सूरजपुर। छत्तीसगढ़ के पर्यटन स्थलों को अलग अलग श्रेणी में बांटा गया है। जिनमें धार्मिक तीर्थ के हिसाब से कुदरगढ़ देवी का मंदिर खास है। यहां की मूर्ति लाल पत्थर की अष्ट भुजी महिसासुर मर्दनी स्वरुप है. बताया जा रहा है कि यह मूर्ति 18 वीं सदी में हडौतिया चौहान वंशो के अधिपत्य में आई थी।
बताया जाता है की मरवास में अभी भी इस कुल के परिवार है। यह मूर्ति उनके द्वारा लायी गयी थी बालंद क्रूर एवं अत्याचारी था जो सीधी क्षेत्र में लूट पाट एवं डकैती अपने २०० साथियों के साथ करता था, और अपना निवास स्थान वर्त्तमान में ओडगी विकासखंड के अंतर्गत तमोर पहाड़ जो लांजीत एवं बेदमी तक विस्तृत है, यहीं से इस सरगुजा क्षेत्र में भी लूट पाट करता था।
उससे त्रस्त होकर सरगुजा के गोंडवाना जमीदार , रामकोला लुण्ड्राजमीदार , पहाड़ गाव जमीदार , पटना जमीदार , तथा खडगवा जमींदार , इन जमीदारो ने समूह बनाकर तमोह पहाड़ पर चढ़ाई की बालंद परास्त होकर मूर्ति सहित अपने साथियों के साथ इस कुदरगढ़ पहाड़ पर जो कोरिया के रामगढ़ पहाड़ से लगे हुए बीहड़ों के कुंदरा में स्थापित है,अपना निवास स्थान बनाया और वही से सरगुजा को लूट पाट करता था उसके निवास स्थान को जानने वाले यहाँ के मूल निवासी पंडो जाती तथा चेरवा जाती जानते थे।
पुजारी पद के लिए पंडो और चेरवो के बिच वैमनस्यता हो गया उस काल में चौहान के मुख्य हरिहर शाह थे जिन्होंने राज बालंद को चारो तरफ से घेर लिया और झगराखार जो वर्त्तमान में पुराने धाम के मार्ग में है वही लडाई में मारा गया।
वेब डेस्क IBC24