राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्णय लेते हैं, विवेकाधिकार का इस्तेमाल भी संभव : विधि विशेषज्ञ |

राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्णय लेते हैं, विवेकाधिकार का इस्तेमाल भी संभव : विधि विशेषज्ञ

राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्णय लेते हैं, विवेकाधिकार का इस्तेमाल भी संभव : विधि विशेषज्ञ

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:36 PM IST, Published Date : June 23, 2022/7:07 pm IST

नयी दिल्ली, 23 जून (भाषा) महाराष्ट्र में पैदा राजनीतिक संकट की पृष्ठभूमि में विधि विशेषज्ञों ने बृहस्पतिवार को बताया कि यदि मुख्यमंत्री के पास बहुमत है, तो राज्यपाल को मंत्रिपरिषद के सहयोग और सलाह पर कार्य करना होगा, लेकिन यदि उसे (राज्यपाल को) सरकार के बहुमत पर संदेह है, तो वह शक्ति परीक्षण, सदन को भंग करने या सरकार गठन की संभावनाएं तलाशने के लिए अपनी विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है।

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार के तीन घटकों में से एक, शिवसेना में चल रहे राजनीतिक संकट के मद्देनजर विवेकाधीन शक्तियों सहित राज्यपाल की शक्तियों की ओर नजरें टिक गयी हैं और ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि राज्यपाल को राज्य विधानसभा भंग करने की सलाह दी जा सकती है।

निर्दलीय सहित 46 विधायकों के समर्थन का दावा करने वाले बागी शिवसेना नेता और राज्य मंत्री एकनाथ शिंदे ने विधानसभा के उपाध्यक्ष को एक पत्र दिया है, जिसमें सुनील प्रभु की जगह भरत गोगावले को शिवसेना विधायक दल का मुख्य सचेतक बनाये जाने की मांग की गई है। इस पत्र पर शिवसेना के 35 विधायकों द्वारा हस्ताक्षर किए गए हैं।

वरिष्ठ वकील और संवैधानिक कानून विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी एवं सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह का मानना है कि राज्यपाल के पास कुछ विवेकाधीन शक्तियां हैं। उन्होंने कहा कि यदि राज्यपाल को विश्वास है कि सरकार को विधानसभा में बहुमत नहीं है, तो उस स्थिति में, वह मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य नहीं होता है और मुख्यमंत्री से बहुमत साबित करने के लिए कह सकता है।

एक अन्य वरिष्ठ वकील अजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि बहुमत किसके पास है, इसका पता लगाने के लिए शक्ति परीक्षण ही मुख्य हथियार है।

हालांकि, महाराष्ट्र में चल रहे संकट का उल्लेख करते हुए, विकास सिंह ने कहा कि वर्तमान स्थिति में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह के लिए बाध्य होंगे, क्योंकि “यह विशुद्ध रूप से एक आंतरिक पार्टी का झगड़ा है और इससे राज्यपाल का कोई लेना-देना नहीं है।’’

सिंह ने कहा, “यह ऐसा मामला नहीं है जहां उन्होंने (ठाकरे) बहुमत खो दिया है। यह वह मामला है जहां अपनी ही पार्टी के अंदर उनके नेतृत्व को चुनौती दी गयी है… जब तक तीन घटक एमवीए के किसी अन्य नेता का चुनाव नहीं करते, तब तक वह (उद्धव ठाकरे) नेता बने रहेंगे। आंतरिक मतभेद सरकार के नेतृत्व को नहीं बदलते हैं। राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य होंगे।”

सिंह ने कहा, ‘‘जब तक ये 36 (बागी) विधायक राज्यपाल को यह नहीं लिखते कि हम समर्थन वापस लेते हैं, तब तक राज्यपाल की शायद ही कोई भूमिका होगी …।’’

द्विवेदी ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री विधानसभा का ‘‘विश्वास, बहुमत’’ खो देते हैं तो राज्यपाल के पास इस स्थिति में कुछ विकल्प होंगे। उन्होंने कहा, ‘‘राज्यपाल को खुद को संतुष्ट करना होगा कि क्या सरकार के पास बहुमत है। वह व्यक्तिगत रूप से या डिजिटल माध्यम से या टेलीफोन के जरिये मुख्यमंत्री से बात कर सकते हैं। और अगर मुख्यमंत्री बहुमत होने का दावा करते हैं, जबकि राज्यपाल को इसे लेकर संदेह है तो वह (राज्यपाल) मुख्यमंत्री को सदन पटल पर अपना बहुमत साबित करने को कहेंगे।’’

संविधान का अनुच्छेद 174 (2) (बी) राज्यपाल को मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह पर विधानसभा को भंग करने की शक्ति देता है। हालांकि, राज्यपाल अपने विवेक का इस्तेमाल तब कर सकता है, जब सलाह किसी ऐसे मुख्यमंत्री की ओर से आती है जिसका बहुमत संदेह के दायरे में है।

द्विवेदी ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे स्वीकार करते हैं कि उन्होंने बहुमत खो दिया है तो राज्यपाल के पास या तो विधानसभा भंग करने या फिर विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ बैठक बुलाने और यह पूछने का विकल्प होगा कि क्या भाजपा नेता सरकार बनाने के लिए तैयार हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘अगर उन्हें लगता है कि दूसरा पक्ष सरकार बनाने के लिए तैयार नहीं है तो राज्यपाल के पास विधानसभा भंग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।’’

महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सीटें हैं और सत्तारूढ़ एमवीए के पास शिवसेना के 56 विधायकों सहित 169 विधायक हैं। विपक्षी भाजपा के पास 106 विधायक हैं।

भाषा

सुरेश नरेश

नरेश

 

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