नयी दिल्ली, छह दिसंबर (भाषा) भाजपा के राज्यसभा सदस्य भीम सिंह ने यहां कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों की आवश्यकता नहीं है और इन्हें आपातकाल के दौरान ‘अलोकतांत्रिक’ तरीके से जोड़ा गया था।
सिंह ने शुक्रवार को राज्यसभा में संविधान (संशोधन) विधेयक, 2025 (प्रस्तावना में संशोधन) पेश किया।
उन्होंने कहा कि ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द ‘‘भ्रम’’ पैदा करते हैं और ये मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे।
सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘मैंने संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने और ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्दों को हटाने के लिए एक निजी विधेयक पेश किया है… संविधान, जो 1950 से लागू है, में ये दोनों शब्द नहीं थे। इंदिरा गांधी ने 1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान में ये दोनों शब्द जोड़े थे। उस समय संसद में कोई चर्चा नहीं हुई थी।’’
उन्होंने कहा कि उस समय ‘‘सभी विपक्षी नेता – अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीस – जेल में थे। लोकतंत्र की हत्या हो रही थी, और उस स्थिति में श्रीमती इंदिरा गांधी ने ये दोनों शब्द जोड़े। इसतरह, इन शब्दों को बाद में जोड़ा गया, और संविधान को अपने मूल स्वरूप में ही रहना चाहिए।’’
भाजपा सांसद ने आरोप लगाया कि ये दोनों शब्द ‘‘तुष्टीकरण की राजनीति’’ के लिए शामिल किए गए थे।
उन्होंने तर्क दिया कि ‘समाजवादी’ शब्द तत्कालीन सोवियत संघ को खुश करने के लिए जोड़ा गया था, और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द मुसलमानों को खुश करने के लिए जोड़ा गया। उन्होंने कहा, ‘‘यह अनावश्यक है। यह केवल भ्रम पैदा करता है।’’
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