भारत को खुली जेलों को लेकर और अधिक उदार विचारों वाला होने की आवश्यकता: शोधकर्ता |

भारत को खुली जेलों को लेकर और अधिक उदार विचारों वाला होने की आवश्यकता: शोधकर्ता

भारत को खुली जेलों को लेकर और अधिक उदार विचारों वाला होने की आवश्यकता: शोधकर्ता

:   Modified Date:  December 3, 2022 / 03:30 PM IST, Published Date : December 3, 2022/3:30 pm IST

(रूमेला सिन्हा)

कोलकाता, तीन दिसंबर (भाषा) भारत में खुली जेलों की वकालत करने वाली शोधकर्ता स्मिता चक्रवर्ती ने कहा है कि ऊंची दीवारें, कंटीले तार की बाड़ या हथियारबंद पहरेदार नहीं होने के बावजूद मानवीय सुविधाओं से युक्त खुली जेलों में बंद कैदी वहां से भागते नहीं क्योंकि ‘‘न्यूनतम अंकुश अक्सर अनुशासन को बढ़ावा देता है और उनमें आत्मसम्मान की भावना उत्पन्न करता है।’’

स्मिता चक्रवर्ती एक दशक से अधिक समय से भारत में जेलों की संस्कृति को बदलने के लिए काम कर रही हैं।

उच्चतम न्यायालय ने 2017 में जयपुर की सांगानेर खुली जेल इसके फायदों पर चक्रवर्ती की रिपोर्ट गौर किया था और बाद में सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को हर जिले में ऐसी जेल स्थापित करने की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए कहा था।

स्मिता चक्रवर्ती ने एक संस्था ‘प्रिज़न ऐड + एक्शन रिसर्च’ (पीएएआर) की स्थापना की है। इस संस्था ने कई राज्य सरकारों के साथ सक्रिय रूप से काम किया है और देश के कई हिस्सों में खुली जेलों की स्थापना की सुविधा प्रदान की है।

स्मिता चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘जेल कानून तोड़ने को लेकर पकड़े गए लोगों में सुधार करने के लिए स्थान होती हैं। जब रिपोर्ट आई तो देश में 63 खुली जेलें थीं, जिनमें से 29 अकेले राजस्थान में थीं। मौजूदा समय में भारत में 150 खुली जेल हैं।’’

स्मिता चक्रवर्ती ने पूर्व में बिहार की जेलों की स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उन्होंने कहा कि वह यह देखकर बेहद हैरान रह गईं कि राज्य की कुछ खचाखच भरी जेलों में कैदियों के बैठने के लिए मुश्किल से ही जगह है।

उन्होंने कहा, ‘‘ वर्ष 2014 में बिहार की सभी 58 जेलों का दौरा करने और वहां के प्रत्येक कैदी से बात करने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि नियमित जेलों में गिने-चुने लोग ही आदतन अपराधी होते हैं। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने गलती से अपराध किया है। कुछ कैदी ऐसे भी थे जो कानूनी सहायता का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं होने के कारण वर्षों से वहां बंद हैं। उनमें से कई कैदियों को मानवीय उपचार, सुधार के अवसर से वंचित कर दिया गया था।’’

उच्चतम न्यायालय ने बिहार की जेलों पर उनकी रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए आदेश दिया था कि अन्य राज्यों में भी इसी तरह के निरीक्षण किए जाएं।

भाषा रवि कांत अमित

अमित

 

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