पूर्वोत्तर के एक ईसाई संगठन ने जबरन धर्मांतरण के आरोप को झूठा करार दिया, चिंता प्रकट की |

पूर्वोत्तर के एक ईसाई संगठन ने जबरन धर्मांतरण के आरोप को झूठा करार दिया, चिंता प्रकट की

पूर्वोत्तर के एक ईसाई संगठन ने जबरन धर्मांतरण के आरोप को झूठा करार दिया, चिंता प्रकट की

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:13 PM IST, Published Date : November 25, 2022/4:28 pm IST

गुवाहाटी, 25 नवंबर (भाषा) मिशनरी कार्य में लगे रहने के आरोप के चलते 10 यूरोपीय पर्यटकों को असम से उनके अपने देशों में वापस भेज जाने के करीब एक महीने बाद पूर्वोत्तर के एक बड़े ईसाई संगठन ने शुक्रवार को धर्मांतरण के ‘‘झूठे आरोपों’’ को लेकर चिंता प्रकट की।

इसे समुदाय को बदनाम करने की चेष्टा करार देते हुए ‘‘यूनाईटेड क्रिश्चियन फोरम ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया’’ (एनईआई) ने कहा कि उसने जाति, पंथ, नस्ल से ऊपर उठकर समाज के सभी वर्गों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक विकास के क्षेत्र में सेवाएं दी है।

यूनाईटेड क्रिश्चियन फोरम, एनईआई के प्रवक्ता एलेन ब्रुक्स ने एक विज्ञप्ति में कहा कि ‘‘ धर्मांतरण के बारे में खबरों से हमें बहुत चिंता हुई है।’’

काउंसिल ऑफ बैप्टिस्ट चर्च इन नॉर्थ ईस्ट इंडिया , चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया, प्रेस्बाइटेरियन चर्च ऑफ इंडिया, नॉर्थ ईस्ट क्रिश्चियन काउंसिल (सभी प्रोटेस्टैंट चर्च), एवैंजेलिकल फेलोशिप ऑफ इंडिया (पेटेंकोस्टल चर्च) और क्षेत्रीय कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया (पूर्वोत्तर भारत के सभी कैथोलिक गिरजाघर) समेत क्षेत्र के सभी गिरजाघरों का प्रतिनिधित्व करने वाले ईसाई नेताओं ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए बृहस्पतिवार को यहां बैठक की।

ब्रुक्स ने कहा, ‘‘ किसी भी प्रकार के बलात धर्मांतरण की सबसे पहले निंदा हमने की है लेकिन साथ ही हम हर नागरिक के अपनी मर्जी के अनुसार किसी भी धर्म को चुनने के अधिकार की भी अभिपुष्टि करते हैं जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 25-28 के तहत दी गई है’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमारे समुदाय को बदनाम करने के इरादे से जबरन धर्मांतरण, धोखे या लालच देकर धर्मांतरण करने का आरोप लगाना सही नहीं है। हम महसूस करते हैं कि ऐसे आरोप हमारे समाज को बांटने की सोचीसमझी मंशा से लगाये जाते हैं।’’

कई दक्षिणपंथी संगठनों ने अक्सर ईसाई मिशनरियों पर खासकर गरीब आदिवासियों का जबरन या लालच देकर धर्मांतरण करने का आरोप लगाया है।

हाल में दस यूरोपीयों को असम से उनके अपने अपने देश भेज दिया गया था क्योंकि वे कथित रूप से मिशनरी गतिविधियों में लगे थे। उनमें से तीन स्वीडन के और सात जर्मनी के थे।

अधिकारियों के अनुसार, उनके पास आवश्यक एम1 वीजा नहीं था लेकिन वे पर्यटक वीजा पर देश में आए थे।

कई राज्यों में धर्मांतरण रोधी कानून है लेकिन असम में ऐसा कोई कानून नहीं है।

भाषा

राजकुमार मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)