(लक्ष्मी देवी ऐरे)
हैदराबाद, सात दिसंबर (भाषा) अमेरिका की कृषि क्षेत्र की दिग्गज कंपनी कोर्टेवा एग्रीसाइंस भारत में अपने जैविक उत्पादों के विस्तार में तेजी ला रही है और जैव-नियंत्रण तथा जैव-उत्तेजक पर विशेष ध्यान दे रही है। कंपनी की एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी।
बढ़ते जलवायु दबाव और कीट-प्रतिरोध की चुनौतियों के बीच प्राकृतिक फसल-सुरक्षा समाधान तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।
कोर्टेवा की एशिया-प्रशांत अध्यक्ष ब्रूक कनिंघम ने अपनी भारत यात्रा के दौरान ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि प्राकृतिक खेती और जीन-संपादन प्रौद्योगिकियों को मिल रहे सरकार के समर्थन के कारण कंपनी भारत को जैविक उत्पादों के लिए बेहद महत्वपूर्ण बाजार मानती है।
कनिंघम ने कहा, ”किसानों को सबसे ज्यादा जरूरत जैव-नियंत्रण की है। अभी तक किसी ने भी इसे बड़े पैमाने पर हल नहीं किया है।”
उन्होंने बताया कि कंपनी सूक्ष्मजीवीय समाधानों में भारी निवेश कर रही है, जो या तो कीटों पर सीधा हमला करते हैं या पौधों की रक्षा-क्षमता को बढ़ाते हैं।
जैविक उत्पादों की ओर बदलाव जलवायु परिवर्तन के कारण और तेज हो रहा है, क्योंकि इससे कीटों का फैलाव तेज हो रहा है तथा सूखा, बाढ़ और गर्मी से पौधों पर तनाव बढ़ रहा है। जैव-उत्तेजक अब भारतीय किसानों के लिए बेहद महत्वपूर्ण उपकरण बनकर उभर रहे हैं।
कनिंघम ने कहा, ‘यह रसायनों का विकल्प नहीं, बल्कि एकीकृत कीट प्रबंधन है।’ उन्होंने बताया कि रासायनिक समाधान अभी भी फलों में 80 प्रतिशत और सब्जियों में 50 प्रतिशत नुकसान रोकते हैं।
कंपनी जैविक उत्पादों को पारंपरिक फसल सुरक्षा का पूरक मानती है, जो कीट-प्रतिरोध और पर्यावरणीय स्थिरता की दोहरी चुनौतियों का समाधान करते हैं।
भारत में, जहां किसान वैश्विक कृषि भूमि के केवल 2.4 प्रतिशत हिस्से पर 1.4 अरब लोगों को भोजन उपलब्ध कराते हैं, जैविक उत्पाद खाद्य सुरक्षा और निर्यात लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आवश्यक माने जा रहे हैं।
हालांकि ब्राजील अभी कीटों के भारी दबाव के कारण जैविक उत्पाद अपनाने में सबसे आगे है, लेकिन भारत में अनूठे अवसर मौजूद हैं। सरकार का प्राकृतिक खेती को बढ़ावा और जीन-संपादन तकनीकों का समर्थन देश को बीज, फसल संरक्षण तथा जैविक उत्पादों में अत्याधुनिक नवाचार लागू करने की स्थिति में ला रहा है।
कनिंघम ने कहा, ‘भारत उस निर्णायक मोड़ पर खड़ा है जहां से वह दुनिया को भोजन और ईंधन दोनों मुहैया करा सकता है।’
उन्होंने आगे कहा कि देश के 15 करोड़ छोटे किसान, जिनमें अधिकांश के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है, जैविक समाधानों से काफी लाभ उठा सकते हैं। इन समाधानों से 0.3 हेक्टेयर वाले किसानों की उपज औसतन 15-20 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
भारत कोर्टेवा का एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ा बीज बाजार है और यह क्षेत्र कंपनी के वैश्विक राजस्व का लगभग 10 प्रतिशत योगदान देता है।
अनुसंधान एवं विकास तथा साझेदारियों के बारे में कनिंघम ने कहा कि कोर्टेवा अपनी आय का आठ प्रतिशत फसल संरक्षण और बीज क्षेत्र में अनुसंधान पर पुनः निवेश करती है, जो सालाना लगभग 1.4 अरब डॉलर है।
कंपनी नई जैविक तकनीकों को तेजी से और कम लागत में विकसित करने के लिए कृत्रिम मेधा (एआई) का उपयोग कर रही है।
कनिंघम ने कहा, ‘हमारे पास एक अरब डॉलर से अधिक का अनुसंधान बजट होने के बावजूद हम अकेले नवाचार नहीं कर सकते। इसलिए हम स्थानीय नवप्रवर्तकों के साथ साझेदारी कर रहे हैं ताकि उनकी विशेषज्ञता, नियामक ज्ञान और विनिर्माण क्षमता का लाभ मिल सके।’
हालांकि, नियामक बाधाएं अभी भी बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। भारत में उर्वरक (नियंत्रण) आदेश के तहत मंजूरियां ऑस्ट्रेलिया जैसे बाजारों की तुलना में काफी धीमी हैं।
कनिंघम ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर समन्वित नियामक व्यवस्था का अभाव एक बड़ी चुनौती है। हमें विज्ञान-आधारित, डेटा-संचालित और पूर्वानुमान योग्य ढांचों की जरूरत है। अप्रत्याशित या गैर-वैज्ञानिक निर्णय हमारे अनुसंधान एवं विकास निवेश को उचित ठहराने की क्षमता को बाधित करते हैं।’
भाषा योगेश पाण्डेय
पाण्डेय