असम में बाढ़ के बढ़ते खतरे के लिए जलवायु परिवर्तन, खराब नीतियां जिम्मेदार |

असम में बाढ़ के बढ़ते खतरे के लिए जलवायु परिवर्तन, खराब नीतियां जिम्मेदार

असम में बाढ़ के बढ़ते खतरे के लिए जलवायु परिवर्तन, खराब नीतियां जिम्मेदार

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:08 PM IST, Published Date : July 3, 2022/3:42 pm IST

(दुर्बा घोष)

गुवाहाटी, तीन जुलाई (भाषा) असम में हर साल इस समय के आसपास जनजीवन पूरी तरह से ठप हो जाता है। लोग लगातार बारिश, भूस्खलन और बाढ़ से बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। इन आपदाओं की तीव्रता लगातार बढ़ रही है, जिससे जानमाल के नुकसान में भी वृद्धि हो रही है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, ब्रह्मपुत्र और बराक नदी घाटी में बाढ़ पहले से ही आती रही है, लेकिन हाल के वर्षों में हुए अभूतपूर्व विनाश के लिए मुख्य रूप से दोषपूर्ण बाढ़ नियंत्रण उपायों, जनसंख्या दबाव, जलाशयों के सिकुड़ने, अनियंत्रित निर्माण और विकास रणनीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. पार्थ ज्योति दास ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि मई और जून में आई विनाशकारी बाढ़ ने पिछले कुछ वर्षों की तुलना में इस बार बड़े भूभाग को अपनी चपेट में लिया है और मानसून से पहले आई बाढ़ में इतनी बड़ी संख्या में मौतें भी कम ही हुई हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘बढ़ती आबादी और बाढ़ के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण असम में भारी नुकसान के पीछे के कुछ कारण हैं। कई जगहों पर तटबंधों के टूटने से भारी तबाही हुई है। इसके अलावा, बार-बार अचानक आने वाली बाढ़ के कारण लोगों के पास जान-माल की रक्षा करने के लिए बहुत कम समय बचता है।’’

डॉ. दास के मुताबिक, बाढ़ का पूर्वानुमान और चेतावनी कई बार संवेदनशील आबादी तक नहीं पहुंच पाती, ऐसे में उनके पास तैयारी की कोई गुंजाइश नहीं रहती।

असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) के एक प्रवक्ता के अनुसार, बाढ़ की मौजूदा लहर, जो पूर्वोत्तर राज्य अब भी झेल रहा है, ने 2,35,845.74 हेक्टेयर में फसलों को नुकसान पहुंचाने के अलावा 174 लोगों की जान ले ली है और 90 लाख लोगों को संकट में डाल दिया है।

जल संसाधन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि ब्रह्मपुत्र घाटी दुनिया के सबसे अधिक बाढ़ संभावित क्षेत्रों में से एक है, जिसके बाद बराक घाटी का स्थान आता है।

अधिकारी के मुताबिक, लगभग 100 सहायक नदियों और उप-सहायक नदियों का पानी बह्मपुत्र और बराक में जाता है तथा दोनों नदियों का असम को बाढ़ की चपेट में लाने में 40 प्रतिशत योगदान है।

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक और मानवजनित, दोनों तरह के कारकों की शृंखला संकट को और बढ़ाती है।

नदी विशेषज्ञ प्रदीप पुजारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि जल निकासी के लिए संकुचित स्थान और स्थानीय जलाशयों का खत्म होना, जो पहले बाढ़ के पानी के भरने का स्त्रोत हुआ करते थे, शहरी बाढ़ के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है।

उनकी बात का समर्थन करते हुए असम विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान के पूर्व प्रोफेसर डॉ. अभिक गुप्ता ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ पहाड़ और वनों की कटाई बाढ़ के बढ़ते खतरे के लिए जिम्मेदार है।

भाषा सुरभि पारुल

पारुल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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