मुंबई, आठ दिसंबर (भाषा) रिजर्व बैंक ने अर्थव्यवस्था के आकार और वृद्धि दर के लिहाज से ऋण वृद्धि को ‘बहुत कम’ बताते हुए बुधवार को कहा कि इन दोनों आंकड़ों के मेल के लिए बहुत ज्यादा बड़े ‘आउटपुट गैप’ या अंतर को दूर करना होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मौद्रिक समीक्षा के बाद यह भी साफ किया कि निम्न ऋण वृद्धि का यह कोई अनिवार्य अर्थ नहीं है कि अर्थव्यवस्था को कम ऋण प्रवाह हो रहा है या प्रणाली को ऋण बाधित हो रहा है।
‘आउटपुट गैप’ से मतलब है कि कमजोर मांग होने से कंपनियां अपने संयंत्रों का अपनी पूरी क्षमता से संचालन नहीं कर पा रही हैं। इस तरह अर्थव्यवस्था मांग न रहने से अपनी क्षमता से काम नहीं कर पा रही है।
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्रा ने यह स्वीकार किया कि ऋण की मांग अर्थव्यवस्था में अब भी नहीं आ रही है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे आकार वाली अर्थव्यवस्था के लिए निश्चित रूप से यह काफी नहीं है।
पात्रा ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि अर्थव्यवस्था में मौजूद इस बहुत बड़े फासले को दूर करने में कई साल लग जाएंगे।’’
भाषा
प्रेम अजय
अजय
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