शामली से दिल्ली की सीमा तक, टिकैत की विरासत का प्ररेणा देती है ‘अखंड ज्योति’ और उनका हुक्का | From Shamli to Delhi border, Tikat's heritage gives a sense of 'monolithic light' and his hookah

शामली से दिल्ली की सीमा तक, टिकैत की विरासत का प्ररेणा देती है ‘अखंड ज्योति’ और उनका हुक्का

शामली से दिल्ली की सीमा तक, टिकैत की विरासत का प्ररेणा देती है ‘अखंड ज्योति’ और उनका हुक्का

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:54 PM IST, Published Date : March 11, 2021/9:01 am IST

(जतिन ठक्कर/किशोर द्विवेदी)

(यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बदलते राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर हमारी श्रृंखला का हिस्सा है… तस्वीरों के साथ)

सिसौली (उप्र) 11 मार्च (भाषा) पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज से करीब 34 साल पहले अप्रैल 1987 में बिजली की दरों में बढ़ोतरी के प्रस्ताव के खिलाफ महेन्द्र सिंह टिकैत ने किसानों से प्रदर्शन करने का आह्वान किया था, तभी उनके घर पर शगुन के तौर पर एक ‘दिया’ जलाया गया था, जो आज भी जल रहा है और आज भी नियमित रूप से शाम को एक हुक्का भी जलाया जाता है।

उस आंदोलन की बात करें तो, देखते ही देखते शामली में बिजली घर के बाहर तीन लाख से अधिक किसान एकत्रित हो गए और इस आंदोलन ने ही महेन्द्र को क्षेत्र में किसानों के सबसे बड़े नेता ‘‘बाबा टिकैत’’ के तौर पर पहचान दी।

इसके बाद टिकैत ने किसानों के साथ कई बड़े प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और इस दौरान उनके परिवार वाले यह सुनिश्चित करते रहे की घर पर वह ‘दिया’ जलता रहे।

इन प्रदर्शनों में 1988 में राष्ट्रीय राजधानी में ‘बोट क्लब’ पर किया प्रदर्शन शामिल है, जिसके दौरान मध्य दिल्ली के अधिकतर इलाकों में पांच लाख से अधिक किसानों ने घेराबंदी की थी और जाट नेता ने बड़ी संख्या में अपने समर्थकों के साथ सरकार को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।

अब टिकैत के निधन को एक दशक बीत गया है, लेकिन उनकी विरासत अब भी जिंदा है और वह ‘अखंड ज्योति’ अब भी जल रही है। साथ ही उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाला हुक्का भी जलाया जाता है।

दिल्ली से 100 किलोमीटर दूर सिसौली में दो मंजिला घर के भूतल पर उनके कमरे की परिवार वाले तथा उनके साथ काम करने वाले करीबी समर्थक रोज सफाई करते हैं। उनके कमरे में उनकी तस्वीर के सामने ही ‘अखंड ज्योति’ रखी गई है और रोजाना उसमें करीब 1.25 किलोग्राम घी डाला जाता है।

करीब 10X12 फुट के इस कमरे में एक पलंग और उस पर एक तकिया, बेंत की बनी एक कुर्सी, एक हुक्का, एक प्लास्टिक की कुर्सी, एक बिजली से चलने वाला हीटर और एक कोने में घी के कई कनस्तर रखे हैं।

टिकैत के चार बेटे में से सबसे छोटे नरेन्द्र टिकैत ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ पलंग की चादर, तकिए के खोल नियमिम रूप से बदले जाते हैं और हुक्का हर शाम जलाया जाता है। हम में से एक पूरे दिन की घटनाएं वहां जाकर बताता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ अखंड ज्योति हमेशा जलती रहेगी।’’

उन्होंने बताया कि घर में कई जानवर हैं, जिनके दूध से काफी घी घर में ही बन जाता है और कई बार बाबा टिकैत को श्रद्धांजलि देने आने वाले लोग भी घी लेकर आते हैं। देशभर से लोग आते हैं लेकिन अधिकतर लोग हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से आते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ केवल उन्हें सम्मान देने के लिए हम एक चम्मच घी ले लेते हैं, क्योंकि हम घर पर ही काफी घी बना लेते हैं।’’

परम्परा के अनुसार घर में मौजूद सबसे बड़ा बेटा शाम में आधे घंटे कमरे में बैठता है और बाबा को किसानों से जुड़ी सभी हालिया जानकारी देता है।

उन्होंने कहा, ‘‘ अगर कोई प्रदर्शन या आंदोलन चल रहा हो या कोई बड़ा मुद्दा हो, हम सभी इस कमरे में बैठते हैं और आम दिन में भी परम्परा का पालन करने के लिए हम में से कोई ना कोई तो यहां बैठता ही है।’’

महेन्द्र सिंह टिकैत के कई साथी और पुराने सर्मथक आज भी हर दिन आंगन में आते हैं।

इनमें से एक हैं 97 वर्षीय दरियाव सिंह स्थानीय लोगों के साथ बैठकर सभी बातों पर चर्चा करते हैं और हुक्का पीते हैं। आजकल अधिकतर बातें दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों की ही होती हैं।

दरियाव सिंह ने चेहरे पर मुस्कुराहट लिए किसानों में सरकार के निर्णय से लड़ने की ताकत होने का विश्वास जताया।

सिंह ने कहा कि ‘अखंड ज्योति’ ही प्रदर्शन करने की प्ररेणा और ताकत का स्रोत है।

गौरतलब है कि टिकैत के दूसरे बेटे राकेश टिकैत राष्ट्रीय राजधानी से लगे गाजीपुर बॉर्डर पर 100 दिन से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं, उनके सबसे बड़े बेटे एवं भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के अध्यक्ष नरेश टिकैत केन्द्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों की गिनती में इजाफा करने के लिए पूरे क्षेत्र में प्रचार कर रहे हैं।

महेन्द्र सिंह टिकैत ने ही भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) की स्थापना की थी।

हजारों की तादाद में किसान केन्द्र के तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने और उनकी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्यों (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने की मांग को लेकर 28 नवम्बर से दिल्ली से लगी सीमाओं पर डटे है। इनमें अधिकतर किसान उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा से हैं।

बहरहाल, सरकार लगातार यही बात कह रही है कि ये कानून किसान समर्थक हैं।

भाषा निहारिका शाहिद

शाहिद

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)