केंद्र सरकार के एक जवाब के बाद इन दिनों सियासत गर्माई हुई है। करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की हिरासत में बेरहमी से मारे गए कैप्टन सौरभ कालिया के मामले को अंतर्राष्ट्रीय अदालत में ले जाने के मुद्दे पर केंद्र सरकार पीछे हटी फिर चौतरफा गर्माती राजनीति और दबाव के बाद अब सरकार ने कहा है कि वो इसकी संभावनाए तलाशेगी कि अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में इसे ले जाया जाए कि नहीं। साल 1999 में शहीद हुए कैप्टन सौरभ कालिया के परिवार ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर करके इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाने की मांग की थी, क्योंकि युद्ध बंदियों के साथ इस तरह का अमानवीय बर्ताव जेनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन है। 2012 में उस समय विपक्ष में बैठी बीजेपी ने यूपीए सरकार को ऐसे ही फ़ैसले पर जमकर घेरा था, लेकिन मोदी सरकार के रुख़ पर दुख जताते हुए कैप्टन सौरभ कालिया के पिता एन.के. कालिया ने कहा है कि उन्हें लगा था कि बीजेपी सरकार ज़्यादा देशभक्त है, लेकिन वो भी पुरानी सरकार के ही स्टैंड पर कायम है।हालांकि पाकिस्तान की सरकार कैप्टन सौरभ कालिया पर दरिंदगी की बात से इनकार करती रही है, लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों ने इसे स्वीकर किया था और इसका वीडियो भी पिछले साल यूट्यूब पर वायरल हुआ है।राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर के सवाल के जवाब में विदेश मामलों के राज्यमंत्री जनरल वी.के. सिंह ने कहा कि इस मसले से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को 22 सितंबर 1999 को UN महासभा और 6 अप्रैल 2000 को मानवाधिकार आयोग में बयानों के ज़रिए अवगत करा दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के ज़रिए क़ानूनी कार्रवाई के बारे में भी सारे पहलुओं पर गौर किया गया, लेकिन ये संभव नहीं लगता।राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि जब हमारे नागरिकों के खिलाफ कोई अपराध होता है तो सरकार का एक दायित्व बनता है, एक ड्यूटी बनती है। उन्होंने कहा, सरकार को इस मामले में जिम्मेदारी का साथ गुनहगार को कानून के दायरे में लाना चाहिए।