Vinod Kumar Shukla passed away: साहित्य में हमेशा जिंदा रहेंगे ज्ञानपीठ से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल, लेखन कौशल से रोशन किया छत्तीसगढ़ का नाम
Vinod Kumar Shukla passed away: उन्होंने शिक्षण को रोजगार के रूप में चुनकर अपना पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया। वे हिंदी भाषा के एक साहित्यकार रहे, जिन्हें हिंदी साहित्य में उनके अनूठे और सादगी भरे लेखन के लिए जाना जाता है।
Vinod Kumar Shukla passed away
- लेखन में संवेदनशीलता के लिए प्रसिद्ध रहे विनोद कुमार शुक्ल
- कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं विनोद कुमार शुक्ल
- लेखन के केंद्र में रही मध्यवर्गीय जीवन की बहुविध बारीकियां
रायपुर। Vinod Kumar Shukla passed away, हिंदी साहित्य के वरिष्ठ और ख्यातिलब्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें सांस लेने में कठिनाई के चलते 2 दिसंबर को रायपुर एम्स में भर्ती किया गया था, जहां वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखे जाने के बाद मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। हाल ही में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने एम्स पहुंचकर विनोद कुमार शुक्ल का हालचाल जाना था ।
हिंदी साहित्य में अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 में 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए गए। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया गया। शुक्ल छत्तीसगढ़ राज्य के ऐसे पहले लेखक हैं, जिन्हें इस सम्मान से नवाजा गया।
आपको बता दें कि साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उन्होंने शिक्षण को रोजगार के रूप में चुनकर अपना पूरा ध्यान साहित्य सृजन में लगाया। वे हिंदी भाषा के एक साहित्यकार रहे, जिन्हें हिंदी साहित्य में उनके अनूठे और सादगी भरे लेखन के लिए जाना जाता है।
लेखन में संवेदनशीलता के लिए प्रसिद्ध रहे विनोद कुमार शुक्ल
Vinod Kumar Shukla passed away, कवि, लेखक और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल ने उपन्यास एवं कविता विधाओं में साहित्य का सृजन किया है। उनकी पहली कविता 1971 में ‘लगभग जयहिंद’ शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। उनके मुख्य उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं। 1979 में नौकर की कमीज नाम से उनका उपन्यास आया, जिस पर फिल्मकार मणिकौल ने इसी नाम से फिल्म भी बनाई। शुक्ल के दूसरे उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी को साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उनका लेखन सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और अद्वितीय शैली के लिए जाना जाता है। वह मुख्य रूप से हिंदी साहित्य में अपने प्रयोगधर्मी लेखन के लिए जाने जाते रहे हैं।
लेखन के केंद्र में रही मध्यवर्गीय जीवन की बहुविध बारीकियां
मध्यवर्गीय जीवन की बहुविध बारीकियों को समाये उनके विलक्षण चरित्रों का भारतीय कथा-सृष्टि में समृद्धिकारी योगदान है। वे अपनी पीढ़ी के ऐसे अकेले लेखक हैं, जिनके लेखन ने एक नयी तरह की आलोचना दृष्टि को आविष्कृत करने की प्रेरणा दी। अपनी विशिष्ट भाषिक बनावट, संवेदनात्मक गहराई, उत्कृष्ट सृजनशीलता से श्री शुक्ल ने भारतीय वैश्विक साहित्य को अद्वितीय रूप से समृद्ध किया।
विनोद कुमार शुक्ल कवि होने के साथ-साथ शीर्षस्थ कथाकार भी रहे। उनके उपन्यासों ने भी हिंदी में एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को राह दी। उन्होंने एक साथ लोकआख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्वमूलक जटिल आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नये कथा-ढांचे का आविष्कार किया। अपने उपन्यासों के माध्यम से उन्होंने हमारे दैनंदिन जीवन की कथा-समृद्धि को अद्भुत कौशल के साथ उभारा।
इन पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं विनोद कुमार शुक्ल
‘गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप ‘ (म.प्र. शासन)
‘रज़ा पुरस्कार ‘ (मध्यप्रदेश कला परिषद)
‘शिखर सम्मान ‘ (म.प्र. शासन)
‘राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान ‘ (म.प्र. शासन)
‘दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान’ (मोदी फाउंडेशन)
‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, (भारत सरकार)
‘हिन्दी गौरव सम्मान’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, उ.प्र. शासन)
‘मातृभूमि’ पुरस्कार, वर्ष 2020 (अंग्रेजी कहानी संग्रह ‘Blue Is Like Blue’ के लिए)
साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के सर्वोच्च सम्मान “महत्तर सदस्य” चुने गये, वर्ष 2021.
2024 का 59वां ज्ञान पीठ पुरस्कार समग्र साहित्य पर दिया गया।
विनोद कुमार शुक्ल की प्रमुख कृतियां
कविता संग्रह
‘लगभग जयहिंद ‘ वर्ष 1971
‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ वर्ष 1981.
‘सब कुछ होना बचा रहेगा ‘ वर्ष 1992.
‘अतिरिक्त नहीं ‘ वर्ष 2000.
‘कविता से लंबी कविता ‘ वर्ष 2001.
‘आकाश धरती को खटखटाता है ‘ वर्ष 2006.
‘पचास कविताएँ’ वर्ष 2011
‘कभी के बाद अभी ‘ वर्ष 2012.
‘कवि ने कहा ‘ -चुनी हुई कविताएँ वर्ष 2012.
‘प्रतिनिधि कविताएँ ‘ वर्ष 2013.
उपन्यास
‘ नौकर की कमीज़ ‘ वर्ष 1979.
‘ खिलेगा तो देखेंगे ‘ वर्ष 1996.
‘ दीवार में एक खिड़की रहती थी ‘ वर्ष 1997.
‘ हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ ‘ वर्ष 2011.
‘ यासि रासा त ‘ वर्ष 2016
‘ एक चुप्पी जगह’ वर्ष 2018.
कहानी संग्रह
‘पेड़ पर कमरा ‘ वर्ष 1988.
‘महाविद्यालय ‘ वर्ष 1996.
‘एक कहानी ‘ वर्ष 2021.
‘घोड़ा और अन्य कहानियाँ ‘ वर्ष 2021.
कहानी/कविता पर पुस्तक
‘गोदाम’, वर्ष 2020.
‘गमले में जंगल’, वर्ष 2021
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