भविष्य बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां से नहीं, स्थानीय डीपीआई से संचालित होगाः अमिताभ कांत

भविष्य बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियां से नहीं, स्थानीय डीपीआई से संचालित होगाः अमिताभ कांत

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  • Publish Date - April 18, 2024 / 03:21 PM IST,
    Updated On - April 18, 2024 / 03:21 PM IST

मुंबई, 18 अप्रैल (भाषा) जी-20 समूह में भारत के शेरपा अमिताभ कांत ने बृहस्पतिवार को कहा कि वैश्विक भविष्य बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों से नहीं बल्कि स्थानीय स्तर पर विकसित ‘डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा’ (डीपीआई) मंचों से संचालित होगा।

कांत ने यहां ‘वी मेड इन इंडिया’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत स्थानीय स्तर पर विकसित डीपीआई को दुनिया के बाकी हिस्सों में स्थानांतरित करेगा और पहले से ही कई देश इसके लिए अपनी रजामंदी जता चुके हैं।

डीपीआई में ‘आधार’ के जरिये डिजिटल पहचान, यूपीआई के जरिये वास्तविक समय भुगतान और खाता एग्रीगेटर जैसी सेवाएं शामिल हैं। पिछले साल भारत की जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता के दौरान डीपीआई मंचों का प्रदर्शन पूरी दुनिया के सामने किया गया था।

कांत ने कहा कि जी-20 सम्मेलन के दौरान पूरी दुनिया ने डीपीआई के संदर्भ में दी गई परिभाषा और रूपरेखा को स्वीकार किया था। डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा तैयार करने में भारत ने अपनी रणनीतियों के माध्यम से काफी प्रगति की है।

उन्होंने कहा, ‘हमारी मान्यता है कि भविष्य बड़ी प्रौद्योगिकी से संचालित नहीं होगा, यह डीपीआई द्वारा संचालित होगा।’

बड़ी प्रौद्योगिकी वाली कंपनियों के तौर पर अमूमन एप्पल, गूगल, अमेजन और मेटा जैसी दिग्गज वैश्विक कंपनियों का शुमार किया जाता है।

कांत ने कहा कि भारत का डीपीआई दुनिया भर में स्थानांतरित होगा और इससे देश के उद्यमियों के लिए बहुत सारे अवसर पैदा होंगे जिनका लाभ उठाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘डीपीआई बाकी दुनिया का पर्याय बन जाएगा।’

इसके साथ ही नीति आयोग के पूर्व सीईओ कांत ने कहा कि डीपीआई वर्ष 2047 तक की अवधि में भारत की वृद्धि की कहानी का एक बड़ा हिस्सा होगा।

उन्होंने बीमा कंपनियों और पेंशन कोषों से देश के ‘स्टार्टअप आंदोलन’ में निवेश करने का अनुरोध करते हुए कहा कि बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के गढ़ सिलिकॉन वैली का निर्माण धैर्यवान निवेशकों द्वारा लगाए गए दांव पर ही हुआ है।

कांत ने कहा कि फिलहाल घरेलू स्टार्टअप कंपनियों को तीन-चौथाई से अधिक वित्तपोषण अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से मिल रहा है और सिर्फ एक-चौथाई वित्त ही घरेलू स्रोतों से मिलता है।

भाषा प्रेम प्रेम रमण

रमण