न्यायालय ने 1990 के हत्या मामले में चार लोगों को बरी किया

न्यायालय ने 1990 के हत्या मामले में चार लोगों को बरी किया

न्यायालय ने 1990 के हत्या मामले में चार लोगों को बरी किया
Modified Date: October 17, 2025 / 08:47 pm IST
Published Date: October 17, 2025 8:47 pm IST

नयी दिल्ली, 17 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उन चार लोगों को बरी कर दिया जिन्हें कथित राजनीतिक शत्रुता के कारण 35 वर्षीय युवक की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था। न्यायालय ने यह फैसला सुनाने से पहले कहा कि दो ‘कथित चश्मदीद गवाहों’ के बयान विरोधाभासों से भरे थे।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग करते हुए उन तीन आरोपियों को भी बरी कर दिया, जिन्होंने अपनी दोषसिद्धि को उच्चतम न्यायालय में चुनौती नहीं दी थी।

न्यायालय ने एक आरोपी द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के अप्रैल 2009 के आदेश को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने चारों आरोपियों को दोषी ठहराने और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था।

 ⁠

पीठ ने कहा कि मौजूदा मामले में अभियोजन पक्ष घटना की शुरुआत और घटनास्थल को निश्चितता के साथ स्थापित करने में विफल रहा है।

पीठ ने कहा कि प्राथमिकी में अभियोजन पक्ष के एक गवाह के आवास के पास आरोपियों द्वारा एक झोपड़ी को गिराने की बात कही गई है।

पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के एक अन्य गवाह ने अपराध स्थल को अपने घर के पास बताया और किसी भी तरह की तोड़फोड़ से इनकार किया। पीठ ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष के एक अन्य गवाह ने दावा किया कि हमला एक खेत में हुआ था।

पीठ ने कहा, ‘‘वे (अभियोजन पक्ष के दो गवाह) अपराध स्थल पर एक-दूसरे की मौजूदगी को स्वीकार नहीं करते। इस तरह के परस्पर विरोधी विवरण एक विश्वसनीय कहानी के भीतर एक साथ नहीं रह सकते।’’

पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के फैसले समेत अधीनस्थ अदालत के आदेश को भी रद्द किया जाता है जिसने चारों को दोषी ठहराया था।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘अभियुक्त-अपीलकर्ता (कन्नैया) और तीन सह-अभियुक्तों- गोवर्धन, राजा राम और भीमा की दोषसिद्धि को बरकरार रखना ठीक नहीं होगा, क्योंकि तथाकथित चश्मदीद गवाहों की गवाही… विरोधाभासों से भरी है।’’

इंदौर की एक अदालत ने अक्टूबर 1999 में उन्हें दोषी ठहराया था, जबकि छह अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था।

पीठ ने कहा कि सितंबर 1990 में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि 10 लोग एक झोपड़ी को नुकसान पहुंचा रहे थे और उसी दौरान उन लोगों ने पीड़ित पर हमला किया।

पीड़ित की इंदौर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई।

भाषा संतोष अविनाश

अविनाश


लेखक के बारे में