जनता मांगे हिसाब की शुरुआत करते हैं छत्तीसगढ़ की पंडरिया विधानसभा से..सियासी समीकरण और मुद्दों से पहले एक नजर विधानसभा की प्रोफाइल पर..
कबीरधाम जिले में आती है विधानसभा सीट
143 पंचायत विधानसभा में शामिल
कुल जनसंख्या-3 लाख 98 हजार 944
कुल मतदाता-2 लाख 73 हजार 128
पुरुष मतदाता-1 लाख 38 हजार 101
महिला मतदाता-1 लाख 35 हजार 27
वर्तमान में विधानसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा
मोतीराम चंद्रवंशी हैं बीजेपी विधायक
सियासत-
धर्मजीत सिंह और मोहम्मद अकबर जैसे नेताओं की सियासी जमीन है है पंडरिया…एक दौर था जब कांग्रेस के मजबूत किलो में से एक थी ये विधानसभा लेकिन अब बीजेपी के कब्जे में है। चुनाव नजदीक हैं तो चुनावी शोरगुल भी सुनाई देने लगा है ।
पंडरिया विधानसभा रही तो है कांग्रेस का गढ़ लेकिन बीते चुनाव में बीजेपी के मोतीराम चंद्रवंशी ने जीत का परचम लहराया…2013 में चुनावी समर में कांग्रेस और बीजेपी में टक्कर थी लेकिन इस बार के चुनाव में तस्वीर अलग नजर आएगी क्योंकि इस बार मैदान में JCCJ भी होगी..चुनावी तैयारियों के बीच टिकट के दावेदार भी नजर आने लगे हैं…बात बीजेपी की करें तो वर्तमान विधायक मोतीराम चंद्रवंशी सबसे प्रबल दावेदार हैं..तो वहीं पूर्व सांसद मधुसूदन यादव और सांसद अभिषेक सिंह का नाम भी दावेदारों में शामिल है।
इसके अलावा संतोष पांडे, विजय शर्मा, अंबिका चंद्रवंशी, भुनेश्वर चंद्राकर, दिनेश चंद्रवंशी और गोपाल साहू भी टिकट की दौड़ में हैं..अब बात कांग्रेस की करें तो योगेश्वर राज सिंह संभावित उम्मीदवारों में से एक हैं…इसके अलावा अर्जुन तिवारी और महेश चंद्रवंशी भी दावेदार हैं..बीजेपी और कांग्रेस की तरह ही JCCJ में दावेदारों की लंबी लिस्ट है..जिसमें सबसे ऊपर नाम है धर्मजीत सिंह के भतीजे आनंद सिंह और धीरज सिंह..तो वहीं देवेंद्र गुप्ता भी टिकट के लिए लाइन में लगे हैं ।
मुद्दे-
पंडरिया विधानसभा में विकास की बात तो छोड़िए सड़क,पानी और बिजली तक के लिए तरस रहे हैं कई गांव। शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के भी हाल बेहाल हैं ।
सियासी नक्शे पर एक अलग पहचान है पंडरिया विधानसभा की लेकिन विकास के मानचित्र पर तस्वीर धुंधली है। विधानसभा में समस्याओं और मांगों की लिस्ट लंबी है। जिनमें एक है पंडरिया नगर पंचायत को नगर पालिका बनाए जाने की लेकिन हुआ कुछ नहीं। उच्च शिक्षा के लिए कॉलेज की मांग भी पूरी नहीं हो सकी है। विधानसभा में आज भी ऐसे कई गांव हैं जहां रोड कनेक्टिविटी नहीं है..इसके साथ ही रेल लाइन की मांग भी पूरी नहीं हो सकी है।
सड़कों के निर्माण की स्वीकृति भले मिल गई है लेकिन निर्माण कार्य शुरु नहीं हो सका है..इसके अलावा बैगा आदिवासी आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं..स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में कई बैगा आदिवासी काल के गाल में समा चुके हैं लेकिन हालात नहीं बदले।कई गांवों बिजली और पानी के लिए तरस रहे हैं लोग..कहने को विधानसभा में शक्कर कारखाना है लेकिन किसानों से गन्ना खरीदा ही नहीं जा रहा है। अगर खरीदा भी जा रहा है तो राशि के भुगतान के लिए किसानों को चक्कर लगाने पड़ते हैं।
वेब डेस्क, IBC24