ऊर्जा खपत में 2047 तक कोयले की हिस्सेदारी घटकर 30-35 प्रतिशत रहने का अनुमान: विशेषज्ञ

ऊर्जा खपत में 2047 तक कोयले की हिस्सेदारी घटकर 30-35 प्रतिशत रहने का अनुमान: विशेषज्ञ

ऊर्जा खपत में 2047 तक कोयले की हिस्सेदारी घटकर 30-35 प्रतिशत रहने का अनुमान: विशेषज्ञ
Modified Date: December 21, 2025 / 01:59 pm IST
Published Date: December 21, 2025 1:59 pm IST

नयी दिल्ली, 21 दिसंबर (भाषा) विशेषज्ञों ने देश की ऊर्जा खपत में कोयले की हिस्सेदारी 2047 तक घटकर 30-35 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। उनका कहना है कि भविष्य में वृद्धि के लिए जीवाश्म ईंधन का जिम्मेदारी से और संतुलित उपयोग बेहद जरूरी है।

इस समय भारत के बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी लगभग 70 प्रतिशत है। वित्त वर्ष 2024–25 में भारत ने एक अरब टन से अधिक कोयला उत्पादन किया, जबकि कुल बिजली उत्पादन में कोयला आधारित बिजली का योगदान 72 प्रतिशत रहा।

कोल इंडिया लिमिटेड के पूर्व चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक पी एम प्रसाद ने कहा कि आने वाले तीन से चार दशकों में प्राथमिकता उत्सर्जन को कम करने और जहां संभव हो, बेहतर और स्वच्छ तकनीकों को अपनाने की होनी चाहिए।

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उन्होंने कहा, ”2047 तक कोयले की हिस्सेदारी मौजूदा स्तर से घटकर लगभग 30–35 प्रतिशत रह जाएगी। इसे देखते हुए जब तक कोयले का उपयोग होता रहेगा, तब तक इसका जिम्मेदारी से और पर्यावरण अनुकूल तरीके से इस्तेमाल करना जरूरी है।”

प्रसाद वर्तमान में टिकाऊ कोयले के लिए वैश्विक गठबंधन ‘फ्यूचरकोल’ की भारत इकाई के चेयरमैन हैं।

कोल इंडिया लिमिटेड और गेनवेल इंजीनियरिंग के सहयोग से शुरू की गई फ्यूचरकोल की भारत इकाई टिकाऊ कोयले को बढ़ावा दे रही है। इस पहल के तहत ऐसी तकनीकों को अपनाया जा रहा है, जिनसे उत्सर्जन में 99 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है।

प्रसाद के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र की खनन और बिजली उत्पादन कंपनी एनएलसी इंडिया ने मजबूत पर्यावरणीय मानक अपनाए हैं और कोल इंडिया की कुछ खदानों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है। यदि इन मानकों को देश की सभी 300 खदानों में लागू किया जाए, तो धूल और अन्य उत्सर्जन में 20–30 प्रतिशत तक की अतिरिक्त कमी संभव है।

फ्यूचरकोल की मुख्य कार्यपालक अधिकारी मिशेल मैनूक ने कहा कि ऊर्जा प्रणालियों में विविधता आने के साथ कोयले की हिस्सेदारी समय के साथ बदलेगी, लेकिन इसका उपयोग अधिक कुशल और जिम्मेदार तरीके से करना जरूरी होगा।

उन्होंने बताया कि डेटा सेंटर और कृत्रिम मेधा (एआई) के कारण बढ़ती ऊर्जा मांग के बीच टिकाऊ कोयला प्रथाओं के जरिए भरोसेमंद, सुरक्षित और किफायती बिजली उपलब्ध कराना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।

भाषा योगेश पाण्डेय

पाण्डेय


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