मौत को मात देने वाली ‘राहुल’ की कहानी! जरा दिल थाम कर पढ़िएगा..कहीं कलेजा निकलकर ​हाथ में न आ जाए

Story of 'Rahul' who defeated death: इसे देश में अब तक का सबसे बड़ा सफल आपरेशन कहा जा रहा है, यह तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी, कभी आने वाली पीढ़ियों को कहानी बनाकर सुनाने के काम आएगी कि कैसे एक स्पेशल चाइल्ड ने मौत को मात दी थी

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  • Publish Date - June 15, 2022 / 06:00 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:25 PM IST

Operation rahul latest news: रायपुर। 14 जून 2022 मध्यरात्रि, घड़ी की सुई 12 बजे की ओर टक टक बढ़ रही थी…देश भर की निगाहें टीवी के पर्दे पर टिकी हुई थी, घड़कनें धक धक कर बढ़ रही थी। कहीं प्रार्थना, भजन कीर्तन, दुआएं की जा रही थी..तो कहीं यह कयास लगाए जा रहे थे कि कुछ ही पलों में राहुल बाहर आ जाएगा… उम्मीदें तो बरकरार थीं लेकिन यह किसी को पता नहीं था कि इस रेस्क्यू आपरेशन का अंजाम क्या होगा.. क्योंकि यह कोई मामूली आपरेशन नहीं ​था यह एक मासूम की जिंदगी को बचाने का रेस्क्यू आपरेशन था..

लेकिन जरा रुकिए…हम आपको फ्लैशबैक में ले चलते हैं। एक मासूम बच्चा 65 फीट जमीन के अंदर जिंदगी की जंग लड़ रहा था…4 दिन और 4 रातें एक 12 इंच चौड़े और 65 फीट गहरे बोरवेल में बिताना कोई आसान काम नहीं था। जरा सोचिए एक मासूम जब उस बोरबेल में गिरा होगा उसके कोमल अंगों को कितना दर्द हुआ होगा..कुछ पलों के किए तो उसका दिमाग भी काम करना बंद कर दिया होगा…पहले तो उसे समझ में भी नहीं आया होगा कि आखिर वह किस दुनिया में आ गया है। आंख खुली तो चारों तरफ दीवार जैसी आकृति दिखी होगी..हाथ पैर फैलाना तो छोड़िए मासूम को दर से हिलना भी मुश्किल हो रहा होगा..ऊपर से आती हुई रोशनी से उसे जिंदगी की किरण नजर आयी होगी, शायद यहीं से डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल गया था।

Operation rahul latest news: राहुल ने पहले तो आवाज लगाने की कोशिश की होगी, लेकिन जरा रुकिए वह तो आवाज भी नहीं लगा सकता था..क्योंकि राहुल तो बोल भी नहीं सकता था। यानि कि यह रास्ता भी बंद हो गया..ऐसी स्थिति में मासूम आखिर क्या करता। इंसानी फिथरत है कि हर तरफ से असहाय होने के बाद थक हारकर रोने के लिए मजबूर हो जाता है… राहुल भी रोने के लिए मजबूर हो गया और यहीं बच्चे की रोने की आवाज उसके छोटे भाई ऋषभ ने सुनी।

 

छोटा भाई ऋषभ बोला- भाई जल्दी से बाहर आजा हम लोग खेलेंगे

हम आपको वह बात बताने जा रहे हैं जिसे अभी तक किसी ने बताया नहीं होगा। दरअसल जब राहुल बोरवेल में गिरा उसके बाद राहुल के छोटे भाई ऋषभ ने उसे आवाज लगाना शुरू किया…ऋषभ ने बार बार आवाज लगाई कि भाई जल्दी से बाहर आजा हम लोग खेलेंगे…लेकिन राहुल कोई रिस्पांस नहीं कर रहा था, जिसके बाद उसने यह बात पैरेंट्स को बताई। परिजनों ने आवाज लगाकर उसे ढाहस बंधाने का काम किया लेकिन वह तो सुन भी नहीं सकता था।

आनन फानन में माता पिता ने जिला प्रशासन तक घटना की जानकारी पहुंचाई, आईबीसी24 ने भी घटना को जोर शोर से उठाया और फिर शुरू हुई राहुल को बचाने की मुहिम जिला प्रशासन ने एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमों को घटना की जानकारी दी, टीमें पहुंची और बचाव कार्य की रणनीति बनाना शुरू किया गया।

राहुल के माता-पिता के लिए तो जैसे दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा हो, भला हो भी क्यों ना.. अपने कलेजे के टुकड़े को जिंदगी से जूझते हुए अपनी आंखों से देखना कोई आसान बात नहीं है। हर बच्चा अपने माता पिता के लिए स्पेशल होता है..बच्चे के शरीर में एक खरोंच भी आ गई तो मां का दिल बिचलित हो जाता है लेकिन जब जिंदगी और मौत से जुड़ा हो ऐसे में भला एक मां के आंसू कैसे रुक सकते थे। मां का रो रोकर बुरा हाल था वे गुहार लगा रही थी कि कोई तो उसके बच्चे को बचा ले…कोई तो ईश्वर का अवतार बनकर आ जाए जो उसके बच्चे को मौत के मुंह से निकाल लाए।

क्या कहते हैं डॉक्टर्स

डॉक्टर्स का कहना है कि जब कोई बोरबेल में गिरता है तो सामन्यतः ऑक्सीज़न की समस्या होती है, जिसे मेडिकल भाषा में हम ‘हाइपोक्सिया’ कहते हैं, इस स्थिति में मरीज़ के शरीर में ऑक्सीज़न लेवल कम हो जाता है, और शरीर में रक्त संचार काम होने के कारण, जिससे रोगी को ब्रेन अटैक या लंग्स इन्फेक्शन के कारन मौत हो जाती है, चूंकि वक्त रहते एनडीआरएफ की ने ऑक्सीज़न की सप्लाई चालू कर दी थी इसीलिए हम आज राहुल को देख पा रहे हैं।

इधर एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें अपना काम शुरू कर चुकी थी उधर राहुल बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहा था। जरा गौर करिए उन पलों को जब जमीन के अंदर जिंदगी फंसी हुई हो और हर पल एक नई मुसीबत आ जाए और कहीं भागने का मौका भी न मिले तो ऐसे में किसी इंसान का क्या हाल होता है राहुल से एक मासूम बच्चा था..हम यह बात इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जिस गढ्ढे में राहुल फंसा पड़ा था उसी गढ़ढे में वह अकेला नहीं था उसके पास एक काला सांप भी था..सांप का नाम लेते ही मन में एक खौफ पैदा हो जाता है जिसकी मौजूदगी मात्र से लोग दूर भाग जाते हैं… ऐसे सांप के साए में राहुल ने चार रातें और चार दिन गुजार दिए।

मजबूत चट्टानों के बीच उसके फौलादी इरादों ने हार नहीं मानी

भला सोचिए कितना बहादुर होगा वह बच्चा जिसने चार रातें चार दिन कुल 105 घंटे बिना हिले डुले एक पतले से गढ़ढे ​में बिताए…मजबूत चट्टानों के बीच उसके फौलादी इरादों ने हार नहीं मानी…ऐसी स्थिति में जब किसी सूरवीर शूरमा का साहस भी डगमगा जाए..राहुल ने तो जैसे नहीं हारने की ही ठान ली थी। एक तरफ जेसीबी..पोकलेन, ड्रिलिंग मशीनों की आवाजों से धरती थर्रा रही थी, चट्टानों को चीरती हुई मशीनों के साथ पूरी टीम सुरंग बनाने की जद्दोजहद में लगी हुई थी… वहीं दूसरी तरफ जैसे राहुल कह रहा हो कि आप चिंता मत करो मैं आपका ​इंतजार कर रहा हूं…उसने तो जैसे हार नहीं मानने की ठान ली थी…जब भी लगता कि राहुल रिस्पांस नहीं कर रहा है और बचाव टीम की इरादे कमजोर पड़ते वैसे ही राहुल रिस्पांस देता रहा..जूस और केला भेजने पर उसे खाकर यह जाहिर कर देता था कि अभी उसने हार नहीं मानी है।

करीब 105 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद टीम को सफलता मिली…राहुल को बाहर लाया गया…सभी की धड़कनें बढ़ी हुई थी लेकिन राहुल की धड़कने सामान्य थी…इस दौरान राहुल सभी को अपनी खुली आंखों से देख रहा था..जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं है…राहुल के चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे सभी लोग बेवजह ही चिंता कर रहे थे…राहुल ने यह साबित कर दिया था कि यूं ही नहीं उसे स्पेशल चाइल्ड कहा जा रहा है..भगवान ने उसे इसीलिए स्पेशल बनाया है कि वह किसी भी संकट का डटकर मुकाबला कर सके।

स्पेशल चाइल्ड ने मौत को मात दी

इसे देश में अब तक का सबसे बड़ा सफल आपरेशन कहा जा रहा है, यह तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी, कभी आने वाली पीढ़ियों को कहानी बनाकर सुनाने के काम आएगी कि कैसे एक स्पेशल चाइल्ड ने मौत को मात दी थी…ऐसा मंजर जहां फंसकर खुद ब खुद जिंदगी हार जाती है ऐसे मंजर में भी राहुल ने अपने नाम और अपनी विशेषता को साबित किया था। राहुल शब्द का अर्थ ही होता है ‘सभी प्रकार के कष्ट का विजेता, सक्षम, कुशल। राहुल ने अपने अटल इरादों से यह भी बता दिया कि वह ‘स्पेशल चाइल्ड’ क्यों है उसने तो ‘स्पेशल चाइल्ड’ की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। राहुल ने समाज को यह संदेश दे दिया कि कभी किसी स्पेशल चाइल्ड को कमजोर समझने की गलती भी मत करना…राहुल ने बच्चों को यह सीख दे दी कि कभी कठोर चट्टानों जैसे दुखों के सामने भी हार मत मानना…राहुल ने एक इतिहास बना दिया है…यह ​इतिहास अब कभी दोहराया जाएगा या नहीं यह तो पता नहीं है लेकिन यह राहुल की कहानी बन कर जुबां पर जरूर दोहराई जाएगी।

मुख्यमंत्री भूपेश और प्रशासन ने दिखाई जिंदादिली

बहरहाल, 105 घंटे तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में राहुल साहू के बाहर निकाल लिए जाने से सभी ने राहत की सांस ली। आखिरकार तमाम मशक्कतों के बाद मंगलवार देर रात सेना, एनडीआरएफ के जवानों ने रेस्क्यू कर राहुल को बाहर निकाला गया। मौके पर ही डॉक्टरों ने बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण किया और बेहतर उपचार के लिए 100 किमी लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाकर उसे बिलासपुर अपोलो अस्पताल ले जाया गया। जहां उसका इलाज जारी है..दो दिन बाद राहुल को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी।

राहुल के पिता लाला साहू, मां गीता साहू सहित परिजनों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित कलेक्टर, जिला प्रशासन के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और एनडीआरएफ, सेना, एसडीआरएफ सहित सभी का विशेष धन्यवाद दिया है। इस घटना पर प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल भी समय-समय पर अपडेट लेते रहे और अधिकारियों को निर्देश देते रहे। सभी के सम्मिलित प्रयास से राहुल को नई जिंदगी मिली गई है।