CG Rajnandgaon Assembly Election: करूणा शुक्ला ने दी थी डॉ रमन को कड़ी चुनौती.. क्या गिरीश दोहरा पाएंगे इतिहास? पढ़े राजनांदगांव का पूरा समीकरण
CG Rajnandgaon Assembly Election करूणा शुक्ला ने दी थी डॉ रमन को कड़ी चुनौती.. क्या गिरीश दोहरा पाएंगे इतिहास?
CG Rajnandgaon Assembly Election
राजनांदगाव : कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए अपनी पहली सूची जारी कर दी है। इस लिस्ट में कांग्रेस ने उन सभी विधानसभाओं के नाम शामिल किये है जहां या तो विरोध नहीं है या फिर आम कार्यकर्ताओं में अपने उम्मीदवार को लेकर एक आम सहमति है। इस सूची में मुख्यमंत्री, गृहमंत्री समेत कैबिनेट के लगभग सभी मंत्रियों के नाम है। वही इस पूरे सूची में जो सबसे लो प्रोफ़ाइल प्रत्याशी का नाम है उसे सबसे हाई प्रोफाइल सीट से उम्मीदवार बनाया गया है। गिरिश देवांगन इस बार डॉ रमन सिंह के खिलाफ चुनावी मैदान में होंगे। कांग्रेस की तरफ से यह अबतक का सबसे चौंकाने वाला फैसला है। राजनीतिक पंडितो का मानना है कि गिरीश देवांगन के तौर पर कांग्रेस ने इस सीट पर गंभीरता नहीं दिखाई है। शायद कांग्रेस को इस सीट को लेकर ज्यादा भरोसा नहीं है इसलिए उन्होंने किसी बड़े नाम के बजाएं संगठन के नेता को उम्मीदवार बनाकर खानापूर्ति किया है। पिछली बार के मुकाबले कांग्रेस ने और भी कमजोर प्रत्याशी देकर राजनांदगांव की इस लड़ाई को एकतरफा बना दिया है। कुछ ऐसा ही मानना भाजपा के दिग्गज नेत्री सरोज पांडेय का है। वह कहती है कि कांग्रेस इस सीट पर इस बार रिकॉर्ड मतों से हारेगी। तो अब सवाल उठता है कि क्या गिरीश देवांगन 2018 की उम्मीदवार करूणा शुक्ल की बराबरी कर पाएंगे? जितने वोट करूणा शुक्ल ने हैसल किये थे उतना गिरीश भी हासिल कर पाएंगे?
करूणा ने दी थी कड़ी टक्कर
बात करे पिछले चुनाव की तो 2018 में भी कांग्रेस इस सीट से हार गई थी लेकिन हार का अंतर काफी कम था। इस तरह कांग्रेस ने इस सीट पर काफी मेहनत की थी। उम्मीद थी कि बदलाव के लहर के बीच सीएम डॉ रमन सिंह भी चुनाव हार जायेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उन्होंने कांग्रेस की करूणा शुक्ला को करीब 17 वोटों के अंतर से हरा दिया। लेकिन यह एक तरह से कांग्रेस के लिए जीत के सामान ही थी। कांग्रेस उम्मीदवार ने 2018 में इस सीट पर करीब 41 फ़ीसदी वोट हासिल किये थे, जबकि डॉ रमन सिंह को 52 प्रतिशत। 11 प्रतिशत वोटो का अंतर निकटतम चुनाव में कभी नहीं रहा। तो क्या गिरीश देवांगन इस अंतर को कम कर पाएंगे या फिर कांग्रेस के लिए यह भाजपा का अभेद किला बनकर रह जाएगा?
जेसीसी ने बदला समीकरण
वोटों के इस अंतर पर राजनीतिक पंडितो की राय अलग है। वे इसके लिए अजीत जोगी के पार्टी उम्मीदवार को भी वजह मानते है। लेकिन आंकड़े इससे उलट है, क्योंकि 2018 के चुनाव में जेसीसी (जे) प्रत्याशी दीपक यादव को महज एक फ़ीसदी मत ही मिल पाया था। इस तरह तीसरे दल के फैक्टर को पीछे छोड़कर कांग्रेस ने इस सीट पर अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई थी। जनता कांग्रेस जोगी यहाँ कांग्रेस का वोट काट पाने में पूरी तरह नाकाम रही थी। दूसरी तरफ डॉ रमन की घेराबंदी भी तगड़ी थी। 2018 में यहाँ भाजपा, कांग्रेस और जेसीसी के उम्मीदवारों के आलावा अलग-अलग दाल और निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या नोटा को मिलकर 31 थी।
कांग्रेस का नहीं रहा बेहतर प्रदर्शन
2003 के बाद से कांग्रेस के लिए राजनांदगांव की सीट दूर की कौड़ी साबित होती रही है। वही जब डॉ रमन सिंह ने बतौर सीएम इस सीट को चुना तब से कांग्रेस का पतन बढ़ता चला गया। कांग्रेस को 2013 इस सीट पर 34.30 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी तरह 2008 में 34.47 फ़ीसदी। 2003 में कांग्रेस के उदय मुदलियार यहाँ से विजयी रहे थे। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी लीलाराम भोजवानी को मात दी थी लेकिन तब भी दोनों उम्मीदवारों के बीच वोटों का अंतर बेहद मामूली था। भाजपा के लीलाराम को 37.85 प्रतिशत जबकि विजयी उम्मीदवार उदय मुदलियार को 43081वोटों के साथ करीब 38 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।
इमोशनल कार्ड हुआ था फेल
भाजपा के डॉ रमन सिंह सियासत के माहिर खिलाड़ी यूं ही नहीं माने जाते रहे। ऐसा इसलिए क्योंकि दरभा घाटी हत्याकांड के बाद 2013 में हुए चुनाव पूरा प्रयास था की राजनांदगांव में भावनात्मक लहर पैदा कर सीएम को पटखनी दी जाएँ। इसके लिए कांग्रेस ने रणनीति के तहत इस घटना में जान गंवाने वाले पूर्व विधायक और दिग्गज नेता उदय मुदलियार की पत्नी को टिकट दिया। कांग्रेस ने इस नरसंहार के बाद आक्रामक तरीके से प्रचार प्रसार भी किया लेकिन विपक्ष की यह रणनीति पूर्व सीएम डॉ रमन सिंह के आगे पूरी तरह फेल साबित हुई। अलका मुदलियार के तौर पर कांग्रेस को 2013 में ही हार का मुँह देखना पड़ा। अलका मुदलियार को 50,931वोट के तौर पर 34.30 फ़ीसदी वोट मिले जबकि डॉ रमन सिंह 86,797 वोटो से शानदार जीत दर्ज की। डॉ रमन को इस बार भी 58 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल हुए थे।
इमरजेंसी की वजह से कांग्रेस को मिली हार
राजनांदगांव विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास कांग्रेस से शुरू होता है लेकिन अब यह सीट भाजपा का अभेद किला बन चुका है। अविभाजित मध्यप्रदेश में 1967 में हुए चुनाव में कांग्रेस से किशोरीलाल शुक्ला विधायक चुने गए थे। 1972 में किशोरीलाल ने इस सीट पर जीत का सिलसिला जारी रखा, लेकिन इमरजेंसी से उपजे सत्ता विरोधी लहर में कांग्रेस यह सीट नही बचा पाई। विधानसभा चुनाव 1977 में जनता दल के ठाकुर दरबार सिंह ने किशोरीलाल शुक्ला को हराकर राजनांदगांव विधानसभा सीट पर अपना कब्जा कायम किया। 1980 में फिर किशोरीलाल शुक्ला निर्दलीय चुनाव लड़कर यहाँ से विधायक बने। साल 1985 में कांग्रेस से बलबीर खानुजा और 1990 में भाजपा के लीलाराम भोजवानी विधायक चुने गए। 1990 में भाजपा ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की थी लेकिन उदय मुदलियार के जीत के बाद यह क्रम फिर टूटा। वही 2008 से लगातार डॉ रमन सिंह यहां से जीत रहे है।
ओबीसी किंगमेकर
राजनांदगांव विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक जनसंख्या ओबीसी यानी पिछड़ा वर्ग की है। ओबीसी में भी सबसे ज्यादा साहू, लोधी, यादव और अन्य शामिल हैं। क्षेत्र में जनरल मतदाताओं की संख्या भी बेहतर है। यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा ओबीसी फैक्टर को लेकर चुनाव लड़ा जाता है। बात करें अगर शहरी क्षेत्र की तो यहाँ भी ज्यादातर मतदाता सामान्य और ओबीसी कैटेगरी से आते हैं। यही यहां जीत का अंतर तय करते हैं।


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