मुंबई, पांच अक्टूबर (भाषा) भले ही भारत कृषि नवाचार या खोज पर सालाना तीन अरब डॉलर से अधिक खर्च करता है, लेकिन इसमें से केवल चार प्रतिशत का इस्तेमाल पर्यावरण और सामाजिक स्थिरता हासिल करने के उद्देश्य से खर्च किया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, देश को अपने पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाए बिना खाद्य लक्ष्यों को हासिल करने के बीच संतुलन बनाने की चुनौतियां मिलना जारी रहेंगी। रणनीतिक सलाहकार फर्म डालबर्ग एडवाइजर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार विकास भागीदारों, निजी क्षेत्र और पीई / वीसी फर्मों द्वारा निवेश सहित कृषि नवाचार पर सालाना तीन अरब डॉलर (2010-2018 की अवधि के लिए 25 अरब डॉलर) खर्च करती है। .
इस वित्तपोषण में से केवल 4-5 प्रतिशत के लिए सुस्पष्ट सतत परिणाम परिभाषित हैं (पर्यावरण, सामाजिक, मानव परिणामों के संयोजन के रूप में मापा जाता है)। यह सालाना 12 करोड़ डॉलर या 10 प्रतिशत प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष बैठता है। डालबर्ग एडवाइजर्स पार्टनर नीरत भटनागर ने कहा, ‘‘भारत में अधिक भोजन उगाने की पर्यावरणीय चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ कृषि के लिए पर्याप्त रूप से अधिक नवाचार निवेश की आवश्यकता है। विभिन्न कारकों द्वारा टिकाऊ कृषि निवेश की लगातार रिपोर्टिंग को पारदर्शी, सुसंगत और सत्यापन योग्य प्रारूप में अनिवार्य करना पहला कदम होगा। ’’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत में वर्ष 2050 तक अनुमानित 1.6 अरब लोगों की आबादी होगी। देश को बढ़ती आबादी और उच्च गुणवत्ता वाले भोजन की मांग दोनों को ध्यान में रखते हुए अपने खाद्य उत्पादन को लगभग दोगुना करने की आवश्यकता होगी। यह एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी क्योंकि कृषि पहले से ही भारत में पानी की कमी, जैव विविधता के नुकसान और कार्बन उत्सर्जन का एक प्रमुख कारक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए भारत में टिकाऊ कृषि प्रणालियों में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी। भाषा राजेश राजेश अजयअजय
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