वन क्षेत्र निवासियों के दावों की सुनवाई करने वाली समिति में डीएलएसए सदस्यों को शामिल करें: अदालत

वन क्षेत्र निवासियों के दावों की सुनवाई करने वाली समिति में डीएलएसए सदस्यों को शामिल करें: अदालत

वन क्षेत्र निवासियों के दावों की सुनवाई करने वाली समिति में डीएलएसए सदस्यों को शामिल करें: अदालत
Modified Date: December 6, 2025 / 01:11 am IST
Published Date: December 6, 2025 1:11 am IST

नैनीताल, पांच दिसंबर (भाषा) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह एक दूरस्थ गांव के लोगों को पुनर्वासित करने के लिए गठित समिति में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) के सदस्यों को शामिल करे।

इस गांव के लोगों ने बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी को लेकर जनहित याचिका दायर की है।

मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि प्राधिकरण सदस्यों को शामिल करने से यह सुनिश्चित होगा कि वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को वन अधिकार अधिनियम के तहत भूमि के पट्टे मिल सकें और उन्हें बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा सकें।

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यह समिति वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के दावों और अधिकारों की सुनवाई के लिए गठित की गई थी।

इससे पहले, उच्च न्यायालय ने क्षेत्र में रहने वाले लोगों के पुनर्वास के लिए 2014 में गठित समिति की गई सिफारिशों पर राज्य सरकार द्वारा अब तक लिए गए निर्णय के बारे में पूछा था।

‘इंडिपेंडेंट मीडिया सोसाइटी’ ने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नैनीताल जिले के सुंदरखाल में 1975 से रह रहे ग्रामीणों को बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।

इसी वजह से सुंदरखाल के ग्रामीण कई वर्षों से पुनर्वास की मांग कर रहे हैं।

सरकार ने 2014 में एक समिति गठित कर इन लोगों को पुनर्वासित करने का निर्णय लिया। इसके बावजूद, आज तक न तो ग्रामीणों का पुनर्वास किया गया और न ही उन्हें आवश्यक बुनियादी सुविधाएं प्रदान की गई हैं।

याचिका में बताया गया कि ये लोग जिस क्षेत्र में रहते हैं, वह अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में आता है।

भाषा जितेंद्र रंजन

रंजन


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