क्रूरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि अपराध समाज के खिलाफ होता है : न्यायालय

क्रूरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि अपराध समाज के खिलाफ होता है : न्यायालय

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  • Publish Date - September 20, 2021 / 10:09 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:51 PM IST

नयी दिल्ली, 20 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी आपराधिक कार्यवाही में पीड़ित पर की गई क्रूरता की अनदेखी नहीं की जा सकती क्योंकि अपराध किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि समाज के खिलाफ होता है और इससे सख्ती से निपटने की जरूरत है। इसके साथ ही न्यायालय ने एक आपराधिक मामले में निचली अदालत द्वारा सुनायी गयी सजा में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा कि गलत काम करने वाले को सजा देना दंड प्रणाली का हृदय है और उसके पास मुकदमे का सामना करने वाले आरोपी को दोषी ठहराए जाने के बाद ‘न्यायसंगत सजा’ देने के लिए सुनवाई अदालत का आकलन करने की खातिर कोई विधायी या न्यायिक रूप से निर्धारित दिशानिर्देश नहीं है।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा कि वह सजा सुनाने के दौरान विवेक का प्रयोग करते समय विभिन्न कारकों के संयोजन पर गौर करती है।

पीठ महाराष्ट्र निवासी भगवान नारायण गायकवाड़ द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें बंबई उच्च न्यायालय के एक फैसले को चुनौती दी गयी है। उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 326 (खतरनाक हथियारों से गंभीर चोट पहुंचाना) के तहत पांच साल के कठोर कारावास के साथ एक हजार रुपये जुर्माना तथा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के तहत (पीड़ित को मुआवजे) दो लाख रुपये का मुजावजा दिए जाने के आदेश को बरकरार रखा था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, गायकवाड़ ने घायल पीड़ित सुभाष यादवराव पाटिल पर तलवार से हमला किया था जिससे पाटिल स्थायी रूप से विकलांग हो गए और 13 दिसंबर, 1993 की इस घटना के दौरान उनका दाहिना हाथ और पैर काट दिया गया था।

अदालत ने कहा कि दृढ़ इच्छाशक्ति और तत्काल चिकित्सा के कारण ही पीड़ित जीवित रह सका क्योंकि इलाज करने वाले डॉक्टर ने यहां तक ​​कहा था कि तत्काल उपचार नहीं होने पर मृत्यु निश्चित थी।

भाषा अविनाश मनीषा

मनीषा