उत्तर भारत में 2060 तक ताजे पानी के भंडार में अपरिवर्तनीय स्तर तक कमी की आशंका : अध्ययन |

उत्तर भारत में 2060 तक ताजे पानी के भंडार में अपरिवर्तनीय स्तर तक कमी की आशंका : अध्ययन

उत्तर भारत में 2060 तक ताजे पानी के भंडार में अपरिवर्तनीय स्तर तक कमी की आशंका : अध्ययन

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:03 PM IST, Published Date : August 16, 2022/4:37 pm IST

नयी दिल्ली, 16 अगस्त (भाषा) उत्तर भारत के कई क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2060 तक ताजे पानी की उपलब्धता में अपरिवर्तनीय स्तर पर कमी का सामना कर सकते हैं। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने रेखांकित किया कि एशिया का ‘‘वाटर टॉवर’’ कहलाने वाला तिब्बत का पठार निचले प्रवाह क्षेत्र में रह रही करीब दो अरब आबादी को ताजा पानी की आपूर्ति करता है।

जर्नल ‘नेचर क्लाइमेट चेंज’ में सोमवार को प्रकाशित इस अध्ययन में इंगित किया गया है कि कमजोर जलवायु नीति की वजह से क्षेत्र में ताजे पानी की उपलब्धता में अपरिवर्तनीय कमी आ सकती है।

अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इससे मध्य एशिया और अफगानिस्तान में जलापूर्ति प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त हो सकती है जबकि उत्तर भारत और पाकिस्तान की जलापूर्ति प्रणाली सदी के मध्य में ध्वस्त होने के करीब पहुंच सकती है।

अमेरिका स्थित पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में वायुमंडल के प्रख्यात प्रोफेसर माइकल मैन ने कहा, ‘‘ आसार ठीक नहीं है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम, ‘चलता है’ के रवैये की वजह से आने वाले दशकों में जीवश्म ईंधनों के इस्तेमाल में अर्थपूर्ण कटौती करने में विफल रहते हैं, तो हमारी व्यवस्था के ध्वस्त होने की आशंका होगी… तिब्बत के पठार के नीचे बसे इलाकों में जल उपलब्धता में करीब शत प्रतिशत की क्षति होगी।’’

अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक अहम होने के बावजूद तिब्बत के पूर्व और भविष्य में स्थलीय जल भंडार (टीडब्ल्यूएस) पर जलवायु परिवर्तन के असर का ज्यादा पता नहीं लगाया गया है।

चीन स्थित शिंगुआ विश्वविद्यालय के हाइड्रोलॉजिक इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डी लॉन्ग ने कहा, ‘‘तिब्बत के पठार करीब दो अरब लोगों की जल आवश्यकता के बड़े हिस्से की आपूर्ति करते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जल उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पूरे क्षेत्र में स्थलीय जल भंडार अहम है और यह जलवायु परिवर्तन के प्रति अति संवेदनशील है।’’

अनुसंधानकर्ताओं ने इस नतीजे पर पहुंचने के लिए ‘टॉप डाउन’ अथवा उपग्रह आधारित और ‘बॉटम डाउन’ या जमीन पर ग्लेशियर में झील और भूमिगत जल स्रोतों में जल की मात्रा का आकलन करने के तरीकों से अध्ययन किया।

अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक इसके बाद उन्होंने इन आंकड़ों को लेकर मशीन लर्निंग प्रौद्योगिकी से, टीडब्ल्यूएस में गत दो दशक (2002 से 2020) के बीच आए बदलाव का अध्ययन किया और इसके आधार पर अगले चार दशकों यानी वर्ष 2021 से 2060 में आने वाले बदलाव का पूर्वानुमान लगाया।

अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि हाल के दशकों मे हुए जलवायु परिवर्तन की वजह से कई इलाकों में स्थलीय जल भंडार में (15.8 गीगाटन प्रति वर्ष की दर से) भारी कमी आ रही है जबकि कुछ इलाकों में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि (5.6 गीगाटन प्रति वर्ष की दर से) हो रही है। उन्होंने बताया कि यह संभवत: ग्लेशियरों के पीछे खिसकने, मौसमी रूप से जमी हुई जमीन के क्षरण होने और झीलों के विस्तार के प्रतिस्पर्धी प्रभाव की वजह से हो रहा है।

अनुसंधानकर्ताओं की टीम का आकलन है कि समान्य दर से भी अगर कार्बन उत्सर्जन हुआ तो 21वीं सदी के शुरुआती तीन दशकों यानी वर्ष 2002 से 2030 के मुकाबले 21 सदी के मध्य में (2031 से 2060) टीडब्ल्यूएस में 230 गीगाटन की कमी आ सकती है।

अनुसंधानकर्ताओं का आकलन है कि सबसे अधिक जल उपलब्धता में कमी, मध्य एशिया और अफगानिस्तान को जलापूर्ति करने वाले अमु दरिया बेसिन और सिंधु नदी घाटी में आ सकती है जिससे पाकिस्तान और उत्तर भारत को जलापूर्ति होती है। अध्ययन के मुताबिक, इन दोनों नदी घाटियों की जलापूर्ति क्षमता में क्रमश: 119 प्रतिशत और 79 प्रतिशत की कमी आ सकती है।

भाषा धीरज मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)