कांग्रेस-राजद के बीच दरार से बिहार में महागठबंधन टूटने की कगार पर |

कांग्रेस-राजद के बीच दरार से बिहार में महागठबंधन टूटने की कगार पर

कांग्रेस-राजद के बीच दरार से बिहार में महागठबंधन टूटने की कगार पर

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:02 AM IST, Published Date : October 23, 2021/5:07 pm IST

पटना, 23 अक्टूबर (भाषा) बिहार के विपक्षी महागठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और विधानसभा चुनावों में अनुमान से कहीं बेहतर प्रदर्शन करने के करीब एक साल बाद ही यह टूटने की कगार पर पहुंच गया है।

पिछले साल राज्य विधानसभा चुनाव में पांच पार्टियों का विपक्षी गठबंधन बहुमत से सिर्फ 10 सीट दूर रहा था।

कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास ने शुक्रवार को कहा कि उनकी पार्टी राज्य में ‘सभी 40 सीटों’ पर चुनाव लड़ेगी। उनकी इस घोषणा से लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल चकित रह गयी। राजद पर कनिष्ठ सहयोगी ने गठबंधन ‘धर्म’ का पालन नहीं करने का आरोप लगाया है।

राजद के राज्य अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने अविश्वास व्यक्त करते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘जब आम चुनाव 2024 में होने हैं, तो लोकसभा चुनाव के बारे में अभी बात करने का क्या तुक है।’

दास से यह सवाल भी किया गया कि क्या वह व्यक्तिगत राय प्रकट कर रहे हैं या पार्टी ‘हाईकमान’ के विचारों को रख रहे हैं, क्योंकि माना जाता है कि लालू प्रसाद के गांधी परिवार के साथ अच्छे संबंध हैं। उन्होंने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘’मैं विवाद में नहीं पड़ना चाहता… लेकिन कृपया यह समझें कि एआईसीसी का प्रभारी ऐसी बात नहीं कह सकता जो पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग हो।’

महागठबंधन के अंदर तकरार काफी बढ़ गया प्रतीत होता है। अगले हफ्ते दो विधानसभा क्षेत्रों- तारापुर और कुशेश्वर स्थान में उपचुनाव होने हैं। राजद ने कांग्रेस को विश्वास में लिए बिना दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी। कुछ दिनों की चुप्पी के बाद, कांग्रेस ने पलटवार करते हुए दोनों सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की भी घोषणा कर दी।

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कांग्रेस द्वारा कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल किए जाने के बाद तकरार बढी है क्योंकि माना जाता है कि उनकी तेजस्वी यादव से ‘प्रतिद्वंद्विता’ है। जाति के आधार पर तेजस्वी आगे दिखते हैं लेकिन भाषण शैली को लेकर कुमार आगे प्रतीत होते हैं।

कुमार अभी दो सीटों के लिए प्रचार की खातिर राज्य में हैं। उन्होंने इस बात को खारिज करते हुए कहा, ‘कोई तुलना नहीं है। उनके (तेजस्वी के) माता-पिता मुख्यमंत्री रहे हैं। मैं जमीन से शुरू कर रहा हूं।’’

कुमार ने इससे पहले बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी (बीपीसीसी) मुख्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राहुल गांधी की उन्हें , हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी जैसे लोगों को मंच देने के लिए सराहना की थी।

दो युवा नेताओं के बीच कथित प्रतिद्वंद्विता को लेकर विमर्श की शुरुआत 2019 के लोकसभा चुनावों में हुई जब कन्हैया कुमार ने अपने गृह नगर बेगूसराय क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ा। राजद उम्मीदवार तनवीर हसन के भी उम्मीदवार होने से भाजपा के विरोधी मतों में विभाजन हुआ तथा जोरदार प्रचार अभियान के बावजूद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे कुमार चार लाख से अधिक मतों से हार गए।

बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा ने कहा कि जब कांग्रेस और राजद के उतार-चढ़ाव भरे संबंधों की बात आती है तो ‘कन्हैया कोई मुद्दा नहीं हैं।’

शर्मा ने जोर दिया, ‘‘यह सुनिश्चित करना लालू प्रसाद की रणनीति रही है कि कांग्रेस ऊंची जातियों, दलितों और मुसलमानों के बीच अपना समर्थन फिर से हासिल नहीं कर सके। मजबूत कांग्रेस को राजद के धर्मनिरपेक्ष विकल्प के तौर पर देखा जाएगा। कोई आश्चर्य नहीं है कि वर्षों से उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उच्च जाति के हमारे उम्मीदवारों को उन सीटों से लड़ने का मौका नहीं मिलता है जहां हमारे जीतने की अच्छी संभावना है। वह उन सीटों को राजद के लिए ले लेते हैं या गठबंधन के किसी अन्य सहयोगी की झोली में डाल देते हैं।

भक्त चरण दास ने भी समान राय व्यक्त की और कहा ‘राजद 70 सीटों पर लड़ने के बावजूद 20 से कम सीटें जीतने के लिए हमारा मज़ाक उड़ाता है…।’’

इस बीच सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग महागठबंधन में चल रहे घटनाक्रम को देख रहा है और उसके लिए सकारात्मक बात यह है कि उपचुनावों में उसे विभाजित विपक्ष से मुकाबला करना होगा। दोनों सीटों पर 30 अक्टूबर को मतदान है।

भाषा अविनाश नरेश

नरेश

 

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