बतंगड़ः हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी
बतंगड़ः हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी, batangad by Saurabh Tiwari : Chaos in Kolkata at the trailer launch of ‘Bengal Files’
- सौरभ तिवारी
रिलीज से पहले ही विवादों में घिरी विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘बंगाल फाइल्स’ के ट्रेलर लॉन्च के मौके पर कोलकाता में जमकर बवाल हुआ। ट्रेलर की लॉन्चिंग के लिए वही तारीख चुनी गई जो इतिहास में डॉयरेक्ट एक्शन डे के तौर पर इतिहास में काले अक्षरों से अंकित है। फिल्म से ट्रेलर से अंदाजा मिलता है कि ये फिल्म देश के विभाजन के पीछे के कारणों और उसके बाद बने हालात को उजागर करती है। ट्रेलर में एक करेक्टर का डायलाग है कि, ‘जब अवैध घुसपैठिए 10 परसेंट हो जाते हैं तो वे वोट बैंक बन जाते हैं, 20 फीसदी होने पर ये अपने राइट्स मांगते हैं और 30 फीसदी हो जाने पर नये कंट्री की डिमांड करते हैं।‘
ये संयोग रहा कि बंगाल फाइल फिल्म के ट्रेलर रिलीज के एक दिन पहले यानी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में भी अवैध घुसपैठ की समस्या पर चिंता जाहिर करते हुए इसे देश के लिए बड़ा खतरा बताया। प्रधानमंत्री मोदी ने घुसपैठियों पर लगाम लगाने के लिए हाई पावर डेमोग्राफी मिशन शुरू करने का ऐलान करके बड़ा सियासी संदेश दिया है। प्रधानमंत्री मोदी का आबादी असंतुलन पर चिंता जाहिर करते हुए ये कहना कि, ‘सीमावर्ती इलाकों में डेमोग्राफी बदल रही है और हम अपना देश घुसपैठियों के हवाले नहीं कर सकते’, साफ संकेत देता है कि प्रधानमंत्री ने एक बार फिर से NRC के जिन्न को बाहर निकाल दिया है।
बिहार विधानसभा चुनाव प्रक्रिया के दौरान SIR को लेकर छिड़ी तकरार के बीच लाल किले से घुसपैठ का मुद्दा उठाए जाने के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। बिहार में SIR प्रक्रिया के दौरान मतदाता सूची में बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल जैसे देशों के विदेशी नागरिकों के नाम मिलने का दावा भाजपा कर रही है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घुसपैठ को डेमोग्राफी चेंज किए जाने की साजिश बताकर दो माह बाद बिहार और अगले साल की शुरुआत में पश्चिम बंगाल और असम में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में ध्रुवीकरण का नया मॉडल पेश कर दिया है।
घुसपैठ की समस्या को मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण की कोशिश करना भाजपा की कोई नई सियासी जुगतबाजी नहीं है। पिछले साल भाजपा ने झारखंड में रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों की ओर से आदिवासियों का हक छीने जाने को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। तब ‘आबादी का असंतुलन’ प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया था। हालांकि भाजपा को झारखंड में सत्ता तो नहीं मिली लेकिन वो अवैध घुसपैठ को दूसरे प्रभावित राज्यों में भी चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयोग जारी रखना चाहती है।
बिहार में चल रहा विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) कार्यक्रम अवैध विदेशी नागरिकों से वोटिंग पावर छीनने की एक कवायद के रूप में ही देखा जा रहा है। गृहमंत्री अमित शाह ने अवैध घुसपैठियों के खिलाफ तल्ख तेवर दिखाते हुए 8 अगस्त को सीतामढ़ी की सभा में कह चुके हैं कि, ‘जो भारत में नहीं जन्मा, हमारा संविधान उसे भारत में वोट देने का अधिकार नहीं देता है।’ शाह ने आरोप लगाया था कि विपक्ष SIR का विरोध ही इसलिए कर रहा है क्योंकि घुसपैठिए उसका वोट बैंक हैं। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से हाई पावर डेमोग्राफी मिशन शुरू करने का ऐलान करके बहस को नया रंग दे दिया है।
अवैध घुसपैठियों के खिलाफ केंद्र की ओर से शुरू की गई नई मुहिम के इसलिए भी गहरे सियासी मायने हैं क्योंकि बिहार के बाद पश्चिम बंगाल और असम में भी चुनाव होने वाले हैं। और इन दोनों ही राज्यों में अवैध घुसपैठ भाजपा का बड़ा एजेंडा रहा है। ‘हाई पावर डेमोग्राफी मिशन’ को चर्चा में लाकर भाजपा की कोशिश TMC और कांग्रेस को अपनी पिच पर खिलाने की है। इन दोनों राज्यों में पहले से ही हिंदू-मुस्लिम आबादी के असंतुलन का मुद्दा गरमाया हुआ है। NRC को लेकर दोनों ही राज्यों में भाजपा और विपक्ष के बीच तीखी तकरार चल रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी NRC के बाद अब SIR को भी केंद्र सरकार और चुनाव आयोग की साजिश बताते हुए इसे पश्चिम बंगाल में लागू नहीं करने का ऐलान कर चुकी है। जाहिर है कि केंद्र ने हाई पावर डेमोग्राफी मिशन का नया दांव चलकर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान टकराहट का नया मोर्चा खोल दिया है।
लेकिन हैरानी की बात ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये पता लगने में 11 साल लग गए कि अवैध घुसपैठ की वजह से उनके देश की डेमोग्राफी बदल रही है। उन्हें इतने साल बाद ये बात समझ में आई कि, ‘घुसपैठिए मेरे देश के नौजवानों की रोजी रोटी छीन रहे हैं। ये घुसपैठिए मेरे देश की बहन बेटियों को निशाना बना रहे हैं, जो बर्दाश्त नहीं होगा।’
प्रधानमंत्री मोदी की इस चिंता को लेकिन सवाल उठता है कि सीमा से होने वाली घुसपैठ को रोकने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? ये घुसपैठिए अब अगर सीमावर्ती इलाकों के अलावा देश के अंदरूनी इलाकों तक में अपना ठिकाना बना चुके हैं, तो जिम्मेदार कौन है? भाजपा विरोधी सियासी दलों की ओर से इन सीमापार के घुसपैठियों को वैधानिक दर्जा दिला कर अपना वोट बैंक बनाने के सभी दस्तावेजी इंतजाम किए जा चुके हैं।
अब ऐसे हालात में जरा ‘बंगाल फाइल’ फिल्म के उस डॉयलाग पर फिर से गौर फरमाइए जिसका जिक्र मैंने इस लेख के शुरुआत में किया था। पश्चिम बंगाल और असम समेत कई राज्यों में घुसपैठी अब ‘वोट बैंक’ में तब्दील हो चुके हैं। बंगाल फाइल का डॉयलाग इनके 10 फीसदी से ज्यादा हो जाने पर जिस खतरे की ओर इशारा करता है, उसकी आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि भाजपा को इन घुसपैठियों के होने से देश को या दूसरे शब्दों में कहें तो खुद को होने वाले सियासी नुकसान की चिंता सता रही है।
घुसपैठियों से निबटने की केंद्र सरकार की मौजूदा तैयारी और तेवरों पर दो अलग-अलग गानों की दो लाइनें बड़ी मौजूं हैं। कौन सी लाइन के साथ आप इत्तेफाक रखते हैं, ये आपकी मर्जी। पहले गाने की लाइन है कि, ‘हुजूर आते-आते बड़ी देर कर दी।‘ और दूसरे गाने की लाइन है कि, ‘सब कुछ लुटा कर होश में आए तो क्या किया।‘
हालांकि भाजपा समर्थक ये कहकर भी खुद को दिलासा दिल सकते हैं कि, ‘जब जागो, तभी सवेरा।‘
(लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।)

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