एससी-एसटी के खिलाफ अपराध के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने में देर नहीं होनी चाहिए: गृह मंत्रालय |

एससी-एसटी के खिलाफ अपराध के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने में देर नहीं होनी चाहिए: गृह मंत्रालय

एससी-एसटी के खिलाफ अपराध के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने में देर नहीं होनी चाहिए: गृह मंत्रालय

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:50 PM IST, Published Date : June 30, 2022/2:46 pm IST

नयी दिल्ली, 30 जून (भाषा) केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों से कहा है कि अनुसूचित जाति (एससी) एवं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ अपराध के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी नहीं होनी चाहिए और जिन मामलों की जांच दो महीने से अधिक वक्त तक चले, उनकी करीब से निगरानी की जानी चाहिए।

सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों को भेजे गए पत्र में गृह मंत्रालय ने यह भी कहा है कि जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) एससी-एसटी के खिलाफ मामलों में त्वरित सुनवाई के लिए पुलिस अधिकारी एवं आधिकारिक गवाहों समेत अभियोजन के सभी गवाहों की वक्त पर पेशी और सुरक्षा को सुनिश्चित करें।

इस पत्र की प्रति पीटीआई-भाषा के पास है, जिसमें कहा गया है, “ एससी-एसटी के खिलाफ अपराध के मामलों में प्राथमिकी दर्ज होने में देरी नहीं होनी चाहिए। एससी-एसटी के खिलाफ अपराध के मामलों की उचित स्तर पर निगरानी सुनिश्चित की जानी चाहिये, जो प्राथमिकी दर्ज होने से लेकर सक्षम अदालत द्वारा मामले के निपटारे तक होना चाहिये।”

मंत्रालय ने कहा कि जांच में देरी होने (प्राथमिकी दर्ज होने की तारीख से 60 दिन से अधिक समय होने) पर हर तीन महीने में जिला एवं राज्य स्तर पर इसकी निगरानी की जाए और जहां भी जरूरत हो विशेष पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) को छानबीन तेज़ करने के लिए नियुक्त किया जाए।

पत्र के मुताबिक, “ राज्य सरकारों में संबंधित अधिकारियों को राष्ट्रीय एससी-एसटी आयोग समेत विभिन्न स्रोतों से प्राप्त एससी-एसटी के खिलाफ अत्याचार के मामलों की रिपोर्ट की उचित अनुवर्ती कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए।”

मंत्रालय ने कहा कि उन इलाकों की पहचान की जाए जहां समुदाय पर अत्याचार होने का खतरा होता है, ताकि एससी-एसटी समुदाय के सदस्यों के जान और माल की रक्षा के लिए एहतियाती उपाय किए जा सकें।

उसमें कहा गया है कि ऐसे संवेदनशील इलाकों के थानों में पर्याप्त संख्या में पुलिस कर्मियों की तैनाती की जानी चाहिये।

पत्र में कहा गया है, “ एससी-एसटी के खिलाफ अपराध के मामलों की सुनवाई में होने वाली देरी की समीक्षा निगरानी समिति में या जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में होने वाली मासिक बैठक में नियमित रूप से की जानी चाहिए जिसमें जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक और जिले के लोक अभियोजक शामिल होते हैं। ”

पत्र में कहा गया है कि केंद्र सरकार अपराध रोकथाम से संबंधित मामलों को काफी अहमियत देती है और वह समय-समय पर राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन को रोकथाम पर जोर देने के साथ-साथ आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रबंधन पर अधिक ध्यान देने की सलाह देती रही है और उसका अधिक जोर एससी-एसटी के खिलाफ जुर्म समेत अपराध की रोकथाम और नियंत्रण पर रहा है।

मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार समाज के कमज़ोर तबके, खासकर एससी-एसटी के खिलाफ जुर्म से चिंतित है और फिर से जोर देती है कि ऐसे मामलों पर राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासनों को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।

गृह मंत्रालय ने कहा कि एससी एसटी के खिलाफ अपराधों का पता लगाने और जांच में प्रशासन और पुलिस को अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी मामले दर्ज हों।

एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) कानून 1989 को 2015 में संशोधन करके और प्रभावी बनाया गया है।

भाषा नोमान दिलीप

दिलीप

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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