दुलारचंद यादव हत्याकांड: कमज़ोर पड़ रहे जातीय समीकरणों की जड़ों को फिर मिला पानी

कमज़ोर पड़ रहे जातीय समीकरणों की जड़ों फिर मिला पानी, Dularchand Yadav murder case: The weakening caste equations have found new roots

दुलारचंद यादव हत्याकांड: कमज़ोर पड़ रहे जातीय समीकरणों की जड़ों को फिर मिला पानी
Modified Date: November 2, 2025 / 05:27 pm IST
Published Date: November 2, 2025 5:23 pm IST

  • परमेंद्र मोहन

Dularchand Yadav murder case: बिहार एक बार फिर यहां की दो सबसे दबंग जातियों के दशकों पुराने संघर्ष में फंसता दिख रहा है। साढ़े तीन फीसदी आबादी वाले सवर्ण भूमिहार और साढ़े चौदह फीसदी आबादी वाले ओबीसी यादव के बीच दबंगई की जंग का नतीजा है दुलारचंद यादव हत्याकांड। इस हत्या के आरोप में एनडीए खेमे के जेडीयू उम्मीदवार अनंत सिंह की गिरफ्तारी और इस गिरफ्तारी के बाद से करवट लेती दिख रही जातीय गोलबंदी ने कमज़ोर पड़ रहे जातीय समीकरणों की जड़ में फिर से पानी दे दिया है।

जो लोग भी बिहार की राजनीति और मोकामा इलाके के बारे में जानते हैं, उन्हें पता है कि ना तो दुलारचंद यादव कोई संत-महात्मा था और ना ही अनंत सिंह कोई सज्जन पुरुष है। दोनों पर ही दर्जनों केस हैं और दोनों ही जेल यात्राएं कर चुके हैं। यहां तक कि अनंत के खिलाफ अपनी पत्नी बीना देवी को राजद के टिकट से लड़ा रहे सूरजभान सिंह भी आपराधिक छवि का नेता ही है। इस इलाके में दलीय प्रतिबद्धता और निष्ठा भी इन तीनों नामों यानी दुलारचंद, अनंत, सूरजभान में नहीं है। दुलार जो अनंत के भाई दिलीप सिंह का विरोधी था, वो बाद में अनंत के साथ भी आया था और अनंत जो नीतीश का दुलारा बताया जा रहा है, वो नीतीश से दूर होकर राजद और यहां तक कि निर्दलीय भी खुद को मोकामा का दुलारा साबित कर चुका है। सूरजभाई, जो अभी राजद का दुलारा है, वो एनडीए का सहयोगी एलजेपी का भी दुलारा था और जेडीयू के सांसद ललन सिंह का करीबी भी। ऐसे में समझने वाली बात ये है कि दुलारचंद पर राजद का जो दुलार बरस रहा है, वो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वो यादव था, वर्ना दुलारचंद इस बार जनसुराज के साथ था और मारा भी उसी के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के प्रचार के दौरान गया।

Dularchand Yadav murder case: मोकामा में भूमिहार 30 फीसदी हैं, यादव 20 फीसदी और 10 फीसदी धानुक। धानुक को कुर्मी की उपजाति मानते हैं। कुर्मी-कुशवाहा ओबीसी में यादवों के बाद सबसे मज़बूत है, करीब 8 फीसदी। मोकामा में यादव+धानुक=भूमिहार। यही गणित था दुलारचंद+पीयूष=अनंत। ये गणित मोकामा से बाहर के लिए असहज है, क्योंकि कुर्मी नीतीश के कोर वोटर माने जाते हैं और यादव राजद के। राजद टिकट पर लड़ रही बीना देवी के साथ अगर यादव ही ना रहें तो सूरजभान के लिए पत्नी की जीत मुश्किल। दूसरी ओर निर्दलीय तक जीत चुके अनंत इस बार गिरफ्तारी से पहले तक मज़बूत नज़र आ रहा था..लेकिन, जनसुराज जेडीयू का कोर वोट काटता दिख रहा था। ऐसे में दुलारचंद की हत्या से किस उम्मीदवार का फायदा और किसका नुकसान हुआ, इस गणित को और कोई समझे या नहीं, मोकामा के वोटर्स अच्छी तरह समझ सकते हैं।

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अब हत्याकांड के घटनाक्रम पर सीधे आइए…बहुत से वीडियो सोशल मीडिया पर हैं, उनका सिक्वेंस बैठाइए। वन वे रोड है, टाल (गंगा के पानी में साल के ज्यादातर समय डूबा रहने और महज साल में दलहन की एक फसल देने वाला दाल का कटोरा) का इलाका है, एक ओर से जनसुराज का काफिला जा रहा है, दूसरी ओर से अनंत का काफिला आ रहा है। गाड़ी बगल होकर निकालने की बात पर बहस शुरू होती है और उसी में बहन की गाली सुनाई देती है। वैसे तो देश के किसी भी राज्य में मां-बहन की गाली सामान्य रूप से चलती ही है और मौजूदा दौर में तो खुद महिलाएं भी एमसी-बीसी का इस्तेमाल बेहिचक बेशर्मी के साथ करती हैं, लेकिन अगर गाली देने वाले और गाली सुनने वाले दोनों दबंग हो तो फिर ये बिहार है, जहां बात जुबान तक सीमित ना रह कर मूंछ तक आते देर नहीं लगती, मां बहन की गाली के जवाब में यहां गोली पहली बार नहीं चली है..तो यही हुआ मोकामा में। अपने समर्थकों से टाल का बादशाह कहलाने में गर्व करने वाला दुलारचंद जिस तरह से आग उगल रहा था, उससे खुद को टाल का सरकार कहलाने वाला अनंत के समर्थक नाराज़ थे। गुस्सा और बदले का बारूद दिलों में तैयार था, साज़िश तैयार थी बस चिंगारी लगने की देर थी, मरना तो किसी ना किसी को था ही…तो इस बार पर्ची दुलारचंद के नाम पर निकल गई।

अब आगे इसका नतीजा ये होना है कि कम आबादी के बावजूद भूमिहारों को नज़रंदाज़ करने का खामियाजा झेल चुके और संभावित नुकसान भांप रहे सभी दलों ने इस बार अपने पुराने जातीय समीकरणों और गोलबंदी को तोड़ कर इस जाति के उम्मीदवारों को ठीक ठाक संख्या में टिकट दे रखा है, जिससे कई जगह ऐसे समीकरण भी बने हुए हैं कि भूमिहार+यादव गठजोड़ चाहिए तो कई जगह ऐसे भी कि भूमिहार+कुर्मी-कुशवाहा-धानुक गठजोड़, तो उन इलाकों में जीतने के लिए एनडीए और महागठबंधन, दोनों को अब नए सिरे से और जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ेगी।

(लेखक IBC24 न्यूज चैनल में मैनेजिंग एडिटर के पद पर कार्यरत हैं)

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