवागढ़ विधानसभा सीट से… ये सीट पहले मारो के नाम से जानी जाती थी ..2008 में परिसीमन के बाद इसका नाम बदल कर नवागढ़ कर दिया गया…साहू और सतनामी बाहुल्य इस सीट पर क्या है सियासी समीकरण..आपको बताएं उससे पहले इसके भौगोलिक स्थिति पर एक नजर…

नवागढ़ विधानसभा की भौगोलिक स्थिति

बेमेतरा जिले में आती है विधानसभा सीट

परिसीमन से पहले मारो नाम से जाना जाता था

SC वर्ग के लिए आरक्षित है सीट

गौण खनिज के लिए चर्चित है क्षेत्र

जनसंख्या- 3 लाख 64 हजार 680

कुल मतदाता- 2 लाख 29 हजार 747

पुरुष मतदाता- 1 लाख 17 हजार 259

महिला मतदाता – 1 लाख 12 हजार 488

क्षेत्र में सतनामी वोटर सबसे ज्यादा

फिलहाल सीट पर भाजपा का कब्जा

दयालदास बघेल हैं वर्तमान विधायक 

नवागढ़ विधानसभा क्षेत्र की सियासत

बेमेतरा जिले में आने वाली इस सीट का सियासी इतिहास दिलचस्प रहा है ..राज्य बनने से पहले इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा …लेकिन 2003 से सीट पर भाजपा का कब्जा है..दयाल दास बघेल जो प्रदेश के सहकारिता मंत्री  हैं..यहां के वर्तमान विधायक हैं..आगामी चुनाव में भी भाजपा से उनको टिकट मिलना तय माना जा रहा है.. जबकि कांग्रेस में संभावित उम्मीदवारों की लंबी लिस्ट है..वहीं भाजपा के कद्दावर नेता हरिकिशन कुर्रे पार्टी से बगावत कर जेसीसीजे से चुनाव लड़ने से नवागढ़ में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।  

बेमेतरा जिले की नवागढ़ विधानसभा सीट वैसे तो कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है..लेकिन पिछले 15 सालों से यहां भाजपा का कब्जा है…और प्रदेश के सहकारिता मंत्री दयालदास बघेल यहां से विधायक हैं..नवागढ़ के सियासी इतिहास की बात करें..तो यहां की जनता पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी को महत्व देती है…शायद इसके पीछे वजह ये है कि यहां  से जो भी विधायक बनता है उसका मंत्री बनना तय है…

कांग्रेस के किशनलाल कुर्रे और डीपी धृतलहरे हों या फिर भाजपा के दयालदास बघेल.. इस सीट से जुड़ी एक और दिलचस्प बात ये है कि यहां पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ने वाले बागी उम्मीदवार हमेशा जीत दर्ज करते रहे हैं…जैसे-जैसे चुनाव का वक्त नजदीक आ रहा है..नवागढ़ में सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं… भाजपा के कद्दावर नेता हरिकिशन कुर्रे पार्टी का दामन छोड़कर जेसीसीजे के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं..जो वर्तमान विधायक दयालदास बघेल के लिए ये खतरे की घंटी जरूर बजा रही है.. पिछले चुनाव में तीसरे पायदान पर रहने वाली कांग्रेस में उम्मीदवारों की लंबी लिस्ट गुटबाजी को बढ़ावा दे रही है…कांग्रेस में टिकट के दावेदारों की बात करें तो पूर्व किशनलाल कुर्रे और डीपी धृतलहरे का नाम सबसे आगे है..धृतलहरे पिछली बार स्वाभिमान मंच के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इनके अलावा देवदास चतुर्वेदी, आगर दास डेहरे, झम्मन बघेल और डीपी धृतलहरे की बेटी शशिप्रभा गायकवाड़ और बेटा तरुण धृतलहरे भी टिकट की दौड़ मे शामिल हैं। 

सतनामी और साहू मतदाता बाहुल्य वाले इलाके में जाति समीकरण भी चुनावी नतीजों को प्रभावित करते हैं..लिहाजा यहां जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और बहुजन समाज पार्टी भी मुकाबले में हैं …जो आने वाले चुनाव में भाजपा कांग्रेस को कड़ी टक्कर देंगे..खासतौर पर जेसीसीजे यहां हरिकिशन कुर्रे को प्रत्याशी घोषित पहले ही लीड ले चुका है..

कुल मिलाकर नवागढ़ में जिस तरह के सियासी समीकरण बन रहे है …इतना तो तय है कि यहां मुद्दों के साथ साथ चुनावी मैनेजमेंट भी नतीजों को काफी प्रभावित करेगा …और फिलहाल सभी पार्टी इसी में जुटी हुई हैं 

नवागढ़ विधानसभा के मुद्दे

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है नवागढ़ में चारो ओर सियासी मुद्दों की गूंज सुनाई देने लगी है..वैसे तो नवागढ़ में समस्याओं की कोई कमी नहीं है लेकिन किसानों की नाराजगी मंत्री दयालदास बघेल के लिए परेशानी का सबब बन सकती है..वहीं विधायक की निष्क्रियता भी क्षेत्र में बड़ा मुद्दा बन चुका है। 

नवागढ़ की आधी से ज्यादा आबादी कृषि पर आधारित है…लेकिन यहां के किसान पिछले तीन साल से सूखे की मार झेल रहे हैं..ये हालात तब है जब ये इलाका शिवनाथ, हाफ और सकरी नदी से घिरा हुआ है..यानी इसे नवागढ़ के किसानों की बदकिस्मती ही कहेंगे कि पानी होने के बावजूद उनके खेत पानी के लिए तरस रहे हैं..  ना केवल किसान बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों को पीने का पानी भी नहीं मिल रहा है।  पानी का कोई बेहतर स्त्रोत नहीं होने की वजह से लोग नदी-नाले के गंदे पानी पीने को मजबूर हैं.

नवागढ़ क्षेत्र गन्ने की बंपर पैदावार के लिए जाना जाता है लेकिन इलाके में एक भी शुगर  फैक्ट्री नहीं होने की वजह से किसान गन्ने का गुड़ बनाकर बेचने को मजबूर हैं। क्षेत्र का एकमात्र कॉलेज भी शिक्षकों की कमी से जूझ रहा है। वहीं किसानों का आरोप है कि फसल बीमा का लाभ भी उन्हें अब तक नहीं मिल पाया है…और सूखाराहत राशि का भी कोई अता पता अब तक नहीं है। क्षेत्र में बेरोजगारी भी एक गंभीर मुद्दा है सूखे के चलते यहां के किसान मजदूरी की तलाश में बड़े शहरों का रूख कर रहे हैं। कुल मिलाकर नवागढ़ विधानसभा क्षेत्र में विकास के दावे तो खूब हुए लेकिन जमीनी स्तर पर कोई काम यहां नजर नहीं आता..यानी आगामी विधानसभा चुनाव में ये सारे मुद्दे नतीजों को प्रभावित करेंगे..ये तो तय है। 

 

वेब डेस्क, IBC24