टिकाऊ विमानन ईंधन के मिश्रण को प्रोत्साहन के बगैर अनिवार्य करने से नुकसानः आईएटीए
टिकाऊ विमानन ईंधन के मिश्रण को प्रोत्साहन के बगैर अनिवार्य करने से नुकसानः आईएटीए
नयी दिल्ली, छह नवंबर (भाषा) एयरलाइन कंपनियों के वैश्विक संगठन आईएटीए ने बृहस्पतिवार को कहा कि पारंपरिक जेट ईंधन में टिकाऊ विमानन ईंधन (एसएएफ) के मिश्रण को किसी प्रोत्साहन या समर्थन नीति के बगैर अनिवार्य करना एयरलाइंस के लिए नुकसानदेह होगा और इससे उद्योग की वृद्धि पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा।
भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए वर्ष 2027 तक एक प्रतिशत, 2028 तक दो प्रतिशत और 2030 तक पांच प्रतिशत एसएएफ मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ है।
सबसे तेजी से बढ़ते विमानन बाजारों में से एक भारत में प्रचुर मात्रा में कृषि अपशिष्ट उपलब्ध है, जिससे एसएएफ उत्पादन की पर्याप्त संभावनाएं हैं।
आईएटीए में भारत प्रमुख (टिकाऊ विमानन) तुहिन सेन ने ‘इंडिया सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल समिट’ में कहा, “बिना प्रोत्साहन के एसएएफ मिश्रण की अनिवार्यता ‘वर्जित क्षेत्र’ है। इससे अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं, क्योंकि एयरलाइंस केवल उपभोक्ता नहीं बल्कि कनेक्टिविटी और आर्थिक वृद्धि की वाहक भी हैं।”
उन्होंने कहा कि सरकार को पहले प्रौद्योगिकी और उत्पादन को प्रोत्साहन देने वाली नीति अपनानी चाहिए, उसके बाद एसएएफ उपयोग को अनिवार्य बनाना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय वायु यातायात संघ (आईएटीए) दुनिया की लगभग 350 एयरलाइन कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है, जिनमें भारतीय एयरलाइंस भी शामिल हैं। इन एयरलाइंस की वैश्विक हवाई यातायात में 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी है।
सेन ने बताया कि भारत में एयरलाइंस के परिचालन खर्च का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा विमानन ईंधन एटीएफ पर खर्च होता है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह खर्च करीब 34 प्रतिशत है।
नागर विमानन मंत्रालय में संयुक्त सचिव असांगबा चूबा आव ने कार्यक्रम में कहा कि एसएएफ पारिस्थितिकी के विकास के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की जरूरत है और किसी एक समाधान से समस्या हल नहीं हो पाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार सभी सुझावों के लिए खुली है।
इससे पहले, नागर विमानन मंत्री के. राममोहन नायडू ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा था कि सरकार शीघ्र ही एसएएफ पर नीति लेकर आएगी, जिससे कच्चे तेल के आयात में कमी, किसानों की आय में वृद्धि और हरित रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
अजय

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