‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ में विकास कार्यों पर प्रतिबंध की समीक्षा होनी चाहिए: डीडीए |

‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ में विकास कार्यों पर प्रतिबंध की समीक्षा होनी चाहिए: डीडीए

‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ में विकास कार्यों पर प्रतिबंध की समीक्षा होनी चाहिए: डीडीए

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:27 PM IST, Published Date : May 18, 2022/7:45 pm IST

नयी दिल्ली, 18 मई (भाषा) दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने दिल्ली के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर उनसे राजधानी के ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ क्षेत्र में विकास कार्यों पर वन विभाग द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की समीक्षा करने का आग्रह किया है।

वन विभाग के अनुसार ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ रिज क्षेत्र का वह हिस्सा है जिसमें रिज जैसी विशेषताएं हैं लेकिन यह अधिसूचित वन नहीं है। यह अरावली के विस्तार का एक भाग है।

‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ क्षेत्र में किसी भी निर्माण कार्य के लिए दिल्ली के मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाले रिज प्रबंधन बोर्ड (आरएमबी) और केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के माध्यम से उच्चतम न्यायालय की अनुमति आवश्यक है।

डीडीए ने ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ क्षेत्र में कई परियोजनाओं पर प्रतिबंध लगाने के वन विभाग के फैसले को चुनौती देते हुए कहा है कि ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ शब्द की न तो ‘‘कानूनी व्याख्या है और न ही इसकी कोई वैज्ञानिक पृष्ठभूमि है।’’

पत्र में कहा गया, ‘‘यह उल्लेख करना उचित है कि इस तरह के ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ से संबंधित मुद्दों के परिणामस्वरूप डीडीए और अन्य एजेंसियों के लिए प्रमुख आर्थिक प्रभाव पड़ा है और क्षेत्र के भीतर विकास गतिविधियों में बाधा उत्पन्न हुई है।’’

पत्र में कहा गया है, ‘‘डीडीए पहले ही भूमि के अधिग्रहण पर करोड़ों रुपये खर्च कर चुका है, जिसे बाद में विभिन्न सरकारी एजेंसियों जैसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू), राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), दिल्ली पुलिस, भारतीय शहरी संस्थान, भारतीय विदेश व्यापार संस्थान और दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय को आवंटित किया गया है।’’

वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर राजधानी के कुछ क्षेत्रों को ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। उन्होंने कहा, ‘‘हमने मुख्य सचिव को इस बारे में जानकारी दे दी है…जल्द ही, हम सभी दस्तावेज अपनी वेबसाइट पर डाल देंगे। अगर डीडीए इसे चुनौती देना चाहता है तो उसे उच्चतम न्यायालय का रुख करना चाहिए।’’

एक अधिकारी ने अशोक तंवर बनाम केंद्र सरकार मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया कि ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ में किसी भी निर्माण के लिए आरएमबी या सीईसी के माध्यम से उच्चतम न्यायालय की अनुमति आवश्यक है।

वन विभाग द्वारा 2014 में प्रकाशित पुस्तिका ‘‘दिल्ली रिज: एक परिचय’’ के अनुसार, 2006 के दिल्ली के भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा प्रदान किए गए भूकंपीय क्षेत्र के आधार पर ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ का वर्णन किया गया है।

इस पुस्तिका में कहा गया, ‘‘अधिसूचित रिज के समान विशेषताओं वाले ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ का पारिस्थितिक हिसाब से काफी महत्व है और इसे संरक्षित तथा अनियोजित विकास से मुक्त रखा जाना चाहिए। यह रिज के मुख्य वन क्षेत्र की सुरक्षा के लिए ‘बफर जोन’ के रूप में काम करता है।’’

पुस्तिका में कहा गया, ‘‘इसके अलावा, ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ उच्च भूकंपीय जोखिम क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इसलिए, इस क्षेत्र में ऊंची इमारतों का निर्माण खतरनाक हो सकता है। सरकार ने मॉर्फोलॉजिकल रिज’ क्षेत्र की विशेषताओं की पहचान की। राजस्व रिकॉर्ड में यह क्षेत्र ‘गैर मुमकिन पहाड़’ के रूप में दर्ज है और दिल्ली रिज के हिस्से के रूप में रिज वनों के रूप में अधिसूचित क्षेत्र है।’’

हालांकि, डीडीए ने कहा कि ऐसे क्षेत्र आम तौर पर चट्टानी होते हैं और उन्हें रिज/पहाड़ी क्षेत्रों की तलहटी और मैदानी इलाकों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और ‘‘नींव डालने और भूकंप के मामले में निर्माण गतिविधियों के लिए सुरक्षित हैं।’’

दिल्ली में जमीन की कमी का हवाला देते हुए डीडीए ने हाल में दिल्ली वन विभाग से प्रतिपूरक पौधारोपण योजना के दिशानिर्देशों को संशोधित करने और काटे गए प्रत्येक पेड़ के लिए लगाए जाने वाले पौधों की संख्या को 10 से घटाकर दो करने का अनुरोध किया था।

भाषा आशीष नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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