Bhupesh Baghel EVM Politics: रायपुर। चुनावी साल, ताबड़तोड़ प्रचार का माहौल और EVM पर सवाल…क्या कांग्रेसी लड़ाई से पहले ही हार हार मान चुके हैं? क्योंकि, इसी EVM से साल 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत से सत्ता मिली। इसी EVM से 2004 से 2014 तक केंद्र में कांग्रेसनीत UPA सरकार बनी, तो फिर अब कांग्रेस का EVM को लेकर ये रवैया क्यों और तो और प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेता EVM हटाने और बैलेट पेपर से चुनाव के लिए तिकड़म भिड़ाने की सलाह खुले मंचों से देने लगे हैं।
प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौर में EVM पर छिड़ी मौजूदा बहस की शुरूआत हुई है। पाटन में कांग्रेस कार्यकर्ता सम्मेलन के मंच पर प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी नेता के EVM हटाने और बैलेट पेपर से चुनाव के लिए तिकड़म भिड़ाने वाली सलाह तो सुनिए। पूर्व CM की माने तो किसी सीट पर 370 ज्यादा उम्मीदवार से होने पर चुनाव आयोग को बैलेट पेपर से चुनाव कराना मजबूरी होगा। ऐसा कोई नियम नहीं है जिम्मेदार अधिकारी बताते हैं कि- 1 बैलेट यूनिट पर 16 उम्मीदवार आ सकते हैं और ज्यादा से ज्यादा 24 बैलेट यूनिट लगाई जा सकती हैं यानि कुल 384 उम्मीदवार। ऐसा होना मुश्किल है, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो फैसला केंद्रीय चुनाव आयोग लेगा।
जाहिर, चुनाव की आदर्श आचार संहिता के दौरान खुले मंच से चुनाव आयोग की बनी-बनाई व्यवस्था का बिगाड़ने के लिए EVM की लिमिट के लूप-होल के जरिए आयोग को बैलेट पेपर से चुनाव के मजबूर करने की सलाह देने वाला कोई साधारण कार्यकर्ता नहीं बल्कि राज्य के पूर्व CM भूपेश बघेल हैं। उनपर बीजेपी सरकार के दिग्गज नेताओं ने जमकर वार किया। बघेल के इस बयान पर बीजेपी ने कड़ी आपत्ति जताते हुए दुर्ग कलेक्टर से शिकायत की है और उनके चुनाव प्रचार पर रोक लगाने की मांग तक की है।
इधर, EVM को लेकर दिए बयान के बाद अपने सबसे बड़े चेहरे पर बीजेपी के चौतरफा वार पर कांग्रेस ने सफाई भी दी और समर्थन में तर्क देते हुए तंज भी कसा, कि बीजेपी की जान EVM में बसी है, जैसे किसी जादूगर की जान तोते में बसती है। EVM पर शंका और सवाल नये नहीं हैं। मोटे तौर पर बीजेपी का तर्क है, कि जब जमाना नई तकनीक अपनाकर आगे बढ़ने का है तब कांग्रेस देश को सियासी स्वार्थवश पीछे धकेलना चाहती है। वहीं, कांग्रेस समेत EVM विरोधी दलों का तर्क है, कि दुनिया के कई देशों में EVM छोड़ फिर से बैलेट पेपर से चुनाव कराने लगे हैं।
बहरहाल, वास्तविकता ये है, कि इस बारे में सुप्रीम अदालत तक दखल से इंकार कर चुकी है और चुनाव आयोग ये साफ कर चुका है कि देश में चुनाव EVM से ही होंगे। क्योंकि, मौका देने पर भी EVM पर शंका करने की कोई ठोस वजह दल नहीं दे पाए हैं। सबसे बड़ा सवाल ये है, कि अपने काम के आधार पर भरोसा जीतने और वोट मांगने के दौर में पूर्व CM की अपने कार्यकर्ताओं को दी जा रही तिकड़मी नसीहत क्या प्रदेश की जनता को रास आएगी?