भारत के आदित्य-एल1 ने वैश्विक स्तर पर हो रहे सौर तूफान अध्ययन में मदद की: इसरो
भारत के आदित्य-एल1 ने वैश्विक स्तर पर हो रहे सौर तूफान अध्ययन में मदद की: इसरो
बेंगलुरु, नौ दिसंबर (भाषा)भारत की पहली सौर वेधशाला आदित्य-एल1 ने वैज्ञानिकों को यह समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि मई 2024 में गत दो दशक के सबसे शक्तिशाली सौ तूफान ने पृथ्वी पर इतना असामान्य व्यवहार क्यों किया? भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि आदित्य-एल1 ने नासा के ‘विंड’ सहित छह अमेरिकी उपग्रहों के साथ मिलकर काम किया। उसने अपने सटीक चुंबकीय क्षेत्र माप के साथ अनुसंधानकर्ताओं को अंतरिक्ष में कई सुविधाजनक बिंदुओं से एक साथ इस दुर्लभ घटना का अध्ययन करने में मदद की।
इसरो के एक बयान के मुताबिक उक्त सौर तूफान को अब ‘‘गैनन तूफ़ान’’ के नाम से जाना जाता है और उसने पृथ्वी के पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित किया। यह तूफान सूर्य पर विशाल विस्फोटों की एक शृंखला का परिणाम था, जिन्हें ‘कोरोनल मास इजेक्शन’ (सीएमई) कहा जाता है। ये सीएमई सूर्य से अंतरिक्ष की ओर उठने वाले गर्म गैस और चुंबकीय ऊर्जा के विशाल बुलबुले होते हैं।
इसरो ने कहा कि जब ये झोंके पृथ्वी से टकराते हैं हमारे ग्रह के चुंबकीय कवच को प्रभावित कर सकते हैं और उपग्रहों, संचार प्रणालियों, जीपीएस और यहां तक कि बिजली ग्रिड के लिए गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने ‘एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स’ नामक पत्रिका में एक अहम अनुसंधान पत्र प्रकाशित किया है जो संभवतः यह बताता है कि मई 2024 में पृथ्वी पर आने वाले दो दशकों से अधिक समय के सबसे शक्तिशाली सौर तूफान ने इतना असामान्य व्यवहार क्यों किया।
इसरो ने कहा, ‘‘मई 2024 के सौर तूफान के दौरान, वैज्ञानिकों ने कुछ असामान्य घटनाओं का पता लगाया। उन्होंने पाया कि सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र, जो सौर तूफान के अंदर मुड़ी हुई रस्सियों की तरह होते हैं, तूफान के भीतर टूट रहे थे और फिर से जुड़ रहे थे।’’
अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, आमतौर पर सीएमई एक मुड़ी हुई ‘‘चुंबकीय रस्सी’’ की तरह होती है जो पृथ्वी के निकट आते ही नीले ग्रह के चुंबकीय ढाल के साथ संपर्क बनाती है।
लेकिन इस बार, दो सीएमई अंतरिक्ष में टकराये और एक दूसरे को इतनी मजबूती से दबाया कि उनमें से एक के अंदर की चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं टूट गईं और नए तरीके से फिर से जुड़ गईं। इस प्रक्रिया को ‘चुंबकीय पुनर्संयोजन’ कहा जाता है।
इसरो के मुताबिक चुंबकीय क्षेत्र के इस अचानक बदलाव ने तूफ़ान के प्रभाव को अपेक्षा से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली बना दिया। उपग्रहों ने कणों की अचानक गति भी देखी, जो उनकी ऊर्जा में वृद्धि का संकेत है, जिससे चुंबकीय पुनर्संयोजन की घटना की पुष्टि होती है।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा, ‘‘पहली बार, अनुसंधानकर्ता अंतरिक्ष में कई सुविधाजनक बिंदुओं से एक ही चरम सौर तूफान का अध्ययन कर पाए। भारत के आदित्य-एल1 मिशन से प्राप्त सटीक चुंबकीय क्षेत्र मापों की बदौलत, वैज्ञानिक इस पुनर्संयोजन क्षेत्र का मानचित्रण करने में सक्षम हुए।’’
इसरो के मुताबिक अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि वह क्षेत्र जहां सीएमई का चुंबकीय क्षेत्र टूट रहा था और फिर से जुड़ रहा था, वह विशाल था। उनके मुताबिक यह खगोलीय घटना लगभग 13 लाख किमी चौड़े क्षेत्र में यानी पृथ्वी के आकार के लगभग 100 गुना क्षेत्र में हो रही थी।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया, ‘‘यह खोज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे सूर्य से पृथ्वी की ओर आते समय सौर तूफानों के विकास के बारे में हमारी समझ बढ़ती है। यह वैश्विक अंतरिक्ष विज्ञान में भारत के बढ़ते नेतृत्व को दर्शाता है। आदित्य-एल1 के योगदान से, भारत अब शक्तिशाली सौर तूफानों को समझने और उनकी भविष्यवाणी करने के लिए बेहतर ढंग से तैयार है।’’
आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन था और इसे सितंबर 2023 में प्रक्षेपित किया गया था।
भाषा धीरज नरेश
नरेश

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