नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) तिरुवनंतपुरम आधारित एक सीएसआईआर संस्थान ने रोगजनक जैव चिकित्सा कचरे के निस्तारण में वर्तमान पद्धतियों के लिए ऊर्जा-दक्षता विकल्प प्रदान करने वाली तकनीक को मान्य करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स),दिल्ली के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं।
सीएसआईआर-राष्ट्रीय अंतःविषय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-एनआईआईएसटी) ने एक दोहरी कीटाणुशोधन प्रणाली विकसित की है जो रक्त, मूत्र, लार और प्रयोगशाला के कचरे जैसे सड़ने वाले रोगजनक जैव चिकित्सा (बायोमेडिकल) कचरे को स्वचालित रूप से कीटाणुरहित कर सकती है। साथ ही दुर्गंध वाले बायोमेडिकल कचरे को एक अच्छी प्राकृतिक सुगंध प्रदान कर सकती है।
इस तकनीक से वैश्विक जैव चिकित्सा क्षेत्र में दूरगामी परिणाम प्राप्त होने की संभावना है। इसे एम्स में ‘पायलट-स्केल इंस्टॉलेशन’ और अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) के माध्यम से मान्य किया जाएगा।
सीएसआईआर-एनआईआईएसटी के निदेशक डॉ. सी. आनंदधर्मकृष्णन ने कहा, ‘‘रोगजनक जैव चिकित्सा अपशिष्ट को बेहतर मृदा में बदलने के लिए हमने जो प्रौद्योगिकी विकसित की है, वह ‘अपशिष्ट से धन’ (वेस्ट टू वेल्थ कांसेप्ट) अवधारणा का एक आदर्श उदाहरण है।’’
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