बिहार में सुशील मोदी जैसे पुराने चेहरों को बाहर रखने के कारण राजग सरकार की शुरुआत खराब रही |

बिहार में सुशील मोदी जैसे पुराने चेहरों को बाहर रखने के कारण राजग सरकार की शुरुआत खराब रही

बिहार में सुशील मोदी जैसे पुराने चेहरों को बाहर रखने के कारण राजग सरकार की शुरुआत खराब रही

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:52 AM IST, Published Date : August 10, 2022/7:10 pm IST

पटना, 10 अगस्त (भाषा) बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद सुशील कुमार जैसे अनुभवी भाजपा नेताओं को बाहर रखने के कारण जदयू-भाजपा सरकार की शुरुआत खराब रही।

जनता दल यूनाईटेड (जदयू)और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेताओं ने बुधवार को कहा कि नीतीश कुमार के साथ ‘‘अच्छे संबंध’’ रखने वाले और गठबंधन की राजनीति को ‘‘समझने’’ वाले सुशील मोदी को सरकार से बाहर रखा गया।

नीतीश कुमार और सुशील मोदी की तुलना बिहार की राजनीति में सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली की हिट क्रिकेट जोड़ी से की गई जिन्होंने 2005 से राजग की नौका को सुचारू रूप से चलाया था। लेकिन 2020 में चौथी बार गठबंधन के सत्ता में आने के बाद भाजपा ने सुशील मोदी और पहले की राजग सरकार में शामिल रहे वरिष्ठ नेताओं को सरकार और बिहार की राजनीति से बाहर रखा।

पिछली राजग सरकार में सुशील मोदी के बजाय तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी को उपमुख्यमंत्री के रूप में नामित किया गया था।

गठबंधन टूटने के एक दिन बाद बुधवार को पीटीआई-भाषा से बात करते हुए दोनों दलों के वरिष्ठ नेताओं ने ‘‘बडे राजनीतिक कद वाले नेताओं के नए समूह’’ को सरकार में शामिल किया जाना और मतभेदों को सुलझाने में संवाद की कमी की ओर इशारा किया।

एक नेता ने कहा कि भाजपा नेतृत्व ने सुशील मोदी, नंद किशोर यादव, प्रेम कुमार और उनके जैसे अन्य भाजपा मंत्रियों के पूरे सेट को बदल दिया जो नीतीश कुमार के साथ अच्छी तरह से जुड़े थे और गठबंधन की समझ रखते थे। बिहार की राजनीति में ‘‘छोटे मोदी’’ के रूप में चर्चित सुशील मोदी को राज्यसभा भेजा गया।

उन्होंने कहा कि नेताओं के नए समूह का अपने विधायकों और पार्टी पर कोई प्रभाव एवं नियंत्रण नहीं था तथा कई नेताओं ने समय-समय पर राज्य सरकार के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां कीं।

जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि 2020 में सत्ता में वापस आने वाला राजग का नया अवतार शुरू से ही अस्थिर था और उसमें संवादहीनता थी ।

नीतीश कुमार की पार्टी के एक अन्य नेता ने दावा किया कि नए भाजपा नेतृत्व के पास एक ‘‘गुप्त योजना’’ थी और जदयू को लगा कि उसे कम करके आंका जा रहा है। उन्होंने कहा कि सुशील मोदी एक पुराने भाजपा नेता हैं जो गठबंधन की राजनीति को बेहतर ढंग से समझते थे।

जदयू नेता ने कहा, ‘‘लेकिन मौजूदा व्यवस्था में भाजपा के मंत्रियों का उस पार्टी पर कोई नियंत्रण नहीं था जिसके नेता अक्सर अपनी ही सरकार के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करते थे जिससे विरोधियों को उसे निशाना बनाने का मौका मिलता था।’’

जदयू नेता ने आरोप लगाया कि 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू के खिलाफ लोजपा नेता चिराग पासवान के प्रति भाजपा का ‘‘समर्थन’’ और राज्य के भाजपा नेताओं के शत्रुतापूर्ण बयानों ने उनकी पार्टी को असहज कर दिया।

दोनों नेताओं ने आरोप लगाया, ‘‘आरसीपी सिंह प्रकरण बिहार राजग में भाजपा के भयावह मंसूबों की श्रृंखला में नवीनतम था।’’

जदयू के नेता भाजपा पर पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का जदयू के खिलाफ ‘‘महाराष्ट्र को दोहराने’’ के लिए ‘‘उपयोग’’ करने का आरोप लगाते रहे हैं।

हाल में महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के अधिकांश विधायकों और सांसदों को लामबंद किया और भाजपा से हाथ मिलाकर उद्धव ठाकरे सरकार को गिरा दिया।

सुशील मोदी ने जदयू के आरोप को खारिज करते हुए कहा कि उनकी पार्टी और जदयू की संख्या को देखते हुए राज्य में इस तरह से सरकार बनाना असंभव था।

हालांकि भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने 2020 में नई सरकार बनने के बाद से ‘‘संवाद की कमी’’ का उल्लेख किया।

भाजपा नेता ने कहा, ‘‘बिहार में राजग के मंत्रियों के बीच कोई उचित समन्वय नहीं था। राज्य में हमारी पार्टी में से कोई भी एक अनुभवी नेता मुख्यमंत्री से किसी मुद्दे पर साहसपूर्वक बोलने की स्थिति में नहीं था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘बिहार में पहले की राजग सरकारों के विपरीत वर्तमान व्यवस्था में शुरू से ही संवादहीनता थी।’’

उन्होंने कहा कि इसके अलावा सुशील मोदी, पटना विश्वविद्यालय की राजनीति में नीतीश कुमार के समकालीन नंद किशोर यादव और प्रेम कुमार जैसे वरिष्ठ भाजपा नेता नवीनतम राजग मंत्रिमंडल में नहीं थे। इन वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति में एक साथ भाग लिया था।

पटना साहिब से सात बार विधायक रहे तथा भाजपा अध्यक्ष के रूप में काम कर चुके नंद किशोर यादव पहले के राजग मंत्रिमंडल में भाजपा के शीर्ष मंत्रियों में थे। उन्हें 2020 में बिहार विधान सभा का अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा थी पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने विजय सिन्हा को चुना।

विधानसभा में मुख्यमंत्री के साथ सिन्हा की तनातनी लंबे समय तक मीडिया की सुर्खियों में बनी रही।

एक जदयू नेता ने तनावपूर्ण संबंधों पर कहा, ‘‘पहले के समय में सुशील मोदी जैसे अनुभवी राजनेता जानते थे कि कहां बोलना है और कब चुप रहना है। लेकिन भाजपा के मंत्रियों और राज्य पार्टी नेतृत्व के वर्तमान सेट में यह गुण गायब था । जो आखिरकार टूट गया।’’

भाषा अनवर

रंजन राजकुमार

राजकुमार

 

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