रायपुर, 28 सितंबर (भाषा) छत्तीसगढ़ में 2018 में अच्छा प्रदर्शन करने वाली, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी ‘‘जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे)’’ अपने अंदर मची कलह और असंतोष को खत्म नहीं कर पा रही है और राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पार्टी अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही है।
करीब तीन साल पहले 90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा में पांच सीटें जीत कर जेसीसी(जे) ने राज्य की राजनीति में अपने तीसरी ताकत के रूप में उभरने के संकेत दिए थे। छत्तीसगढ़ की राजनीति में परंपरागत रूप से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का ही वर्चस्व रहा है।
राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।
जेसीसी(जे) के राज्य अध्यक्ष और अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी का दावा है कि पार्टी पहले से कहीं अधिक मजबूत हो कर उभरेगी। उन्होंने कहा कि राज्य में कांग्रेस के ‘‘कुशासन’’ के खिलाफ पार्टी आवाज उठा रही है और उसके लिए बेहतर संभावनाएं हैं।
पूर्व विधायक अमित जोगी ने कहा ‘‘हमारी पार्टी आगे बढ़ रही है और यह पहले से कहीं अधिक मजबूत हो कर उभरेगी। हम बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत बना रहे हैं। आने वाले समय में हमारी ताकत नजर आएगी। ’’
मध्यप्रदेश से 2000 में अलग हो कर छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया था और तब कांग्रेस के दिग्गज नेता अजीत जोगी ने पहली राज्य सरकार की 2003 तक अगुवाई की थी। 2016 में अजीत जोगी कांग्रेस से अलग हो गए और जेसीसी(जे) का गठन किया। जोगी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया लेकिन वह 7.6 प्रतिशत वोट ले कर पांच सीटें ही हासिल कर पाए। भाजपा को 15 सीटें मिलीं और 68 सीटें जीत कर राज्य में कांग्रेस ने सरकार बनाई।
वर्ष 2020 में अजीत जोगी के निधन के बाद पार्टी में अंदरूनी लड़ाई शुरू हो गई। अब विधानसभा में पार्टी के तीन विधायक रेणु जोगी, धर्मजीत सिंह और प्रमोद शर्मा ही थे। लेकिन पिछले दिनों पार्टी ने भाजपा से सांठगांठ के आरोप में धर्मजीत सिंह को निष्कासित कर दिया।
जोगी की पार्टी के इस हश्र को लेकर राजनीतिक मामलों के जानकर आर कृष्णा दास कहते हैं, ‘‘माना जा रहा है कि धर्मजीत सिंह और अन्य विधायक प्रमोद शर्मा जल्द भाजपा में शामिल हो सकते हैं। अजीत जोगी के निधन के बाद उनकी पार्टी बिखर गई है। उनकी पत्नी रेणु जोगी और पुत्र अमित जोगी पार्टी को एकजुट नहीं रख सके।’’
वहीं, राजनीतिक टिप्पणीकार सुशील त्रिवेदी कहते हैं, ‘‘जोगी की पार्टी की हालत खराब हो चुकी है अब अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले इसे पुनर्गठित करना मुश्किल होगा।’’
भाषा संजीव मनीषा
मनीषा
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