और अब बात करते हैं मध्यप्रदेश की चितरंगी विधानसभा सीट..यहां के सियासी मिजाज की बात करें पहले जान लेते हैं क्या है सीट की भौगोलिक स्थिति
सिंगरौली जिले में आती है विधानसभा सीट
ST वर्ग के लिए आरक्षित है सीट
आदिवासी बाहुल्य है इलाका
कुल मतदाता- 2 लाख 23 हजार 762
पुरुष मतदाता- 1 लाख 17 हजार 31
महिला मतदाता- 1 लाख 6 हजार 729
जाति समीकरण है अहम
गोंड मतदाता- 35 हजार 319
कोल मतदाता- 25 हजार 263
ब्राह्मण मतदाता- 16 हजार 1
यादव मतदाता- 16 हजार 89
फिलहाल सीट पर कांग्रेस का कब्जा
चितरंगी विधानसभा की सियासत
सिंगरौली जिले की चितरंगी विधानसभा सीट परिसीमन के बाद अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित है…हर चुनाव में आदिवासी वोटर ही प्रत्याशियों के किस्मत का फैसला करते हैं..यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियां जाति समीकरण को ध्यान में रखते हुए चुनावी मैदान में अपना कैंडिडेट उतारती है..
2008 में परिसीमन के बाद देवसर से अलग होकर अस्तित्व में आई चितरंगी विधानसभा सीट.. आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है..परिसीमन के बाद हुए पहले चुनाव में भाजपा के विधायक जगन्नाथ सिंह ने बाजी मारी..और शिवराज कैबिनेट में शिक्षा मंत्री बने…लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में में जगन्नाथ सिंह अपनी सीट बचाने में नाकाम रहे और कांग्रेस की महिला नेत्री सरस्वती सिंह ने उन्हें करीब 11 हजार वोटों से शिकस्त दी…अब जब आगामी चुनाव के लिए कुछ महीने बचे हैं..तो चितरंगी में टिकट दावेदारों की लंबी फौज तैयार है…और नेता लुभावने वादों के साथ जनता के बीच पहुंचने लगे हैं… कांग्रेस की बात की जाए तो सूची में सबसे ऊपर नाम मौजूदा विधायक सरस्वती सिंह का है.. लेकिन चितरंगी की जनता अभी भी मुलभूत सुविधाओं से वंचित है और जनता अगर मौजूदा विधायक से नाराज होती है तो पार्टी पूर्व सांसद मानिक सिंह पर दांव लगा सकती है ..मानिक सिंह इन दिनों पार्टी और क्षेत्र में लगातार सक्रिय भी हैं और जनता के बीच उनकी अच्छी पकड़ भी है। इनके अलावा भी कई स्थानीय नेता हैं जो कांग्रेस से टिकट की मांग कर रहे है। वहीं दूसरी ओर भाजपा की बात करें तो लिस्ट में सबसे ऊपर नाम पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष राधा सिंह का है.. दूसरे उम्मीदवार के रूप में शिवराज कैबिनेट में पूर्व मंत्री रहे स्वर्गीय जगन्नाथ सिंह के छोटे भाई अमर सिंह भी टिकट के दावेदार हैं।
जाहिर है दोनों पार्टियों में ऐसे दावेदारों की कमी नहीं है जो चितरंगी के किले पर फतह का दावा कर रहे हैं …देखना है अब पार्टी हाईकमान का आशिर्वाद किसे मिलता है।
चितरंगी विधानसभा के मुद्दे
चितरंगी कई सालों से कहीं न कहीं सौतेलेपन का शिकार होता आया है ..और इसका दर्द यहां के आम मतदाता की बातों में भी साफ महसूस किया जा सकता है …और आने वाले चुनाव में मतदाताओं की ये टीस चुनावी नतीजों पर भी अपना असर दिखा सकती है
सरकारी कागजों पर योजनाएं तो बनीं लेकिन चितरंगी विधानसभा की सीमा में दाखिल नहीं हो सकी…अगर दाखिल होती तो आज गांवों में अंधेरे में जीने को मजबूर ना होते लोग…इस विधानसभा में एक नहीं ऐसे कई गांव हैं जहां आज भी बिजली के इंतजार में हैं लोग…स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो 4 लाख से ज्यादा आबादी वाले इस क्षेत्र में सरकारी अस्पताल केवल नाम के लिए संचालित हैं क्योंकि ये अस्पताल डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे हैं नतीजा मरीजों को जिला मुख्यालय का रूख करना पड़ता है.
ग्रामीणों इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत और भी खराब है…स्वास्थ्य के साथ शिक्षा के भी हाल बेहाल हैं…स्कूली शिक्षा की हालत तो खराब है ही उच्च शिक्षा में भी फिसड्डी है चितरंगी…उच्च शिक्षण संस्थानों की कमी के चलते छात्र बड़े शहर जाने को मजबूर हैं…इसके अलावा विधानसभा क्षेत्र में पेयजल संकट से जनता सालों से जूझती आ रही है…इन सबके बीच कई गांवों में आदिवासी वनाधिकार पट्टे की मांग भी अब तक पूरी नहीं हो सकी है ।
वेब डेस्क, IBC24
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