गुवाहाटी, 22 सितंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बृहस्पतिवार को कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत की एक ऐसी पूंजी है जिस पर न तो कोई बातचीत की जा सकती है और न ही इस पर समझौता किया जा सकता है।
धनखड़ ने कहा कि इससे किसी भी प्रकार का विचलन देश की संप्रभुता और समानता के साथ ‘‘समझौता’’ करने के समान होगा ।
‘लोकमंथन 2022’ का यहां उद्घाटन करते हुये उन्होंने यह भी कहा कि देश में ‘‘छद्म बुद्धिजीवियों’’ की संख्या बढ़ रही है और इसे कम करने की आवश्यकता है ।
धनखड़ ने कहा, ‘‘भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और हम इससे कभी समझौता नहीं कर सकते हैं । अगर हम इससे कभी हटते हैं तो हमें अपने देश की संप्रभुता एवं समानता के साथ समझौता करना होगा ।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र में कानून की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके साथ ही उन्होंने इस बात के लिये निराशा जाहिर की कि आजकल विधानसभा के बजाय सड़कों पर मुद्दों की चर्चा होती है ।
उन्होंने कहा, ‘‘चिंता का एक विषय है जिसे दूर करने की जरूरत है और वह है छद्म बुद्धिजीवी । क्या इस श्रेणी के लोगों को सार्वजनिक स्थान पर हावी होने दिया जा सकता है ?’’
उन्होंने यह भी कहा कि बुद्धिजीवियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, और उन्हें सक्रिय संवाद, बहस और चर्चा में शामिल होना चाहिए ।
भाषा रंजन हक मनीषा
मनीषा
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