मूवी रिव्यू- विक्टोरिया एंड अब्दुल | Victoria and abdul

मूवी रिव्यू- विक्टोरिया एंड अब्दुल

मूवी रिव्यू- विक्टोरिया एंड अब्दुल

:   Modified Date:  December 4, 2022 / 09:41 AM IST, Published Date : December 4, 2022/9:41 am IST

फिल्म- विक्टोरिया एंड अब्दुल

कलाकार- जूडी डेंच, अली फज़ल, एडी इज़र्ड, अदील अख्तर, पॉल हिगिन्स, ओलिविया विलियम्स 

निर्देशक स्टीफन फ्रीअर्स

 

‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ इंग्लैंड के राजघराने के कई राज खोलती है जो महारानी विक्टोरिया के साथ ही खत्म हो चुके थे। कहा जा रहा है श्राबनी बसु की किताब का उद्धरण लेकर स्टीफन फ्रीयर्स ने ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल’ को रचा है लेकिन शायद हॉलीवुड फिल्म को पचा नहीं पा रहा है।

कहा जाता है कि अब्दुल करीम ने 19वीं सदी में महारानी के मुंशी के तौर पर राजमहल में काम किया। लेकिन ब्रिटिश इतिहास में करीम का नाम कहीं भी नहीं लिया गया है।

कुछ साल पहले श्राबनी ने अपनी किताब ‘विक्टोरिया एंड अब्दुल: द एक्सट्राऑर्डिनरी ट्रू स्टोरी ऑफ द क्वीन्स क्लोजेस्ट कान्फिडैंट’में विक्टोरिया और अब्दुल के बीच के संबंधों पर रोशनी डाली और लोग अब्दुल करीम को जान पाए। इन दोनों के बीच रिश्ते क्या थे इसको लेकर हमेशा ही ब्रिटिश परिवार खामोश रहता आया है लेकिन इतना तय कि जानबूझकर ही इतिहास और स्मृतियों से अब्दुल करीम को हटाया गया था।

फिल्म में महारानी विक्टोरिया के जीवन के उत्तरार्ध में भारत से आए अटेंडेट अब्दुल करीम के प्रति नजदीकी को दिखाया गया है।

फिल्म की कहानी इस प्रकार है कि अपने विवाह के पचास साल पर स्वर्ण जयंती समारोह मना रही महारानी विक्टोरिया अपने औपचारिक जीवन से परेशान होकर एक नीरस जीवन जी रही है। इसी दौरान भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी महारानी की सेवा में दो नौकर भेजती है जिसमें अब्दुल भी है। अब्दुल महारानी के लिए भारतीय क्लर्क का काम करता है और महारानी को नादान और भोले भाले अब्दुल की बेवूकूफियां, बचकानी हरकतें और भोलापन पसंद आ जाता है।

राजनयिक जीवन और प्रोटोकॉल की बाध्यताओं में बंधी महारनी फिर चहकने लगती हैं और ये अब्दुल की संगत का असर है। धीरे धीरे अब्दुल राजघराने के मुंशी से महारानी का सलाहकार और उर्दु टीचर बन जाता है। उधर अब्दुल और महारनी की नजदीकियों से राजमहल के वरिष्ठ लोग और नौकर चिढ़ने लगते हैं। इसके बाद राजमहल में शुरू होता है नफरत, धोखा और साजिशों का दौर जिसके चलते अब्दुल को वापस भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ता है।

विक्टोरिया के किरदार में 82 साल की जूडी डेच ने अच्छा अभिनय किया है लेकिन कहानी की कमजोर पकड़ के चलते कहीं कहीं वो एकरूपी नजर आती हैं। जूडी ने अपनी आंखों के अभियन से विक्टोरिया का किरदार जीवंत किया है। उनकी आंखों से पता चलता है कि रानी जीवन में कब अकेली हैं औऱ कब शरारत कर रही हैं।

अब्दुल को पहले ही इस बात की चेतावनी दी गई थी कि उसे रानी विक्टोरिया की तरफ बिल्कुल नहीं देखना है। बावजूद इसके अब्दुल ने अपने अंदर मौजूद बचकानी हरकतों के हाथों मजबूर होकर रानी की तरफ देखने लगा और वहां मौजूद विशेषाधिकार प्राप्त गौरवान्वित लोगों की मौजूदगी के बीच जब रानी से उसकी नजरें मिलीं तो उसने एक हल्की सी मुस्कान दे दी।

प्रोटोकॉल की परवाह न करते हुए भी अब्दुल ने जो हल्की सी छेड़छाड़ करने की कोशिश की थी उससे रानी इमोशनल हो गईं। बेशक एक हिंदू अटेंडेंट के रानी पर बढ़ते प्रभाव से राजघराने के परिवार के सदस्य और नौकर परेशान होने लगते हैं लेकिन बाद में पता चलता है कि वह हिंदू नहीं बल्कि मुस्लिम है। 

82 साल की उम्र में जूडी डेंच दर्शकों का ध्यान आकर्षित कर पाने में पूरी सफल नज़र आ रहीं। स्क्रीन पर केवल उनकी मौजूदगी ही आपका ध्यान नहीं खींचेगी बल्कि उनकी निगाहों से शरारत, उदासी, अकेलापन, तड़प जैसे कई भाव आपको स्पष्ट नज़र आएंगे।

उन्होंने बड़ी सहजता से अपने इस किरदार में जान डाल दी है। आपका दिल इस उम्रदराज ऐक्ट्रेस के लिए तब पसीज जाएगा जब वह खुद को लेकर खयालों में खो जाती हैं, तेज हवाएं चल रही और अब्दुल से कहती हैं, ‘जिसे भी मैंने प्यार किया वह नहीं रहा, लेकिन मैं आगे बढ़ती रही।’ डेंच ही वह वजह हैं जो इस दिलचस्प कहानी को एक ‘स्कैंडल’ में तब्दील होने से रोकती हैं। 

 
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