धड़कनें बढ़ा देने वाला सिनेमाई चित्रण है फिल्म 'पीहू', देखिए रिव्यू | Pihu movie review : watching Pihu feels like being stranded on a late-night flight with a loud child

धड़कनें बढ़ा देने वाला सिनेमाई चित्रण है फिल्म ‘पीहू’, देखिए रिव्यू

धड़कनें बढ़ा देने वाला सिनेमाई चित्रण है फिल्म 'पीहू', देखिए रिव्यू

:   Modified Date:  December 4, 2022 / 08:38 AM IST, Published Date : December 4, 2022/8:38 am IST

फिल्म : पीहू
निर्देशक : विनोद कापड़ी
कास्ट : मायरा विश्वकर्मा
रेटिंग : 4.5 स्टार

रायपुर। कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड जीतने के बाद डायरेक्टर विनोद कापड़ी की फिल्म पीहू रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म में दो साल की बच्ची पीहू हीरो है, और पूरी फिल्म इसी के इर्दगिर्द घूमती है। फिल्म देखने से पहले फिल्म का ट्रेलर ने भी लोगों की धड़कनें बढ़ा दी थीं, इसे देख लोगों ने सोच लिया था कि फिल्म जैसे ही रिलीज होगी उसे जरूर देखेंगे, पीहू देखने के लिए आए दर्शकों को देखकर याकिन हो गया कि अब दर्शक एक्सपीरिमेंटल फिल्म देखना पसंद करते हैं। ये एक नेचुलर फिल्म है, जिसमें कोई बनावट नहीं है। पीहू को देखने के लिए हर वर्ग के लोग मौजूद थे।

फिल्म की कहानी एक रियल सिचवेशन पर बेस्ड है, फिल्म की शुरूआत होती है घड़ी में सुबह के सात बजे हैं। जहां 2 साल की नन्हीं पीहू सोकर उठती है और फिर चारों तरफ कैमरा घूमता है। कमरे में खूब सामान बिखरा पड़ा है। जिसे देखने से लग रहा है कि घर में रात में पार्टी हुई है। पीहू उठने के बाद अपनी मम्मा को उठा रही है, लेकिन मां नहीं उठी हैं। फिर पीहू नन्हें कदमों से अपने पापा को ढूंढने के लिए सीढ़ियों से नीचे उतरते है। वो पूरे घर में पापा पापा चिल्लाती है, लेकिन पीहू को पापा कहीं नहीं मिलते, वो फिर अपने कमरे की तरफ जाती है और अपनी सोई हुई मम्मी को फिर से उठाती है। लेकिन मां तो गहरी नींद में सो रही है। जिसका अहसास दर्शकों को हो जाएगा कि मां मर चुकी है। अब जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे आपका डर बढ़ता जाएगा। जिसे देखते वक्त आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे।  क्योंकि 2 साल की बच्ची घर में अकेली है, पीहू को भूख लगी है, पानी पीना है, दूध पीना है। लेकिन कोई उसकी मदद करने वाला नहीं है। जैसा ट्रेलर में दिखाया गया है, घर में बिखरे सामान के बीच वो खुद ही खाना निकालने की कोशिश करती है, इस बीच एक इलेक्ट्रोनिक आयरन दर्शकों का दिल दहलाने का काम करती है और फोन की घंटी डर को बढ़ती है। फिल्म में कई ऐसे सीन्स हैं, जिन्हें देखकर आप चीख पड़ेंगे। आखिर पीहू घर में अकेली क्यों है, क्या हुआ है? वो बालकनी पर क्या कर रहा है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

यहां तारीफ करनी पड़ेगी डायरेक्टर विनोद कापड़ी की, जिन्होंने ऐसे सब्जेक्ट के बारे में सोचा जिसमें दो साल की बच्ची का किरदार है सबकुछ है।  जो घर में अकेली परेशानियों से जूझ रही है। सिर्फ डायरेक्टर ही नहीं, बल्कि एक टाइम पर लगता है, मानो खुद पीहू ही उस कैमरा को गाइड कर रही है, उसे फॉलो करने के लिए। पूरी फिल्म को रियल सिचवेशन में शूट करने की कोशिश की गई है, जिससे ये दर्शकों को देखते वक्त एकदम रीयल लगे और सीधे उन्हें कनेक्ट करे।

अब बात करते हैं पीहू का रोल निभाने वाली मायरा विश्वकर्मा की जोकि छत्तीसगढ़ अंबिकापुर की रहने वाली है। पीहू की मासूमियत देखकर आप भी इंप्रेस हो जाएंगे और सोच में पड़ जाएंगे कि आखिर दो साल की बच्ची से ये खतरनाक सीन्स कैसे करवाएं होंगे, क्योंकि इतनी छोटी उम्र में बच्ची से एक्टिंग के लिए नहीं बोला जा सकता और इसलिए ये रीयल सीन्स पर शूट हुई है। जो आपकी आंखें नम कर सकती है। पीहू की मासूमियत कभी आपको डरा देंगी, तो कभी सांसे रुकने का काम करेगी, उसकी मासूमियत फिल्म की जान है।

बिना किसी स्टार पॉवर या आइटम सांग के भी ये फ़िल्म आपका ध्यान बांधे रखेगी। पर ये सोचना किसी भी माता पिता को डरा देगा कि एक बच्ची घर में अकेली है, जिसे कुछ भी हो सकता है।  सच कहा जाये तो सिर्फ माता पिता ही नहीं ये परिस्थिति किसी को भी डरा सकती है। ये फिल्म पहले से कई फ़ेस्टीवल में दिखायी जा चुकी है जहां फिल्म को काफी सराहा गया है।  फिल्म पीहू एक मैसेज देता है कि सिंगल पेरेंट्स जो बच्चों को घऱ में अकेले छोड़ देते हैं, उनके साथ कुछ भी हो सकता है वहीं ऊंची ऊंची इमारतों में रहने वाले एकल परिवार के बीच अगर तनाव बढ़ रहा है तो छोटे बच्चे इससे कैसे जूझते हैं, कुल मिलाकर ये फिल्म एक बार हर पेरेंट्स को जरुर देखनी चाहिए। कुछ कमियों को अगर दरकिनार कर दी जाए तो ये एक बेहतरीन फिल्म है। जिसे देखकर आप निराश नहीं होंगे बल्कि कुछ सीख ही लेंगे।