नयी दिल्ली, पांच दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि कराधान कानून में पूर्वानुमेयता को बनाए रखना बेहद अहम है और इस बारे में केंद्रीय उत्पाद शुल्क एवं सेवा कर विभाग (सीईएसटी) की दलील स्वीकार नहीं की जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत एवं न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि कराधान से संबंधित कानूनों में करों का पहले से अनुमान लगा पाने की अहमियत काफी अधिक है। कर विभाग को भी कर-निर्धारण में अपने परिपत्रों का पालन करना जरूरी होता है।
पीठ ने कहा कि उत्पाद शुल्क वाली वस्तुओं की बिक्री के लिए स्वतंत्र पक्षों पर लगाई गई कीमत का उपयोग संबंधित लेनदेन पर उत्पाद शुल्क तय करने के लिए एक मानक के तौर पर किया जा सकता है, अगर यह कीमत पहले से उपलब्ध हो।
सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्रीय उत्पाद एवं सेवा कर आयुक्त, रोहतक की तरफ से दायर अर्जी पर सुनाए गए फैसले में यह टिप्पणी की। इस अपील में सीमा शुल्क, उत्पाद एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (सीईएसटीएटी), चंडीगढ़ के नवंबर, 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी।
इस आदेश में न्यायाधिकरण ने सीईएसटी की तरफ से लेमिनेट्स उत्पादक कंपनी को जारी कारण-बताओ नोटिस को निरस्त कर दिया था। इसके लिए यह दलील दी गई थी कि सीईएसटी ने संबंधित पक्ष के लेनदेन का मूल्यांकन गलत ढंग से किया है।
पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘कराधान कानून में पूर्वानुमेयता को कायम रखना अत्यधिक महत्वपूर्ण है और इसके लिए अदालत को कर विभाग की उस दलील को स्वीकार नहीं करना चाहिए जिसे खुद उसका ही परिपत्र कमतर बनाता हो। विभाग के कदम अपने परिपत्रों से बंधे हुए हैं।’’
न्यायालय ने विभाग की तरफ से रखी गई कर मांग को सही ठहराया लेकिन ब्याज एवं जुर्माना लगाने को स्वीकृति नहीं दी।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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