बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, IBC24
पूर्वोत्तर की जीत का संदेश गहरा है। यहां भाजपा की एक राज्य में एकल जीत हुई है, लेकिन इसे प्रचारित पूरे नॉर्थ-ईस्ट में जीत के रूप में किया जा रहा है। यही भाजपा की सियासत का राज है। किस चीज को कैसे पेश करना है और किस तरह से लोगों को सुचवाना है, वह भाजपा जानती है। मेघालय में भाजपा की हालत खराब हुआ है, नागालैंड में वह एक तरह से हारी है, सीटें बढ़ी हैं, लेकिन मत प्रतिशत घटा है। त्रिपुरा में भाजपा जीती है, सरकार भी बनाएगी, लेकिन 4 फीसद वोट गंवाकर। बहरहाल हम यह मानते हैं, जो जीता वही समुद्रगुप्त। तो चलिए पूर्वोत्तर की जीत के मायने समझते हैं।
इसका पहला मायना तो बहुत साफ है। गैरहिंदू मतदाता भाजपा पर भरोसा नहीं करते। वजह हिंदू राष्ट्र, एनआरसी आदि हो सकती हैं। यह बात भाजपा के लिए कितनी खतरनाक है नहीं बताया जा सकता, लेकिन विपक्ष खासकर कांग्रेस के लिए यह सुखद है। अब यह कांग्रेस को तय करना है कि वह बिना बहुसंख्य हिंदुओं से दूर हुए नाराज गैरहिंदुओं को अपने साथ लेती है। पसमांदा मुसलमान, संघ प्रमुख का मजार जाना, मोदी का सैयदाना साहब से नजदीकियां, बचपन के मित्र अब्बास को याद करना, नड्डा का हिंदू राष्ट्र को लेकर भाजपाइयों के मुंह पर ताला लगाना इस कड़ी का ही हिस्सा है। भाजपा यह नहीं चाहती कि वह गैरहिंदुओं को बिल्कुल छोड़ दे। मेघालय टेस्ट कहता है भाजपा को गैरहिंदुओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अभी और मेहनत की जरूरत है। लेकिन दुविधा ये है, कि इस तरह के ज्यादा कदम कहीं बहुसंख्य हिंदुओं को नाराज न कर दें।
इन चुनावों का दूसरा टेकअवे कांग्रेस के लिए है। उसे यह जानकर खुशी होना चाहिए कि गैरहिंदू समुदाय सभी क्षेत्रीय दलों की तुलना में सबसे ज्यादा विश्वास कांग्रेस पर ही कर रहे हैं। भारत में 20 फीसद आबादी गैरहिंदुओं की है। जबकि सच ये है कि हिंदुओं का भी बहुत बड़ा हिस्सा पूरी तरह से भाजपा के साथ नहीं है। अब यह तय कांग्रेस को करना है, वह कैसे हिंदुओं को नाराज किए बिना गैरहिंदुओं में विश्वास जगाती है।
इन चुनावों में यह कहा जाना चाहिए कि अब आसाम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वसर्मा और मजबूत होकर उभरेंगे। वे नॉर्थ-ईस्ट के अघोषित भाजपाई राजनीतिक ठेकेदार हैं। हेमंत हिंदुत्व की बातें करके देश में अपनी छवि चमका रहे हैं और नॉर्थ-ईस्ट की सियासत की सारी बाजीगरी दिखाकर अपनी रणनीति का लोहा मनवा रहे हैं। इसिलए अब वे पार्टी में और मजबूत होकर उभरेंगे। यानि कहा जा सकता है कल को मोदी, शाह, योगी के बाद हेमंत का नाम आए तो अचरज नहीं होना चाहिए।
चौथा मायना लेफ्ट पार्टीज को अपने कोर वोटर्स को साधे रखने और नए बनाने के लिए बड़ा मेकओवर लगेगा। यह मेकओवर वैचारिक रूप से भले न हो, लेकिन व्यवहार में दिखना चाहिए।
जाहिर है भाजपा की नई सियासी रणनीति में नॉर्थ-ईस्ट के राज्य दुर्गम दर्रे नहीं रहे। अब ये भारत की मुख्यधारा की सियासत में डिस्कस होने लगे हैं। इसलिए इन्हें लेकर बाकी राष्ट्रीय राजनीति करने वाले दलों को भी रणनीति बनाना चाहिए। कोई बड़ी बात नहीं मोदी सरकार 2024 में नॉर्थ-ईस्ट की 25 सीटों से किसी दूसरा राज्य में संभावित नुकसान की भरपाई करने में कामयाब हो।