लालकिला विस्फोट के एक महीने बाद भी पीड़ित परिवार दुख से उबरने के लिए कर रहे संघर्ष
लालकिला विस्फोट के एक महीने बाद भी पीड़ित परिवार दुख से उबरने के लिए कर रहे संघर्ष
(वर्षा सागी)
नयी दिल्ली, नौ दिसंबर (भाषा) “घड़ियां चलती रहीं, दिन बीतते गए, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में लालकिले के निकट हुए बम विस्फोट के पीड़ितों के घरों में दुख वैसे ही जमकर बैठा है, जैसे कोई धूल जो हटने का नाम ही नहीं लेती है।”
लालकिला विस्फोट के एक महीने बाद भी पीड़ित परिवार दुख से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
दिल्ली में 10 नवंबर को लालकिले के निकट शाम 6.52 बजे एक हुंडई आई20 कार में बड़ा विस्फोट हुआ, जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।
विस्फोट के कारण कई वाहन क्षतिग्रस्त हो गए थे तथा घटनास्थल से प्राप्त दृश्यों में क्षत-विक्षत शव और बिखरा हुआ मलबा दिखाई दिया था।
मारे गए लोगों में चांदनी चौक के भागीरथ पैलेस में काम करने वाले दवा व्यवसायी अमर कटारिया भी शामिल थे। उस शाम, कटारिया जब काम खत्म करने के बाद बाहर निकले तो उन्हें इस बात का अहसास नहीं था कि कुछ ही मिनटों में उनकी दुनिया बिखर जाएगी।
त्रासदी के बाद के शुरुआती दिनों में उनका तीन साल का बेटा हर छोटी सी आवाज पर दरवाजे की ओर दौड़ता रहता था। अमर के रिश्तेदार स्वदेश सेठी ने कहा कि बच्चे को लगता था कि उसके पिता आ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि एक महीने बाद भी बच्चे की उलझन कम नहीं हुई है, बल्कि उसका स्वरूप बदल गया है।
हालांकि, अब वह दरवाजे पर इंतजार नहीं करता, फिर भी उसे नहीं पता कि उसके पिता कभी वापस नहीं आएंगे। उसे लगता है कि वह कहीं बाहर हैं और जल्द ही लौट आएंगे।
सेठी ने कहा, ‘‘वह अब भी सोचता है कि अमर कहीं बाहर है।’’
कटारिया निवास में अमर की पत्नी कृति ने उस दुर्भाग्यपूर्ण रात के बाद से मुश्किल से ही बात की है।
सेठी ने कहा कि वह इतनी गहरी खामोशी में डूबी हुई है कि विस्फोट के बाद से वह घर से बाहर नहीं निकल पाई है।
उन्होंने बताया कि कृति अब घंटों एक ही स्थान पर बैठी रहती है और उसकी नजरें कहीं दूर टिकी रहती हैं।
सेठी ने कहा, ‘‘वह बहुत काबिल है, लेकिन उसमें कमरे से बाहर निकलने की भी ताकत नहीं है।’’
उन्होंने सरकार से कृति को नौकरी दिलाने में मदद करने का भी अनुरोध किया और कहा कि इससे उसका ध्यान इस दुख से हटेगा तथा परिवार को आर्थिक स्थिरता भी मिलेगी।
सेठी ने कहा, ‘‘उसका एक बच्चा है जो अपने पिता को कभी नहीं देख पाएगा।’’
वहीं, एक अन्य पीड़ित परिवार भी एक महीने से इसी दुख में फंसा हुआ है।
नोमान (23) उत्तर प्रदेश के झिंझाना से अपनी सौंदर्य प्रसाधन की दुकान के लिए सामान खरीदने दिल्ली आया था, लेकिन वह कभी घर वापस नहीं लौटा।
उसका दोस्त घायल हो गया था और अब भी अस्पताल में उसका इलाज किया जा रहा है।
राजधानी में रहने वाले उसके रिश्तेदार सोनू ने कहा, ‘‘नोमान उसी दिन अपनी दुकान के लिए सामान खरीदने दिल्ली आया था।’’
नोमान का बड़ा भाई साहिल, जो किडनी की बीमारी से पीड़ित है और अस्पताल में भर्ती है, अब भी नहीं जानता कि उसका छोटा भाई मर चुका है।
सोनू ने कहा कि साहिल को लगता है कि नोमान घायल है और दूसरे वार्ड में उसका इलाज किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘एक ऐसे आदमी को यह खबर कैसे सुनाएं जो पहले से ही इतने दर्द में है? उसके पिता बुजुर्ग हैं। परिवार का इकलौता कमाने वाला अब नहीं रहा। एक महीना हो गया है और साहिल अब भी बीमार है। अगर हम उसे बता दें और वह सदमे में चला गया तो क्या होगा? वह बहुत कमजोर है।’’
शाहदरा के रोहतास नगर में 10 नवंबर की शाम अपने पड़ोसी और दोस्त राहुल कौशिक के साथ गौरी शंकर मंदिर दर्शन करने गए अंकुश शर्मा एक अलग ही लड़ाई लड़ रहे हैं।
दोनों विस्फोट में फंस गए थे। विस्फोट में झुलसे राहुल को इलाज के बाद घर भेज दिया गया, जबकि अंकुश का संघर्ष बहुत कठिन है। उसकी एक आंख की रोशनी चली गई और एक कान से सुनने की शक्ति भी चली गई।
अंकुश को एलएनजेपी अस्पताल में कई दिन बिताने के बाद छुट्टी दे दी गई, लेकिन जब उसकी स्थिति बिगड़ गई तो उसे दोबारा एम्स में भर्ती कराया गया।
पारिवारिक मित्र प्रदीप कुमार ने कहा, ‘‘जब वे आईने में देखते हैं तो राहुल और अंकुश दोनों को सदमा लगता है।’’
अंकुश (27) आभूषण की दुकान में काम करता था।
विस्फोट के बाद तीस रातें बीत चुकी हैं, लेकिन इन परिवारों के लिए यह महीना बिना सुबह वाली एक लंबी रात जैसा रहा है।
भाषा
देवेंद्र नेत्रपाल
नेत्रपाल

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