बतंगड़ः पनौती सिद्ध करने के पीछे छिपी कुंठित मनौती

Batangad: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति उनके विरोधियों में इस कदर जहर भरा है कि वो अपनी इस नफरत के चलते देश के खिलाफ भी जाने से गुरेज

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  • Publish Date - November 20, 2023 / 06:34 PM IST,
    Updated On - November 20, 2023 / 06:34 PM IST

सौरभ तिवारी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति उनके विरोधियों में इस कदर जहर भरा है कि वो अपनी इस नफरत के चलते देश के खिलाफ भी जाने से गुरेज नहीं करते। नफरत का आलम ये है कि वे मोदी को नीचा दिखाने के हाथ आए मौके को भुनाने के फेर में देश तक को नीचा दिखाने से पीछे नहीं हटते। मोदी विरोधियों को प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने का एक ऐसा ही मौका वन डे वर्ल्ड कप फाइनल मैच के दौरान हाथ लगा। मोदी विरोधियों ने प्रधानमंत्री की स्टेडियम में मौजूदगी को ‘पनौती’ मानकर उसे सोशल मीडिया में ट्रेंड करा दिया। मोदी को पनौती साबित करने के जुनून में मोदी विरोधी अप्रत्यक्ष रूप से कामना यही कर रहे थे कि भारत ये मैच हार जाए। हुआ भी यही। लेकिन भारत की इस हार के लिए मोदी विरोधी मोदी को पनौती सिद्ध करके अपनी जीत तलाशने में सफल रहे।

याद करिए 7 सितंबर 2019 का वो क्षण जब चंद्रयान-2 का अपने आखिरी पड़ाव पर इसरो से संपर्क टूट गया था। उस वक्त भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वैज्ञानिकों की हौसला आफजाई के लिए इसरो में मौजूद थे। उस वक्त भी चंद्रयान-2 की असफलता को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी को ‘पनौती’ बताते हुए विरोधियों ने उनका मजाक उड़ाया था। देश उस पल को भला कैसे भूल सकता है जब इसरो के तत्कालीन प्रमुख के सिवन फूट-फूटकर रो पड़े थे और प्रधानमंत्री ने उन्हें गले लगाकर सांत्वना दी थी। तब प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाते हुए कहा था कि, ‘हमें पीछे मुड़कर निराशा की तरफ नहीं देखना है, हमें सबक लेना है, सीखना है, आगे ही बढ़ते जाना है और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकना नहीं है।’ और फिर वो दिन भी आया जब इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम देकर अपने प्रधानमंत्री के विश्वास को साकार करके दिखा दिया। वर्ल्ड कप फाइनल में मिली हार के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी मायूस खिलाड़ियों को ढांढस बढ़ाने के लिए ड्रेसिंग रूम पहुंचे और उन्हें इस हार को भूलकर अगली बार देश का परचम लहराने के लिए प्रेरित किया है।

दरअसल प्रधानमंत्री मोदी के प्रति अंध विरोध के चलते विरोधी कब राजनीतिक विरोध की सीमा रेखा पार करके देश विरोधी मानसिकता में चले जाते हैं, उन्हें खुद पता नहीं चलता। प्रधानमंत्री मोदी जब भी किसी उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल करने का संकल्प और लक्ष्य निर्धारित करते हैं, विरोधी इस बात की कामना में जुट जाते हैं कि देश ये लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए। इस संकुचित सोच के मूल में आशंका यही रहती है कि कहीं इस उपलब्धि का श्रेय मोदी ना ले जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसा ही एक संकल्प देश को विश्व की तीसरे नंबर की इकोनामी बनाने का लिया है। अब ये बताने की जरूरत नहीं है कि वो कौन लोग हैं जो इस बात की कामना में जुट गए हैं कि भारत कहीं विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था ना बन जाए। विपक्ष की इसी सोच पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव चर्चा के दौरान कहा था कि, ‘जब कोई मंगल कार्य होता है. जब बच्‍चे अच्‍छे कपड़े पहनते हैं तो उन्‍हें काला टीका लगा दिया जाता है ताकि मंगल सुरक्षित रहे। विपक्ष की सोच भी वही काले टीका लगाकर मंगल को सुरक्षित रखने जैसी हो गई है।’

अहमदाबाद में हुए वन डे क्रिकेट फाइनल मुकाबले में भी मोदी विरोधियों ने मोदी को ‘पनौती’ सिद्ध करके अपनी उसी कुंठित सोच को प्रदर्शित किया है। मोदी विरोधियों को चिंता इस बात की सता रही थी कि कहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फाइनल में भारत की जीत का राजनीतिक फायदा ना उठा ले जाएं। लिहाजा मोदी को पनौती सिद्ध करने की प्रत्यक्ष कोशिश में अप्रत्यक्ष कामना यही थी कि भारत मैच हार जाए। सोशल मीडिया पर पनौती ट्रेंड कराने के लिए कैसे-कैसे कमेंट किए गए, उससे ही विरोधियों की कुंठा को समझा जा सकता है। हद तो ये भी रही कि भारत के हारने लिए प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विपक्षी नेताओं ने बयानबाजी भी शुरू कर दी। बिहार के श्रम संसाधन मंत्री आरजेडी नेता सुरेंद्र राम ने हार के लिए पीएम मोदी को जिम्मेदार ठहरा दिया तो शिवसेना उद्धव गुट के संजय राउत ने अपनी कुंठा का दायरा बढ़ाते हुए मोदी के साथ-साथ अहमदाबाद को भी अपशकुन करार दिया। संजय राउत ने कहा कि अगर ये मैच मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में होता तो भारत को हार का सामना नहीं करना पड़ता। वहीं राजस्थान के आरएलपी नेता हनुमान बेनीवाल भी नरेंद्र मोदी को हार का जनरेटर तक बोल दिया।

बेशक विपक्षी नेता अपनी राजनीतिक दुर्भावना के चलते प्रधानमंत्री मोदी को क्रिकेट वर्ल्ड कप फाइनल में भारत की हार के लिए जिम्मेदार ठहराएं लेकिन ये एक सच्चाई है कि पिछले कुछ सालों में भारत ने बाकी क्षेत्रों के अलावा खेल के क्षेत्र में भी दुनिया में अपना दबदबा बनाया है। केंद्र सरकार को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने ‘खेलो इंडिया’ जैसा अभियान शुरू करके खिलाड़ियों को बेहतर प्रदर्शन के लिए माहौल उपलब्ध कराया है। इसके सुखद परिणाम भी मिल रहे हैं। कुछ महीने पहले ही संपन्न हुए एशियन गेम्स में भारत ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए पहली बार मेडल की सेंचुरी लगाई है। देश ने 72 साल के एशियाड इतिहास में पहली बार कुल 107 मेडल जीते हैं। वहीं टोक्यो ओलंपिक में भी भारत ने 7 मेडल अपने नाम किए थे, जिसमें 1 गोल्ड, 2 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल थे। जबकि इससे पहले रियो ओलंपिक में भारत को केवल 2 ही मेडल मिले थे। प्रधानमंत्री मोदी व्यक्तिगत तौर पर भी खिलाड़ियों की हौसला आफजायी से पीछे नहीं रहते। टोक्यो ओलंपिक में महिला हॉकी टीम की हार के बाद उनका फोन पर टीम के खिलाड़ियों को सांत्वना देना लोग भला कैसे भूल सकते हैं। केंद्र की खेल नीति का ही ये असर है कि विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के अलावा दूसरे अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में भी भारत के खिलाड़ियों ने अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराई है।

बहरहाल टीम इंडिया भले फाइनल मुकाबला हार गई हो लेकिन ये नहीं भूलना चाहिए कि वो यहां तक लगातार दस मैच जीत कर पहुंची थी। ये ठीक है कि , जो जीता वही सिकंदर लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत अब गुलाम और दब्बू मानसिकता से निकल कर सिकंदर की विजयी मनोदशा वाला देश बन चुका है। चंद्रयान-2 की नाकामयाबी के बाद ‘पनौती’ के जिस संकल्प को वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 के जरिए सिद्ध करके दिखा दिया, देशवासियों को पूरा भरोसा है कि क्रिकेट खिलाड़ी भी अगला विश्वकप जीतकर उसे पूरा करके दिखा देंगे।

– लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।