अलवर: पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं पहाड़ियों पर बने शैल चित्र |

अलवर: पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं पहाड़ियों पर बने शैल चित्र

अलवर: पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं पहाड़ियों पर बने शैल चित्र

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:55 PM IST, Published Date : November 27, 2022/4:05 pm IST

(तस्वीर के साथ)

(कुंज बिहारी माथुर)

जयपुर, 27 नवंबर (भाषा) राजस्थान के अलवर जिले के हाजीपुर डडीकर ग्राम पंचायत की पहाड़ियों में बने पुराकालीन शैल चित्र पर्यटकों के लिए आर्कषण का केन्द्र बन रहे हैं।

एक स्थानीय पर्यटक गाइड ने बताया कि अरावली पर्वत की पहाड़ियों से घिरा यह स्थल पर्यटकों के साथ-साथ इतिहासकारों और शोधकर्ताओं को भी आकर्षित कर रहा है।

अलवर जिला पर्यटन अधिकारी टीना यादव ने बताया कि हाजीपुर डडीकर ग्राम पंचायत की उन पहाड़ियों को जिले के पर्यटन स्थलों की सूची में शामिल किया गया है जिन पर प्राचीन शैल चित्र बने हैं।

2001 में एक स्थानीय ग्रामीण द्वारा खोजे गए ये शैल चित्र अलवर आने वाले पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बन गए हैं और वे पहाड़ियों पर बने शैल चित्रों को देखने के लिए वहां पहुंच रहे हैं।

अलवर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर हाजीपुर डडीकर ग्राम पंचायत की पहाड़ियों में बने शैल चित्रों को देखने के लिए ना केवल देशी पर्यटक बल्कि विदेशी पर्यटकों के साथ-साथ इतिहासकार और अनुसंधान में रूचि रखने वाले लोग भी पहुंच रहे हैं।

यहां पहुंचने के लिए अलवर से 20 किलोमीटर दूर डडीकर तक वाहन से जाया जा सकता है परन्तु शैल चित्रों को देखने के लिए लोगों को पहाड़ियों स्वयं ‘ट्रेकिंग’ करनी होगी।

एक स्थानीय पर्यटक गाइड तेजपाल गुर्जर ने बताया, ‘‘डडीकर की पहाड़ियों पर बने पुराकालीन शैल चित्र हाल के वर्षों में एक नए पर्यटन स्थल के रूप में उभरे हैं। 50 से अधिक देशों के पर्यटकों ने यहां इस स्थल का दौरा किया है।”

उन्होंने बताया कि डडीकर में ही एक हेरिटेज होटल है और यहाँ आने वाले विदेशी सैलानियों को इन शेल चित्रों को देखने के लिए पहाड़ियों पर सैर कराई जाती है।

पचास से ज्यादा देशों के पर्यटकों और कई स्थानीय पर्यटकों को पहाड़ी पर बने शैल चित्रों की सैर करा चुके स्थानीय गाइड तेजपाल गुर्जर ने बताया कि हाजीपुर डड़ीकर की पहाडिय़ों की चट्टानों में स्वास्तिक, मांडना, शेर, गैंडा, हाथी, तलवार, मोर, मछली, सूर्य, बकरियों को चराते गड़रिया, लड़ते जानवर, जानवर की खाल सहित अन्य जंगली जानवरों के शैल चित्र बने हैं। उन्होंने बताया कि यह पूरा क्षेत्र 10-12 किलोमीटर में फैला हुआ है।

गुर्जर ने बताया कि पर्यटकों को सड़क मार्ग के अंतिम छोर तक ले जाने के लिए ट्रैक्टर-ट्रॉलियों का उपयोग किया जाता है और वहां से पहाड़ियों पर जाने के लिए ‘ट्रेकिंग’ शुरू होती है।

उन्होंने दावा किया कि वह अब तक आस्ट्रेलिया, अमेरिका, मेक्सिको, ब्रिटेन, फ्रांस, थाइलैंड, पोलेंड, आयरलेंड, नार्वे, जर्मनी, डेन्मार्क, बांग्लादेश, तुर्की, इन्डोनेशिया, इटली, कनाडा, स्पेन, श्रीलंका, जापान आदि देशों के पर्यटकों को इन शैल चित्रों को दिखाने के लिए पहाड़ियों की सैर करा चुके हैं।

गुर्जर ने पीटीआई्-भाषा को बताया, ‘‘पहाड़ियों पर बने शैल चित्रों वाली जगह अब लोकप्रिय हो रही है। सरिस्का बाघ अभयारण्य और सिलीसेढ, पांडूपोल जैसे अन्य पर्यटक स्थलों के मशहूर अलवर आने वाले कई पर्यटक शैल चित्रों को देखने के लिए डडीकर की पहाड़ियों पर पहुंचते हैं।’’

लगभग 30 वर्षों से अलवर की डडीकर पहाड़ियों पर निवास कर रहे निर्वाणवन फाउंडेशन के संस्थापक निर्वाण बोधिसत्व ने बताया कि यह एक राष्ट्रीय धरोहर है और इसके संरक्षण के लिए सरकार को हर संभव प्रयास करना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘यह एक ऐतिहासिक स्थल है और बहुत से लोगों ने इसे देखना शुरू कर दिया है। सरकार को इसे संरक्षित करने के लिए सभी प्रयास करने चाहिए।”

धरोहर संरक्षण में संलग्न संस्था ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट कल्चर एंड हेरीटेज’ (इन्टैक) की आजीवन सदस्य डा. नीता दुबे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि हाजीपुर डडीकर के चित्र मुख्यत: गेरू से बनाये गये हैं परन्तु यहां पर एक जगह सफेद रंग का भी उपयोग किया गया है।

उन्होंने बताया कि इस पुरास्थल के चित्रों के विषय भिन्न हैं, जैसे मानव आकृतियां, शिकार पश्चात नृत्य के दृश्य, जाल लगाकर शिकार करने का दृश्य, पशु आकृतियां जैसे बैल, लंगूर, शैर, हाथी, बकरियां, नील गाय आदि के चित्र हैं।

अलवर के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, भवेडा के प्राचार्य डा. कोमल कान्त शर्मा ने बताया कि हाजीपुर डडीकर क्षेत्र के शैलाश्रय एवं शैल चित्रों के बारे में जानकारी पुरावेत्ता प्रेमलता पोकरना को एक बैंक कर्मी बख्शी ने दी जो कि चरवाहों की सूचना पर आधारित थी। उन्होंने बताया कि बाद में इस क्षेत्र में व्यापक शोध कार्य किया गया।

शर्मा ने बताया कि क्षेत्र में कई शोध छात्र भी इन शैल चित्रों का अध्ययन करने आते हैं।

भाषा कुंज नोमान अमित

अमित

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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