जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नियामकीय मंजूरी को तेज करने की जरूरतः रिपोर्ट |

जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नियामकीय मंजूरी को तेज करने की जरूरतः रिपोर्ट

जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नियामकीय मंजूरी को तेज करने की जरूरतः रिपोर्ट

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:21 PM IST, Published Date : September 23, 2022/7:48 pm IST

नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) देश में जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग के लिए मंजूरी प्रक्रिया को तेज करने के लिए नियामकीय प्रक्रियाओं को गति देने और बेकार हो चुके नियमों को खत्म करने की जरूरत है क्योंकि उत्पाद लाने में किसी भी देरी से इस क्षेत्र को भारी नुकसान होता है। उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है।

सीआईआई की तरफ से ‘भारतीय जीव-विज्ञान के लिए रोडमैप-2047’ शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जैव-प्रौद्योगिकी उद्योग का नियमन तीन मंत्रालयों के मातहत कई विभागों एवं उप-समितियों के जरिये किया जाता है। हालांकि इनके बीच सही तालमेल न होने और अब बेकार साबित हो चुके कदमों से नियामकीय प्रक्रिया में विलंब होने लगता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘भारत में जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र से जुड़ी नियामकीय प्रक्रियाओं को दुरूस्त करने और बेकार प्रावधानों को खत्म करने के लिए एक ‘फास्टट्रैक’ प्रकोष्ठ गठित करने की जरूरत है। फिलहाल एक ‘बायो-सिमिलर’ बैच की समीक्षा में 20-25 दिन लग जाते हैं जबकि विनिर्माण की समूची प्रक्रिया ही 45-90 दिन की होती है।’

सीआईआई की इस रिपोर्ट में इस अंतराल को पाटने के लिए उद्योग परामर्श मंडलों का गठन करने का सुझाव दिया गया है। ये मंडल विषयों के विशेषज्ञों को चिह्नित करने, सेवा स्तरीय समझौतों के गठन, डिजिटल समाधान लाने और स्व-प्रमाणन के कदमों की शिनाख्त जैसे बिंदुओं पर मार्गदर्शन करेंगे।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, नीति-निर्माण एवं क्रियान्वयन में स्वायत्तता की जरूरत है।

इसके मुताबिक, ‘बायो-सिमिलर’ दवाओं के विकास के लिए विशेषीकृत ढांचे, विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी में बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत होती है। इस क्षेत्र में शोध एवं विकास पर लगने वाले समय और लागत का ‘बायो-सिमिलर’ दवाओं की लागत पर खासा असर पड़ता है।

इस रिपोर्ट में चीन और अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि इन देशों ने जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में एक एकीकृत एजेंसी के गठन से नियामकों के अंतर्विरोधों को रोकने का काम किया। रिपोर्ट में भारत को ‘बायो-सिमिलर’ जैसे खंडों पर खास ध्यान देने का सुझाव दिया गया है।

भारत फिलहाल औषधि के क्षेत्र में मात्रा के लिहाज से दुनिया का तीसरा बड़ा देश है।

भाषा प्रेम

प्रेम रमण

रमण

 

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