कोविड-19 के कारण ओंगे, जरावा जनजातियों समेत पृथक रहने वाले समुदायों को खतरा: अध्ययन |

कोविड-19 के कारण ओंगे, जरावा जनजातियों समेत पृथक रहने वाले समुदायों को खतरा: अध्ययन

कोविड-19 के कारण ओंगे, जरावा जनजातियों समेत पृथक रहने वाले समुदायों को खतरा: अध्ययन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:24 PM IST, Published Date : October 14, 2021/2:45 pm IST

नयी दिल्ली, 14 अक्टूबर (भाषा) अंडमान द्वीप की ओंगे और जरावा जनजातियों समेत भारत में पृथक रहने वाले समुदायों पर कोविड-19 के कारण आनुवंशिक जोखिम अधिक है।

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर)- सेल्युलर और आणविक जीवविज्ञान (सीसीएमबी) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है। इस अध्ययन के निष्कर्ष ‘जीन एंड इम्युनिटी’ पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।

इस अध्ययन में पाया गया है कि सरकार को इन जनजातीय समूहों को उच्च प्राथमिकता के आधार पर सुरक्षा प्रदान करने और उनकी अत्यधिक देखभाल करने पर विचार करना चाहिए, ताकि ‘‘हम आधुनिक मानव विकास के कुछ जीवित खजाने को खो नहीं दें।’’

सीएसआईआर-सीसीएमबी हैदराबाद के कुमारासामी थंगराज और बीएचयू, वाराणसी के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे की अगुवाई वाले अनुसंधान दल ने कहा कि सार्स-सीओवी-2 वायरस के संक्रमण ने दुनियाभार के विभिन्न जातीय समूहों को प्रभावित किया है।

उन्होंने कहा कि हाल में यह बताया गया कि ब्राजील के मूल समूह इस वायरस से बड़े पैमाने पर प्रभावित हुए हैं और कोरोना वायरस के कारण इन समूहों में मृत्यु दर अन्य समुदायों की तुलना में दुगुनी है।

अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि कुछ मूल समुदाय इस वैश्विक महामारी के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं। उन्होंने बताया कि अंडमान द्वीप समेत भारत में भी ऐसे कई मूल एवं छोटे समुदाय हैं, जो पृथक रह रहे हैं।

दुनिया भर के 13 संस्थानों के 11 वैज्ञानिकों ने 227 भारतीय समुदायों का जीनोमिक विश्लेषण किया और पाया कि जिस आबादी के जीनोम में दीर्घ डीएनए समयुग्मक है, उनके कोविड-19 से संक्रमित होने की आशंका अधिक है।

समयुग्मक एक आनुवंशिक स्थिति होती है, जिसमें एक व्यक्ति को अपने माता-पिता दोनों से एक विशेष जीन के लिए समान जीन प्रारूप या जेनेटिक तत्व विरासत में मिलते हैं।

बीएचयू में आणविक मानव विज्ञान के प्रोफेसर चौबे ने कहा, ‘‘पृथक रहने वाली आबादी पर कोविड-19 के कारण पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में कुछ अटकलें लगाई गई हैं, लेकिन ऐसा पहली बार है, जब हमने जीनोमिक आंकड़ों का उपयोग उन पर इसके जोखिम का पता लगाने के लिए किया।’’

उन्होंने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘यह दृष्टिकोण कोविड-19 से इन समुदायों को होने वाले जोखिम को मापने के लिए उपयोगी होगा।’’

अनुसंधान दल ने 227 जातीय आबादी के 1,600 से ज्यादा व्यक्तियों के उच्च घनत्व जीनोमिक डेटा की जांच की और उसे ओंगे, जरावा (अंडमान के आदिवासी) एवं कुछ अन्य लोगों में समयुग्मक जीनों की सन्निहित लंबाई की उच्च आवृत्ति मिली। इन पर संक्रमण का अधिक खतरा है।

उन्होंने कहा, ‘‘अध्ययन में पाया गया है कि ये जनजातीय आबादी संरक्षित क्षेत्रों में रहती है और आम जनता को उनके साथ बातचीत करने की अनुमति नहीं है, लेकिन द्वीप पर सामान्य आबादी के बीच संक्रमण के मामलों की संख्या को देखते हुए, इन जनजातीय समूहों पर भी अवैध घुसपैठियों और स्वास्थ्य कर्मियों से संक्रमित होने का खतरा है।’’

इन अनुसंधान में केरल स्थित अमृता विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल स्थित कलकत्ता विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश स्थित केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला और अमेरिका स्थित अलबामा विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने भी भाग लिया।

भाषा सिम्मी शाहिद

शाहिद

 

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