सिनेमा न केवल उद्योग है बल्कि हमारे मूल्यों की कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी है: राष्ट्रपति मुर्मू |

सिनेमा न केवल उद्योग है बल्कि हमारे मूल्यों की कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी है: राष्ट्रपति मुर्मू

सिनेमा न केवल उद्योग है बल्कि हमारे मूल्यों की कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी है: राष्ट्रपति मुर्मू

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 09:01 PM IST, Published Date : September 30, 2022/9:51 pm IST

नयी दिल्ली, 30 सितंबर (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को कहा कि सभी कला रूपों में फिल्मों का प्रभाव सबसे व्यापक होता है और फिल्में न केवल एक उद्योग हैं बल्कि हमारी मूल्य प्रणाली की कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी हैं।

68वें राष्ट्रीय फिल्म समारोह में विभिन्न श्रेणियों के तहत वर्ष 2020 के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्रदान करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि दृश्य श्रव्य माध्यम के रूप में कला के अन्य माध्यमों की तुलना में फिल्मों का प्रभाव जन मानस पर ज्यादा गहरा होता है।

मुर्मू ने कहा कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो भारतीय दर्शकों द्वारा ज्ञात औए गुमनाम दोनों स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन से जुड़ी कहानियों से संबंधित फीचर और गैर-फीचर फिल्मों का स्वागत किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि दर्शक ऐसी फिल्मों के निर्माण की इच्छा रखते हैं, जो समाज में एकता को बढ़ावा दें, राष्ट्र के विकास को गति प्रदान करें और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को मजबूत करें।

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ सभी कला रूपों में फिल्मों का प्रभाव सबसे व्यापक होता है और फिल्में न केवल एक उद्योग हैं बल्कि हमारी मूल्य प्रणाली की कलात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम भी हैं।’’ उन्होंने कहा कि यह हमाारे समाज को जोड़ने एवं राष्ट्र निर्माण का भी एक माध्यम है।

राष्ट्रपति ने कहा कि यह भारत की सॉफ्ट-पावर को वैश्विक स्तर पर फैलाने का एक बड़ा माध्यम रहा है। उन्होंने कहा कि इस सॉफ्ट-पावर का अधिक कारगर इस्तेमाल करने के लिए, हमें अपनी फिल्मों की गुणवत्ता को बेहतर करना होगा। राष्ट्रपति ने कहा, “अब हमारे देश के किसी एक क्षेत्र में बनी फिल्में अन्य सभी क्षेत्रों में भी बेहद लोकप्रिय हो रही हैं। इस तरह भारतीय सिनेमा सभी देशवासियों को एक सांस्कृतिक सूत्र में बांध रहा है। इस फिल्म समुदाय का भारतीय समाज में बहुत बड़ा योगदान है।”

मुर्मू ने अपने संबोधन के दौरान रिचर्ड एटनबरो की 1982 की फिल्म ‘गांधी’ का भी जिक्र किया और कहा कि भारतीय मूल्यों एवं व्यक्तित्व पर आधारित फिल्में भी अच्छा कारोबार कर सकती हैं।

उन्होंने कहा कि इस साल जुलाई में, शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक उज्बेकिस्तान में आयोजित की गई थी। इस बैठक के समापन समारोह में एक विदेशी बैंड द्वारा 1960 के दशक की एक हिन्दी फिल्म का एक लोकप्रिय गीत बजाया गया था।

राष्ट्रपति ने गुजरे जमाने की बेहतरीन अदाकारा आशा पारेख को सिनेमा की दुनिया में उनके विशेष योगदान के लिए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्रदान किया और बधाई देते हुए कहा कि उनका यह पुरस्कार महिला सशक्तिकरण को मान्यता प्रदान करता है। । उन्होंने 68वें फिल्म समारोह में विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार प्राप्त करने वाले कलाकारों को भी बधाई दी ।

इस अवसर पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि उनका यह दृढ़ विश्वास है कि सिनेमा चित्रों में पिरोई एक कविता है जो उन सभी किस्म के जादू, चमत्कार और जुनून को दर्शाती है जिससे हमें जीवंत और मानवीय होने का एहसास होता है।

उन्होंने कहा कि सिनेमा ने हमारे देश की अंतरात्मा, समुदाय और संस्कृति को सहेजा है । उन्होंने कहा कि कोविड की गंभीर हकीकत और नाजुक वैश्विक आर्थिक स्थितियों के बीच, आपके द्वारा प्रदान किया गया मनोरंजन और संदेश ही हमारे लिए उम्मीद की किरण थी।

भाषा दीपक नोमान नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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