भारत को खंडित वैश्विक गठबंधनों के बीच अपना विकास पथ खुद तय करना होगा: अदाणी

भारत को खंडित वैश्विक गठबंधनों के बीच अपना विकास पथ खुद तय करना होगा: अदाणी

भारत को खंडित वैश्विक गठबंधनों के बीच अपना विकास पथ खुद तय करना होगा: अदाणी
Modified Date: December 9, 2025 / 04:43 pm IST
Published Date: December 9, 2025 4:43 pm IST

(फाइल फोटो के साथ)

(नमिता तिवारी)

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धनबाद (झारखंड), नौ दिसंबर (भाषा) अदाणी समूह के चेयरमैन गौतम अदाणी ने मंगलवार को इस बात पर जोर दिया कि भारत की संप्रभुता उसकी धरती में मौजूद संसाधनों पर नियंत्रण करने पर निर्भर करती है और देश को खंडित वैश्विक गठबंधनों के बीच अपना विकास पथ स्वयं निर्धारित करना होगा।

अदाणी ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (इंडियन स्कूल ऑफ माइंस), धनबाद के 100वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया भर के देश विशुद्ध रूप से अपने स्वार्थ के हिसाब से काम कर रहे हैं, ऐसे में भारत को अपनी वृद्धि को बढ़ावा देने वाली ऊर्जा प्रणालियों में महारत हासिल करनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘21वीं सदी में भारत की संप्रभुता, देश के प्राकृतिक संसाधनों एवं ऊर्जा प्रणालियों पर उसके नियंत्रण पर निर्भर करेगी। भारत को एक ऐसे विश्व में, जहां राष्ट्रीय आत्म-संरक्षण और वैश्विक गठबंधनों में दरार बढ़ती जा रही है, अपना विकास पथ स्वयं तैयार करना होगा।’’

अदाणी ने कहा कि जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा को जलाया था, तो उसका मकसद केवल इमारतों को नष्ट करना या पांडुलिपियों को आग लगाना नहीं था।

उन्होंने कहा, ‘‘उसका असली निशाना हमारी सभ्यता के आत्मविश्वास, हमारी ज्ञान प्रणालियां और विदेशी प्रभाव से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से सोचने की हमारी क्षमता थी। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि जो सभ्यता यह भूल जाती है कि उसे कैसे तोड़ा गया, वह उठना भी भूल जाती है।’’

अदाणी ने कहा, ‘‘सदियों बाद, जब अंग्रेज पहले से ही कमजोर भारत में आए, तो उन्होंने ज्ञान को नष्ट नहीं किया बल्कि उसे अपने हिसाब से बदला। उन्होंने एक ऐसी शिक्षा प्रणाली तैयार की जो विचारक नहीं बल्कि केवल ‘क्लर्क’ पैदा करने के लिए तैयार की गई थी। ऐसा करते हुए उन्होंने उन कहानियों, ज्ञान और कल्पना को मिटा दिया जो कभी भारत को एकजुट करती थीं।’’

उन्होंने कहा कि इसके विपरीत भारत सपने नहीं बेचता, वह सपनों को हकीकत में बदलता है।

अदाणी ने ‘कथात्मक उपनिवेशीकरण’ को लेकर आगाह करते हुए कहा कि ऐतिहासिक रूप से सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाले देश अब यह बताना चाहते हैं कि भारत को किस प्रकार विकास करना चाहिए जबकि भारत का प्रति व्यक्ति उत्सर्जन विश्व में सबसे कम है।

उन्होंने वर्तमान युग को आर्थिक एवं संसाधन स्वतंत्रता के लिए भारत का ‘दूसरा स्वतंत्रता संग्राम’ बताते हुए कहा कि देश को बाहरी दबावों के कारण अपनी आकांक्षाओं को अमान्य नहीं करना चाहिए।

अदाणी समूह के चेयरमैन ने जोर देकर कहा कि भारत को वही करना चाहिए जो उसके लिए सबसे अच्छा हो। अपना विकास पथ स्वयं निर्धारित करना, बाहरी दबावों का विरोध करना और संसाधनों, ऊर्जा एवं प्रौद्योगिकी में संप्रभु क्षमताएं विकसित करना..।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम अपनी बात को अपने हिसाब से पेश नहीं करेंगे तो हमारी आकांक्षाएं अमान्य हो जाएंगी और अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने के हमारे अधिकार को वैश्विक अपराध के रूप में दिखाया जाएगा।’’

वैश्विक आंकड़ों का हवाला देते हुए अदाणी ने कहा कि निर्धारित समय से पहले 50 प्रतिशत से अधिक गैर-जीवाश्म स्थापित बिजली क्षमता हासिल करने के बाद भी भारत दुनिया के सबसे कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जक देशों में से एक बना हुआ है।

अदाणी ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में समूह की कार्माइकल कोयला परियोजना भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए विकसित की गई थी लेकिन इसे ‘सदी की सबसे विवादित पर्यावरणीय और राजनीतिक लड़ाइयों में से एक’ का सामना करना पड़ा।

उन्होंने कहा कि इस परियोजना का विचार इसलिए आया क्योंकि भारत में कोयले की कमी नहीं थी, बल्कि बेहतर गुणवत्ता के कोयले की जरूरत थी।

उन्होंने आरोप लगाया कि अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण समूहों ने इस परियोजना के खिलाफ बड़े स्तर पर मोर्चा खोल दिया।

अदाणी ने कहा, “वैश्विक पर्यावरणीय लॉबी हमारे खिलाफ लामबंद हो गई। दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन हुए। विभिन्न व्यवसायों में बैंकों ने कर्ज देना बंद कर दिया। हमें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में बदनाम किया गया, विदेशी संसदों में बहस हुई और अदालतों में भी घसीटा गया।”

उन्होंने कहा कि बाहरी विरोध के बावजूद समूह ने अपनी रणनीति नहीं बदली।

अदाणी ने कहा, “आपका विरोध हो सकता है, आपका उपहास किया जा सकता है… वे सुर्खियां लिखेंगे, लेकिन इतिहास हम लिखेंगे।”

अदाणी ने कहा कि आईआईटी (आईएसएम), धनबाद की स्थापना के साथ एक राष्ट्रीय दूरदर्शिता का जन्म हुआ था। एक सदी से पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन के दौरान भी खनन एवं भूविज्ञान में भारत की क्षमताओं को विकसित करने के लिए इस संस्थान की स्थापना की सिफारिश की थी।

उन्होंने कहा कि यह एक गहरी सभ्यतागत समझ को दर्शाता है कि कोई भी राष्ट्र अपनी धरती की ताकत को समझे बिना उन्नति नहीं कर सकता।

अदाणी ने आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के तृतीय वर्ष के छात्रों के लिए 50 भुगतान वाली वार्षिक इंटर्नशिप और संस्थान में अदाणी 3एस खनन उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना की भी घोषणा की।

उन्होंने कहा, ‘‘ लोग खनन को पुरानी अर्थव्यवस्था कह सकते हैं लेकिन इसके बिना किसी नयी अर्थव्यवस्था का वजूद नहीं है।’’

अदाणी ने छात्रों से आग्रह किया कि वे ‘निडर होकर सपने देखें, अथक परिश्रम करें’, नवाचार को अपनाएं तथा भारत की संप्रभु क्षमताओं का निर्माण करने वाले ‘मूल के संरक्षक’ बनकर एक आत्मविश्वासी, आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में मदद करें।

भाषा निहारिका प्रेम

प्रेम


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