अवैध तरीके से बर्खास्त कर्मचारी को 50 लाख रुपये से अधिक मुआवजा, कोर्ट ने दिया एम्स को भुगतान के आदेश

अवैध तरीके से बर्खास्त कर्मचारी को 50 लाख रुपये से अधिक के भुगतान का एम्स को आदेश

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  • Publish Date - October 24, 2021 / 05:07 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:46 PM IST

नयी दिल्ली, 24 अक्टूबर । दिल्ली उच्च न्यायालय ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को अवैध रूप से सेवा से मुअत्तल किये गये अपने पूर्व कर्मचारी को 50 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करने का निर्देश दिया है। यह कर्मचारी पिछले कई वर्षों से दर-दर भटक रहा था। अस्सी के दशक में एम्स के चालक के रूप में नियुक्त किये गये राज सिंह को हर महीने पेंशन के रूप में 19,900 रुपये का भुगतान किया जाएगा।

याचिकाकर्ता के मुताबिक, उसे अवैध रूप से टर्मिनेट किया गया, जिसके बाद उसने श्रम अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सिंह ने अपनी याचिका में कहा था कि दिसंबर 1998 में श्रम अदालत ने माना था कि उसकी सेवा से बर्खास्तगी एक अनुचित श्रम प्रथा थी। श्रम अदालत के आदेश को विभिन्न प्राधिकारों के समक्ष चुनौती दी गई थी और अंत में एम्स द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को उच्चतम न्यायालय ने तीन जून 2016 को खारिज कर दिया था।

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अधिवक्ता बी. टी. कौल के माध्यम से याचिकाकर्ता ने अधिकारियों को आदेश के अनुपालन और राशि के भुगतान की मांग करते हुए कानूनी नोटिस दिया, लेकिन इसका भुगतान नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने एम्स को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को आदेश की तारीख चार दिसंबर, 1998 से सेवानिवृत्ति की तारीख 31 अक्टूबर 2016 तक का वेतन, छुट्टी के पैसे और ग्रेच्युटी के रूप में 50,49,079 रुपये का भुगतान किया जाए। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को 19,900 रुपये मासिक पेंशन के रूप में देने का निर्देश दिया।

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एम्स अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील सोनाली मल्होत्रा ने उच्च न्यायालय को यह भी बताया कि याचिकाकर्ता को कर्मचारी स्वास्थ्य योजना के तहत नामांकित होने के लिए आजीवन सत्यापन राशि के रूप में 30,000 रुपये जमा करने की भी आवश्यकता है। इस पर, न्यायालय ने कहा कि सिंह जितने लंबे समय से यह मुकदमा लड़ रहे हैं, उसे देखते हुए अब उनकी ओर से 30,000 रुपये की राशि लंबे समय से चले आ रहे मुकदमे की लागत के रूप में एम्स द्वारा ही जमा कराई जाएगी।

इसमें कहा गया है कि सभी देय राशि 30 अक्टूबर तक जारी की जाएगी और आदेश पालन संबंधी हलफनामा 15 नवम्बर तक पेश किया जाएगा, जिसमें रकम की गणना, भुगतान के तरीके और भुगतान की पुष्टि की जानकारी शामिल होगी। न्यायालय ने याचिकाकर्ता के वकील से अपने मुवक्किल के बैंक खातों का विवरण एम्स के वकील को देने का भी निर्देश दिया, ताकि भुगतान सुनिश्चित हो सके।