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सीजीपीएससी और कंट्रोवर्सी

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की नियुक्तियों से जुड़ी विवादों की बात करें उससे पहले जान लेते हैं, इसकी स्थापना कब हुई और किस चेयरमैन के नाम कौन सा विवाद जुड़ा।

Edited By :   Modified Date:  September 25, 2023 / 01:26 PM IST, Published Date : September 25, 2023/1:25 pm IST

प्रशांत शर्मा
डिप्टी एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग और विवाद का चोली-दामन का साथ रहा है। आयोग के गठन से लेकर अब तक शायद ही कोई साल रहा होगा जब छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की ओर से की गई नियुक्तियों को लेकर विवाद न हुआ हो। पिछली दो नियुक्तियों की बात की जाए तो विवादों का पहाड़ खड़ा हो गया है. लिहाजा चुनावी साल में विपक्षी पार्टी राज्य सरकार और लोक सेवा आयोग पर निशाना साधने से भी नहीं चूक रही है।

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की नियुक्तियों से जुड़ी विवादों की बात करें उससे पहले जान लेते हैं, इसकी स्थापना कब हुई और किस चेयरमैन के नाम कौन सा विवाद जुड़ा। संविधान के अनुच्छेद 312 में संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग गठन का प्रावधान है। संघ लोक सेवा आयोग केंद्रीय प्रशासनिक सेवाओं में भर्तियां करने का काम करता है। वहीं, राज्य लोक सेवा आयोग राज्य प्रशासनिक सेवाओं के लिए भर्ती करता है। बात छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की करें तो 1 नवंबर 2000 को राज्य की स्थापना हुई। इसी के साथ राज्य के युवाओं की प्रशासनिक सेवा में भर्ती के लिए मध्य प्रदेश से अलग होकर 23 मई 2001 को छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग का गठन हुआ। रिटायर्ड आईपीएस मोहन शुक्ला इसके पहले अध्यक्ष नियुक्त किए गए। पूरा सेटअप तैयार होने के बाद 2003 में पहली भर्ती निकाली गई। चुनौतियों से भरी पहली भर्ती ही विवादों में घिर गई। मामला कोर्ट तक पहुंचा। लेकिन लोक सेवा आयोग ने इस भर्ती प्रक्रिया से शायद कोई सबक नहीं लिया। लिहाजा इसके बाद जितनी भी भर्तियां हुई वो विवादों में घिरते चली गई। कुछ मामले तो हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे। कुछ मामले अब भी कोर्ट में पेंडिंग हैं।

चलिए अब बात कर लेते हैं उन नासूरों की जो छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के माथे पर कलंक का टीका है। 2005 की भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद मामला हाईकोर्ट पहुंचा, कोर्ट ने नए सिरे से मेरिट सूची बनाने और पदस्थापना का आदेश जारी किया। इस पर अलग अमल होने की स्थिति में करीब आधा दर्जन डिप्टी कलेक्टर निचले संवर्ग में चले जाते, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया। 2008 में हुई गड़बड़ी पर हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई जिस पर फिर से कोर्ट ने गलती सुधारने के लिए निर्देश किया। 2016 में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती परीक्षा में तो हद ही हो गई। जिसमें पूछे गए 100 में से 47 सवाल विलोपित किए गए। जिसके बाद पीएससी ने तय किया 53 सवालों पर ही मूल्यांकन होगा। आखिरकार अंग्रेजी विषय की भर्ती परीक्षा रद्द कर दी गई। 2017 पीएससी प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए 50 से ज्यादा सवाल ही गलत निकले। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद कुछ सवालों को लेकर फिर से जांच कर नतीजे दोबारा जारी किए गए। 2018 में पीएससी की इंजीनियरिंग सेवा परीक्षा के 1 से 76 प्रश्न के आंसर ऑप्शन A था। इसे लेकर भी विवाद हुआ। 2019 में सिविल जज परीक्षा को लेकर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, 70 प्रश्नों के स्पेलिंग मिस्टेक थे। अंत में बात उस भर्ती परीक्षा यानी 2021 के परिणामों की जिसमें पीएससी चेयरमैन के बेटा-बहू समेत करीबी रिश्तेदारों की नियुक्ति का आरोप लगा। साथ ही कई अधिकारियों के बेटा-बेटी भी सेलेक्ट हुए, जिनकी नियुक्ति पर भी सवाल खड़े हुए। हाईकोर्ट ने इन 18 लोगों की नियुक्तियों पर फिलहाल रोक लगा दी है। खास बात ये है कि 6 सितंबर को विवादित लिस्ट जारी हुआ, जिसके दो दिन बाद ही पीएससी के अध्यक्ष टामन सिंह सोनवानी गुपचुप तरीके से विदा हो गए।

अब सवाल ये है कि इतने गंभीर आरोप लगने के बाद भी राज्य सरकार पीएससी के चेयरमैन के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करती है। पीएससी चेयरमैन का पद संवैधानिक होता है। राज्य सरकार इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती है। इन्हें हटाने के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी जरूरी होती है। राज्यपाल पीएससी चैयरमैन या सदस्यों को सिर्फ निलंबित कर सकता है। इसका एक उदाहरण 2005 में देखने को मिला था। जब पीएससी में घोटाला हुआ तो राज्यपाल एम के सेठ ने पीएससी चेयरमैन अशोक दरबारी को सस्पेंड कर दिया था।

छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग पर भाई-भतीजावाद के आरोप लगते रहे हैं। एक ही परीक्षा में कई परिवारों के एक से ज्यादा बच्चों का एक साथ सेलेक्शन संदेह तो पैदा करता है। संवैधानिक संस्था पर ऐसे आरोप सिर्फ एक संस्था का नहीं बल्कि पूरे राज्य का अपमान है। ऐसे में युवाओं का भरोसा कायम रहे इसके लिए जरूरी है कि पारदर्शी तरीके से जांच हो। साथ ही भर्ती में भी पारदर्शिता जरूरी है।